असुरक्षित सफर
भारतीय रेल को वैश्विक पैमानों के अनुरूप बनाने के दावों के बरबस रेल सफर आज भी असुरक्षित बना हुआ है।
भारतीय रेल को वैश्विक पैमानों के अनुरूप बनाने के दावों के बरबस रेल सफर आज भी असुरक्षित बना हुआ है। वैसे हर कुछ समय बाद रेल से सफर को सुरक्षित और सहज बनाने के दावे किए जाते हैं, लेकिन उन पर अमल अभी भी पूरा नहीं हो पाया है। अगर ऐसा होता तो पश्चिम बंगाल के जलपाईगुडी जिले के मैनागुडी में गुवाहाटी-बीकानेर एक्सप्रेस हादसे का शिकार नहीं होती। इस हादसे में फिलहाल दस यात्रियों की मौत होने की खबरें हैं और करीब पचास यात्रियों के घायल होने की जानकारी दी जा रही है। घायलों में से पन्द्रह यात्रियों की हालत गंभीर बताई जा रही है। यह ट्रेन मंगलवार की देर रात को बीकानेर से रवाना हुई थी और गुरुवार की शाम को पांच बजे पटना से रवाना हुई थी और मैनागुडी में तेज झटके के साथ इसकी 12 बोगियां पटरी से उतर गईं। ट्रेन के दो डिब्बे एक दूसरे पर चढ़ गए। हादसे के समय ट्रेन की गति 40 किलोमीटर प्रति घंटा थी। यदि ट्रेन की गति ज्यादा होती तो हादसा काफी भयानक हो सकता था। प्रारंभिक तौर पर बताया जा रहा है कि पटरी पर बड़ा क्रेक था। हादसे के बाद जांच के आदेश दे दिए हैं और मुआवजे की घोषणा भी कर दी गई है। हर रेल हादसे के बाद ऐसी पहल एक प्रकार की रस्म बनकर रह गई है, मगर हादसे के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ एक शब्द भी नहीं कहा जाता है। आमतौर पर कहा जाता है कि तेज ठंड या तेज गर्मी की वजह से पटरियों में क्रेक आ जाते हैं। हालांकि यह जांच का विषय है कि गुवाहाटी एक्सप्रेस हादसे की मुख्य वजह क्या थी और इसका दोषी कौन है? लेकिन लगता है कि जांच एक प्रकार से लीपापोती बनकर रह जाती है। क्योंकि किसी भी हादसे की जांच की जानकारी सार्वजनिक नहीं की जाती और न यह बताया जाता है कि इसका दोषी कौन था और उसे क्या सजा दी गई? रेल सफर को अति सुविधाजनक बनाने और कायापलट के नाम पर काफी महंगा तो कर दिया गया है, लेकिन यह सुनिश्चित करना जरूरी नहीं समझा जाता कि यात्रियों का सफर कैसे सुरक्षित पूरा हो?
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