प्रदेश कांग्रेस के लिए नया साल नहीं होगा आसान, कई तरह की रहेंगी चुनौतियां

प्रदेश कांग्रेस के लिए नया साल नहीं होगा आसान, कई तरह की रहेंगी चुनौतियां

प्रदेश कांग्रेस कमेटी का साल 2021 भले ही हर की चुनौतियों के साथ बीत गया हो लेकिन नए साल 2022 मैं कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।

जयपुर। प्रदेश कांग्रेस कमेटी का साल 2021 भले ही हर की चुनौतियों के साथ बीत गया हो लेकिन नए साल 2022 मैं कई चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।नए साल में प्रदेश कांग्रेस को राजनीतिक नियुक्तियां, गुटबाजी, संगठन विस्तार, विधायकों की नाराजगी जैसी चुनौतियों का सामना करना होगा। साथ ही विधानसभा चुनावों को देखते हुए विपक्षी पार्टी भाजपा के हमले भी तेज होंगे। हालांकि प्रदेश कांग्रेस मिशन 2023 को लेकर तैयारियों में जुटी है, लेकिन उन्हें सबसे पहले उन चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है जो अभी भी प्रदेश कांग्रेस के सामने बनी हुई है। उनका समाधान किए बगैर साल 2023 के विधानसभा चुनाव की तैयारी अधूरी होगी। प्रदेश कांग्रेस के सामने तकरीबन आधा दर्जन प्रमुख समस्याएं हैं, जिनका समाधान उसे इसी साल करना होगा।

प्रदेश कांग्रेस के सामने प्रमुख चुनौतियों में सबसे बड़ी चुनौती राजनीतिक नियुक्तियां हैं। कांग्रेस कार्यकर्ता तीन साल से राज्य नियुक्तियों का इंतजार कर रहे हैं, लेकिन कार्यकर्ताओं को राजनीतिक नियुक्तियों में एडजस्ट नहीं किया गया। अब नए साल में राजनीतिक नियुक्तियां करने की बात की जा रही है, लेकिन बड़ी बात यह है कि जिन कार्यकर्ताओं और नेताओं के नंबर राजनीतिक नियुक्तियों में नहीं लग पाएंगे। उन कार्यकर्ताओं और नेताओं को प्रदेश कांग्रेस की ओर से किस प्रकार संतुष्ट किया जाएगा यह अपने आप में एक बड़ी चुनौती प्रदेश कांग्रेस के सामने होगी। संगठन विस्तार भी एक बड़ी चुनौती है। कांग्रेस को अगर 2023 में विधानसभा चुनाव की तैयारियों में अभी से ही जुटना है तो सबसे पहले संगठन को मजबूत करना पड़ेगा, लेकिन बड़ी बात यह कि प्रदेश कांग्रेस के तमाम विभाग-प्रकोष्ठ, ब्लॉक और जिलाध्यक्षों की कार्यकारिणी भंग पड़ी है। प्रदेश कांग्रेस में अभी 39 सदस्य प्रदेश कार्यकारिणी और 13 जिलाध्यक्षों की नियुक्ति हुई है। ऐसे में पार्टी के सामने 42 जिला अध्यक्षों, 400 ब्लॉक अध्यक्ष, जिलों की कार्यकारिणी, विभिन्न विभाग प्रकोष्ठ में नियुक्तियां जैसे काम करने होंगे। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस के सामने संगठन विस्तार भी एक बड़ी चुनौती है। अन्य मुख्य चुनौतियों में गुटबाजी भी शामिल है। भले ही मंत्रिमंडल पुनर्गठन के बाद कांग्रेस में गुटबाजी खत्म करने के दावे किए जा रहे हैं लेकिन गहलोत-पायलट गुट के अलावा अन्य धड़ों के नेता भी एक दूसरे के खिलाफ बयानबाजी करने से परहेज नहीं करते हैं। ऐसे में प्रदेश कांग्रेस के सामने चुनौती यही है कि वे किस प्रकार गुटबाजी को खत्म करके सभी दलों के नेताओं को एक मंच पर एकजुट करके चुनाव के लिए तैयार करें।


विधायकों की नाराजगी भी एक बड़ी चुनौती है। मंत्रिमंडल पुनर्गठन में अपना नंबर नहीं आने से सरकार को समर्थन दे रहे कई निर्दलीय और बसपा से कांग्रेस में आए विधायकों की नाराजगी खुलकर सामने आ चुकी है। कांग्रेस के भी कई विधायक अंदर खाने अपनी नाराजगी जता चुके हैं। आगामी विधानसभा चुनावों से पहले सत्ता और संगठन में यह एकजुटता बनाए रखना बड़ी जिम्मेदारी और चुनौती है, अन्यथा विधानसभा के बजट सत्र में समर्थन देने वाले कुछ विधायकों की ही नाराजगी झेलनी पड़ सकती है।


माकन के आश्वासन की परख:

प्रदेश प्रभारी अजय माकन और मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की तरफ से संकेत दिए गए हैं कि मई-जून के बीच फिर से मंत्रिमंडल विस्तार हो सकता है। जिसमें नए और पुराने चेहरों को मंत्रिमंडल में मौका मिल सकता है, लेकिन चुनौती यहां भी है कि जिन चेहरों को मंत्रिमंडल से बाहर किया जाएगा उनकी नाराजगी भी सत्ता और संगठन को झेलनी पड़ेगी।


चुनावी बयार में भाजपा भी होगी हमलावर:

सरकार के चौथे साल में विपक्षी पार्टी भाजपा भी सत्ता और संगठन के नेताओं पर जुबानी हमले तेज करेगी। सड़क से लेकर सदन तक भाजपा की ओर से सत्तारूढ़ कांग्रेस को घेरा जाएगा। प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के सामने यह भी एक कठिन चुनौती होगी, जिसका उनको सामना करना है।

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