असुरक्षित फैक्ट्रियां

असुरक्षित फैक्ट्रियां

बिहार के मुजफ्फरपुर के बेला औद्योगिक क्षेत्र में नूडल्स, कुरकुरे और अन्य डिब्बाबंद खाद्य वस्तुएं बनाने वाली फैक्ट्री में रविवार को बायलर फटने से सात मजदूरों की मौत हो गई और कई घायल हो गए।

बिहार के मुजफ्फरपुर के बेला औद्योगिक क्षेत्र में नूडल्स, कुरकुरे और अन्य डिब्बाबंद खाद्य वस्तुएं बनाने वाली फैक्ट्री में रविवार को बायलर फटने से सात मजदूरों की मौत हो गई और कई घायल हो गए। धमाका इतना तेज था कि इसका असर तीन-चार किलोमीटर दूर तक महसूस किया गया। हादसे के समय वहां दो दर्जन से अधिक श्रमिक काम में जुटे थे और ये सभी दिहाड़ी मजदूर थे। तेज धमाके से फैक्ट्री के परखचे उड़ गए और आसपास के कारखानों को भी क्षति पहुंची। हमारे देश में फैक्ट्री हादसे कोई नए नहीं हैं, आएदिन कई कारखानों में हादसे होते रहते हैं। हादसों के लिए फैक्ट्री प्रबंधन की अनदेखी व लापरवाही होती है और निर्दोष मजदूरों की मौत हो जाती है। ऐसे हादसों पर सरकारें खेद व्यक्त कर और जांच व मुआवजों की घोषणा करके अपने कर्तव्य की इतिश्री कर लेती हैं। मुजफ्फरपुर के फैक्ट्री हादसों के बाद बिहार सरकार ने भी मुआवजे व जांच की घोषणा करने में देर नहीं की। मगर सवाल है कि क्यों नहीं सरकारें ऐसे हादसों की पुनर्रावृत्ति रोकने के इंतजाम क्यों नहीं कर पाती? सरकारें क्यों नहीं कोई कारगर व्यावहारिक नीति बनाई जाती? दरअसल हमारे देश में औद्योगिक हादसों से संबंधित कोई कड़ा कानून नहीं है, जिसकी वजह से ही कारखानों के मालिक व प्रबंधन वाले लोग रख-रखाव के मामलों में लापरवाही बरतने के आदी बने रहते हैं। उन्हें पता है कि किसी भी हादसे के बाद मजदूरों के मरने पर परिजनों को मुआवजा आदि देकर संतुष्ट कर दिया जाएगा। दुनिया के अन्य देशों में फैक्ट्री-कानून सख्त बने हुए हैं तो फैक्ट्री मालिक सतर्क व सावधान बने रहते हैं। सरकारी स्तर पर कारखानों के निरीक्षण आदि की नियमित व्यवस्था बनी हुई है, लेकिन फैक्ट्री प्रशासन के साथ उनकी सांठगांठ बना रहती है और लेनदेन की परंपरा पर कोई अंकुश नहीं है। अधिकांश कारखानों में असंगठित क्षेत्र के अप्रशिक्षित श्रमिकों से काम लिया जाता है। मुजफ्फरपुर के कारखाने में भी दिहाड़ी मजदूरों को ही काम पर लगा रखा है। ये अप्रशिक्षित होते हैं तो कई बार हादसे हो जाते हैं। जब तक सख्त कानून नहीं बनेंगे तब तक ऐसे हादसों को रोका जाना मुश्किल है।

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