जानें इंडिया गेट में क्या है खास

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सतरंगी सियासत

पंजाब में हौचपोच!
चुनावी राज्य पंजाब में राजनीतिक ही नहीं। कानून व्यवस्था को लेकर भी चिंता में डालने वाले हालात बन रहे। अचानक बेअदबी की दुर्भाग्यपूर्ण घटनाएं सामने आ रहीं। वहीं, कोर्ट में हुए बम विस्फोट ने आम जनता को आशंकित कर दिया। ज्यों-ज्यों चुनावी माहौल बन रहा। सामाजिक तानेबाने को कसैला करने की कोशिशें हो रहीं। कहां तो सत्ताधारी कांग्रेस, आप और अकाली दल-बसपा गठबंधन पर बात हो रही थी। लेकिन अब भाजपा के पूर्व सीएम अमरिन्दर सिंह के साथ हुए गठबंधन ने भी दिलचस्पी बढ़ा दी। इससे पहले, अकाली दल और भाजपा का गठबंधन टूटा। तो नए समीकरण बनते दिखाई दिए। तीन कृषि कानूनों के खिलाफ आंदोलन खत्म हुआ। तो करीब दो दर्जन किसान संगठनों ने नया दल बनाकर विधानसभा चुनाव लड़ने का ऐलान कर दिया। इससे आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरू हो गया। नेता, कार्यकर्ता, दलों के लिए पूरे पांच साल में चुनावी मौका आता। हर कोई कमर कस रहा। तिस पर ओमिक्रॉन का प्रभाव बढ़ रहा। मतलब, कुल मिलाकर हौचपोच जैसे हालात बन रहे।  


योगी.. उपयोगी, अनुपयोगी!
पीएम मोदी यूपी चुनाव के बरक्स ताबड़तोड़ दौरे कर रहे। साथ में कई परियोजनाओं के उद्घाटन और शिलान्यास का दौर भी। हालांकि ओमिक्रॉन के बढ़ते मामलों को देखते हुए कोर्ट का सिमित रैलियों का आग्रह। मतलब चुनावी अभियान को झटका। इसी बीच, पीएम मोदी ने कह दिया। योगी यूपी के लिए उपयोगी। तो, सपा ने तुरंत उन्हें अनुपयोगी बता दिया। अखिलेश विपक्षी नेता। सो, इसमें कोई आश्चर्य भी नहीं। लेकिन पीएम की बात से स्पष्ट। भाजपा की पूरी चुनावी बिसात में योगी ही केन्द्र में रहेंगे। आखिर वह पांच सीएम भी तो रहे। हां, इतना जरुर। सपा नेता के करीबियों पर छापे की कार्रवाई। बड़ी मात्रा में नकदी एवं संदिग्ध कागजात मिलने की खबरें। यानी चुनाव से पहले ही सपा की रसद पर सीधा एक्शन। ऐसे में अखिलेश की चुनावी तैयारियां प्रभावित होंगी। इसीलिए ईडी और सीबीआई आने की बात कही। लेकिन योगी यूपी के लिए ही नहीं। भाजपा के लिए भी उपयोगी! आखिर मोदी को 2024 के आम चुनाव में भी जाना है।


अल्पमत... बहुमत...
संसद के शीतकालीन सत्र में सत्तापक्ष ने विपक्ष, खासतौर से कांग्रेस को राज्यसभा में खूब छकाया। पहले ही दिन 12 सांसदों के निलंबन को विपक्ष एक-दो दिन तक तो समझ ही नहीं पाया। नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने यह बात सत्र के अंतिम दिन स्वीकारी। खड़गे का आरोप। सरकार महत्वपूर्ण विषयों से चर्चा, बहस से भाग गई। सांसदों को निलंबित कर सदन में अल्पमत को बहुमत में बदला। इधर, सरकार ने दावा, वह तैयार थी। लेकिन सवाल माफी का। सरकार निलंबित सांसदों की माफी पर अड़ी रही। तो विपक्ष बिना शर्त निलंबन वापसी पर। नेता सदन पीयूष गोयल ने पांच दलों की बैठक भी बुलाई। लेकिन ‘माफी’ मानो नाक का सवाल बन गई। इसीलिए पूरा सत्र हंगामें में निकल गया। सरकार ने चुनाव सुधार समेत कई महत्वपूर्ण बिल बिना चर्चा के पारित करवा लिए। यह कांग्रेस का दर्द। मतलब सरकार ने विपक्ष को उलझाए भी रखा और सदन में अपना काम भी करवा लिया। फिर विपक्ष को मिला क्या? हां, राहुल गांधी सड़क पर उतरे।


