लुभावने वादे क्यों?

लुभावने वादे क्यों?

उत्तर प्रदेश् विधानसभा चुनावों के पहले चरण का मतदान गुरुवार 10 फरवरी को सम्पन्न हो गया। पहले चरण से पूर्व लगभग सभी दलों ने अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्रों में मतदाताओं को लुभाने के लिए ऐसे-ऐसे वादे किए हैं, जिन पर सवाल उठना स्वाभाविक है।

उत्तर प्रदेश् विधानसभा चुनावों के पहले चरण का मतदान गुरुवार 10 फरवरी को सम्पन्न हो गया। पहले चरण से पूर्व लगभग सभी दलों ने अपने-अपने चुनावी घोषणा पत्रों में मतदाताओं को लुभाने के लिए ऐसे-ऐसे वादे किए हैं, जिन पर सवाल उठना स्वाभाविक है। इस वक्त उत्तर प्रदेश में दो बड़ी पार्टियां सपा और भाजपा बड़ी पार्टियां हैं और मुख्य मुकाबला भी इन दोनों दलों के बीच होता दिख रहा है। ये दोनों दल अपनी-अपनी जीत हासिल करने का दावा करते हैं। यदि ये दोनों दल जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त हैं, तो सवाल है कि फिर इन दोनों दलों को खैरात बांटने वाले वादे करने की जरूरत आखिर क्यों महसूस हुई। पहले चरण के मतदान के शुरू होने के एक दिन पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने एक टीवी चैनल को साक्षात्कार में कहा कि पांचों राज्यों में भाजपा फिर सरकार बनाएगी और भाजपा की लहर चल रही है। लेकिन ऐसे भरोसे के बावजूद भाजपा जैसी पार्टी भी प्रलोभन देने वाले वादों से दूर नहीं रही तो जाहिर होता है, लहर जैसी कोई बात नहीं है और चुनाव जोरदार टक्कर वाले होने वाले हैं। चुनावी लुभावने वादे करने वाले किसी भी दल ने यह नहीं बताया है कि आखिर बड़े-बड़े खैराती वादों के लिए धन कहां से आएगा? लोक प्रतिनिधित्व कानून की धारा 123 के तहत चुनाव के दौरान प्रत्याशी या उसके किसी समर्थक द्वारा मतदाताओं को प्रलोभन देना गैर-कानूनी है, लेकिन कानून बनाने वाले दल ही कानून की अनदेखी करते दिखाई दे रहे हैं। वैसे मतदाताओं को मुफ्त सौगात बांटने के वादों का मामला सुप्रीम कोर्ट के विचाराधीन है जिस पर फैसला तो अपने समयानुसार ही आएगा, लेकिन कभी पूरे नहीं किए जा सकने वाले प्रलोभन देकर वोट बटोरने की लोकतंत्र में एक गलत परम्परा है। बेशक देश में लोक कल्याणकारी राज की संवैधानिक व्यवस्था है मगर इसका लक्ष्य यह कतई नहीं है कि वोटरों को रिझाने के लिए वादे-दावे किए जाएं। मतदाताओं को मुफ्त सौगात बांटने के वादों की परम्परा की जड़ में सामंती या राजतंत्रीय मानसिकता प्रदर्शित होती है, जिसका लोकतंत्र में कोई वजूद नहीं है। राजनीतिक दल चाहे जितने भी प्रलोभन लेकर बांटे उन्हें यह नहीं भूलना चाहिए कि आज का मतदाता पहले जितना मूर्ख और भोला नहीं है बल्कि काफी परिपक्व हो चला है।

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