भ्रष्टाचार पर चिंता
हमारे देश में भ्रष्टाचार ने गहरी जड़े जमा ली हैं और अब हालत यह है कि इसे रोकना एक चुनौती जैसा बन गया है। हर दुनिया के देशों में भ्रष्टाचार की स्थितियों का आकलन जारी किया जाता है, जिसमें भारत के बारे में अच्छी रिपोर्ट देखने को नहीं मिलती।
हमारे देश में भ्रष्टाचार ने गहरी जड़े जमा ली हैं और अब हालत यह है कि इसे रोकना एक चुनौती जैसा बन गया है। हर दुनिया के देशों में भ्रष्टाचार की स्थितियों का आकलन जारी किया जाता है, जिसमें भारत के बारे में अच्छी रिपोर्ट देखने को नहीं मिलती। इसके मद्देनजर ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मन की बात कार्यक्रम में बड़े दु:खी मन से बढ़ते भ्रष्टाचार पर गहरी चिंता व्यक्त की और इसे रोकने के लिए युवाओं से मदद मांगी। कह नहीं सकते कि युवा लोग कितना सहयोग कर पाएंगे, क्योंकि भ्रष्टाचार तो लोगों की रग-रग में व्याप्त हो गया है। सरकारी दफ्तरों में बिना रिश्वत के कोई काम हो ही नहीं पाता। अदालतें जहां न्याय होता है, वहां भी हर बात पर वसूली की जाती है। न्याय की पैरवी करने वाले वकील भी इसे बढ़ावा देने में आगे रहते हैं। जिनको भ्रष्टाचार की लत पड़ गई है, ये लोग संकट को भी अवसर में बदलने से नहीं चूकते। अभी हाल ही में आंध्रप्रदेश के गुंटूर में कर्मचारी भविष्य निधि कार्यालय में सीबीआई ने औचक छापा मारा तो पता चला कि लोगों को अपने खाते से अपनी कमाई के पैसे निकालने के लिए भी रिश्वत देते हैं। कार्यालय के अधिकारी बिना वसूली के अनुमति जारी नहीं करते। रिश्वत की रकम पेटीएम पे-फोन जैसे डिजिटल खातों में डलवाई जाती है। अभी कोरोना महामारी के दौरान बेरोजगार हो गए लोगों को अपने परिवार के पालन-पोषण के लिए भविष्य निधि खाते से पैसे निकालने की जरूरत पड़ी। सरकार ने ऐसे लोगों को राहत देने के लिए नियमों में कुछ ढील दी ताकि मजबूर लोगों को पैसा निकालने में आसानी हो, मगर भ्रष्ट कर्मचारियों ने अपनी आदत को नहीं छोड़ा। मजबूरी का खूब फायदा उठाया। यह केवल आंध्र प्रदेश तक ही सीमित मामला नहीं है, बल्कि पूरे देश में मजबूर लोगों की मजबूरी का फायदा उठाने में सरकारी महकमों के लोग पीछे नहीं रहे। जनहित से जुड़ी हर योजना में भ्रष्टाचार आम बात है। हकदारों को उनका वाजिब हक नहीं मिलता। कोई दिन ऐसा नहीं जाता जब भ्रष्टाचार से संबंधित खबरें पढ़ने-देखने को नहीं मिलती। बड़े से बड़े अधिकारी और कर्मचारी, दलाल भ्रष्टाचार से शामिल हैं। राजनीतिक पद प्राप्त नेतागण भी भ्रष्टाचार में लिप्त पाए जाते हैं, तो हैरानी होती है। हर राज्य सरकार से लेकर केन्द्र सरकार भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के कदम उठाती है, लेकिन भ्रष्टाचार तो दिनों-दिन बढ़ता दिखाई देता है। चुनावों में भी भ्रष्टाचार एक मुद्दा होता है और हर दल भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने का दावा करता है, लेकिन भ्रष्टाचार टस से मस नहीं होता। ऐसे में प्रधानमंत्री की व्यथा और चिंता समझी जा सकती है। जब वे स्वयं ही लाचार हैं तो फिर भ्रष्टाचार रोकने वाला कौन है?
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