इंतजार यूपी का!
राजस्थान की राजनीति भविष्य में कैसी होगी। यूपी चुनाव तक इसका इंतजार। असल में, भाजपा और कांग्रेस शीर्ष नेतृत्व यूपी चुनाव निपट जाने का इंतजार कर रहा। कांग्रेस में जहां अभी बदलाव पूरी तरह से आकार नहीं ले सका। खुद सीएम गहलोत इशारा कर चुके। वह 2022 के मध्य में एक और मंत्रिमंडल विस्तार करेंगे। मतलब नॉन परफारर्मर मंत्री बाहर होंगे! कांगे्रस में सचिन पायलट की भूमिका भी तय होना बाकी। इसी प्रकार, भाजपा 2023 के विधानसभा चुनाव वर्तमान प्रदेश अध्यक्ष की अगुवाई में उतरेगी या बदलाव होगा। इसके कयास और चर्चे भी शुरू हो गए। पूर्व सीएम वसुंधरा राजे मैदान में उतरकर थोड़ा पीछे हटीं हैं। चर्चा यह कि उनके समर्थकों को भी यूपी परिणाम में भाजपा की परफारमेंस का इंतजार। अमित शाह कह चुके। अगला चुनाव भाजपा कमल के निशान और मोदी के चेहरे पर लड़ेगी। मतलब सीएम का चुनाव परिणाम के बाद होगा। जबकि राजे की कोशिश। चुनाव से पहले चेहरा घोषित हो। मतलब चुनाव यूपी में और इंतजार राजस्थान में।

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उलटबांसी!
जम्मू-कश्मीर में परिसीमन आयोग का काम तेजी से चल रहा। जिस पारदर्शिता और वैज्ञानिक तरीके से विधानसभा सीटों का पुनर्गठन का प्रस्ताव। उससे लग रहा कि उलटबांसी होने वाली। महबूबा मुफ्ती के बयानों की भाषा से दिख रहा। जम्मू में छह और घाटी में एक सीट बढ़ाने का प्रस्ताव। मतलब अब अंतर महज चार सीट का रहेगा। घाटी एवं जम्मू क्षेत्र के गांवों को एक दूसरे की सीटों में जोड़े जाने का प्रस्ताव भी। मतलब पीडीपी और एनसी का सारा समीकरण गड़बड़ाने वाला। इतना ही नहीं। मुख्य धारा से बाहर तक होने की आशंका बन रही। इसीलिए दिल्ली में परिसीमन आयोग की बैठक में फारुख अब्दुल्ला मौजूद रहे। उन्होंने पंचायत समिति चुनाव का बहिष्कार करके खामियाजा भुगत लिया। फिर मजबूरी में गुपकार अलायंस के साथ डीडीसी के चुनाव में आना पड़ा। फिर यह तो विधानसभा चुनाव। जोखिम नहीं ले सकते। नए समीकरणों में एनसी और पीडीपी का छोड़ो। छोटे दल चुनाव बाद किधर रुख करेंगे। यह आंकड़ों पर निर्भर। डीडीसी चुनाव में ऐसा हो चुका।


फोकस सहकारिता पर!
केन्द्र सरकार में एक नया सहकारिता मंत्रालय बन चुका। उसका ढांचा धीरे-धीरे आकार ले रहा। मंत्रालय का जिम्मा भी अमित शाह को। मतलब इस क्षेत्र को लेकर पीएम मोदी काफी गंभीर। जब शाह कमान संभालें। तो समझ लें। वह होगा, जो अब तक नहीं हुआ। सो, सहकारिता मंत्रालय में ऐसा ही कुछ होने जा रहा। इस क्षेत्र में अभी तक आरक्षण का प्रावधान नहीं रहा। अब तकनीक का इस्तेमाल भी भरपूर होगा। मतलब कामकाज में पारदर्शिता लाने की कोशिश। इसके लिए आईआईई जैसे संस्थानों की मदद ली जा रही। आखिर करीब आठ लाख सहकारी समितियां देशभर में सक्रिय। करीब 40 करोड़ किसान इनसे जुड़े हुए। ग्रामीण क्षेत्र और उसकी अर्थव्यवस्था इसकी जद में। जीडीपी में भी इसका ठीकठाक योगदान। इतने महत्वपूर्ण क्षेत्र को भाजपा कैसे छोड़ देगी? वैसे भी भाजपा का विश्व की सबसे बड़ी पार्टी होने का दावा। लेकिन गांव छूट जाएं। तो सर्वस्पर्शी, समग्रता और व्यापकता वाला भाव नहीं आएगा। वैसे, मराठा क्षत्रप शरद पवार सरकार के कदमों से सबसे ज्यादा परेशान।
-श्रीनाथ मेहरा
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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