जानें इंडिया गेट में क्या है खास

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पर्दे के पीछे की खबरें जो जानना चाहते है आप....

फैल रहा रायता...
पंजाब में कांग्रेस लगातार कमजोर हो रही। चरणजीत सिंह चन्नी को भावी सीएम फेस घोषित करने के बाद से नवजोत सिंह सिद्धू बिल्कुल बैमन। खुद अपनी ही सीट पर फंस गए, वह अलग। इधर, सुनील जाखड़ ने राजनीति ही छोड़ने का ऐलान कर डाला। वह भी आलाकमान से नाराज दिख रहे। अब स्टार प्रचारकों की सूची में नाम नहीं होने से मनीष तिवारी दु:खी। कहा, अगर सूची में नाम होता तो आश्चर्य होता। मतलब वह इसके लिए तैयार बैठे थे। वह ‘जी-23’ के सदस्य भी। तिवारी कई बार नेतृत्व को असहज कर चुके। वैसे ही कैप्टन जैसे दिग्गज नेता पार्टी से बाहर हो चुके। तो क्या ऐन मौके पर कांग्रेस का रायता फैल रहा? विधानसभा चुनाव के लिए मतदान के लिए एक सप्ताह बचा हुआ। किसान आंदोलन से अच्छा खास मूवमेंट बना था। जो चुनाव आने तक धीेर धीरे दरक गया। फिर किसानों ने ही अलग पार्टी बनाकर सब कुछ पर पानी फेर दिया। अब बचा क्या?


अब आगे क्या?

मरुधरा की कांग्रेस सरकार में बहुप्रतिक्षित राजनीतिक नियुक्तियों का काम हो गया। कुछ पद बचाकर इसीलिए रखे गए। ताकि असंतोष के सुर दबाए जा सकें। अभी विरोध का इंतजार हो रहा। फिलहाल तो शांति सी लगी रही। जिस ओर से आपत्ति संभावित थी। वह भी कह बैठे। चलो, कुछ नहीं से कुछ तो हुआ। इधर या उधर के खेमे से कोई नहीं। सभी नियुक्ति पाने वाले पार्टी के ही कार्यकर्ता। कहीं यह तूफान के पहले की शांति तो नहीं? वैसे भी पायलट साहब यूपी चुनाव में व्यस्त। धुआंधार चुनावी प्रचार कर रहे। गांधी परिवार ने उन्हें भरोसे में लिया हुआ। इसीलिए देश के सबसे बड़े सूबे के चुनावी प्रचार में सक्रिय। आखिर नेतृत्व ने उन्हें क्या आश्वासन दिया होगा? वैसे, उधर से संकेत यह कि वह छोटी लड़ाई में नहीं उलझेंगे। इससे बड़ा लक्ष्य प्रभावित होगा। सो, बड़ा लक्ष्य तो एक ही होगा। लेकिन इसके लिए 2023 या इससे पहले? फिलहाल तो सभी को दस मार्च का इंतजार!


पीएम के दो भाषण?
संसद के बजट सत्र का पहला भाग खत्म हो गया। इस बार चर्चा में रहे पीएम के दो भाषण। लोकसभा एवं अगले दिन राज्यसभा में जो पीएम बोले। वह लंबे समय तक याद रखने के दावे। आखिर पीएम ने कांग्रेस के खिलाफ  चुन चुनकर जवाब दिए। लेकिन एक सवाल! कहीं पीएम मोदी संसद के जरिए चुनावी अभियान तो नहीं साध रहे थे। क्योंकि सिख दंगों से लेकर गोवा की आजादी का भी उन्होंने जिक्र किया। आखिर पीएम कांग्रेस के प्रति इतने तल्ख लहजे का उपयोग क्यों कर गए? इससे पहले राहुल गांधी देश को रा’यों का समूह बता गए। जिससे सत्ताधारी दल बुरी तरह चिढ़ गया। भाजपा को ‘राष्टÑ’ शब्द बेहद प्रिय। इसीलिए पीएम ने जवाब देना एवं विरोध करना उचित समझा। कांग्रेस न होती तो क्या होता? इस पर पीएम ने जो लंबी फेहरिश्त सुनाई। तो कांग्रेस सांसद राज्यसभा से बाहर हो लिए। पूर्व योजना थी या सुन ही नहीं पाए? यह मार्के का सवाल।


‘रीट’ कहां ले जाएगी?
राज्य सरकार के लिए ‘रीट’ मामला गले की हड्डी बनता जा रहा? विधानसभा सत्र में विपक्षी भाजपा बेहद आक्रामक। वह हर लोकतांत्रिक तरीके से कांग्रेस सरकार और आम जनता का ध्यान आकर्षित कर रही। करे भी क्यों नहीं। पूरे 26 लाख अभ्यर्थियों ने परीक्षा जो दी हुई। प्रदेश की ऐसी कोई ग्राम पंचायत नहीं बची होगी। जहां के परीक्षार्थी ने यह परीक्षा नहीं दी होगी। फिर मामला भी रोजगार का। जो सीधे जनता से जुड़ा हुआ। फिर रही सही कसर इस मामले के संसद में उठ जाने से पूरी हो गई। भाजपा के रा’यवर्धन सिंह राठौड़ ने इसे लोकसभा में उठाया। मामले की जांच सीबीआई को सौंपे जाने की मांग हो रही। भाजपा अड़ी हुई। ऐसे में रीट मामला आखिर कहां तक जाएगा? कहीं ऐसा तो नहीं? कई बड़े लपेटे में आ जाएं और बात आगे निकल जाए। वैसे, भाजपा जल्द ही राज्य में आंदोलनों की शुरुआत करने जा रही। जो चुनाव तक चलेंगे। यही चर्चा।

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भारत की साख!

दुनियां के फलक पर भारत की साख बढ़ रही। बात चाहे अफगानिस्तान के मसले पर मध्यस्त की हो या फिर चीन से आर्थिक पंगा लेने का मामला। यूक्रेन विवाद में भारत ने किसी भी पक्ष की ओर झुकाव नहीं दिखाया। इजराइल एवं फिलीस्तीन विवाद में भी भारत ने दशकों से चले आ रहे रुख में बदलाव किया। भारत लगातार विरोध एवं आपत्ति के बावजूद अमरीका और रुस हथियार खरीद रहा। जबकि दोनों ही देशों की चाहत। सिर्फ  उसी से हथियारों का सौदा हो। असल में, भारत ने दोनों ही ताकतों को सलीके से समझा दिया। उसे जो ठीक लगेगा, वही करेगा। वह किसी भी खेमेबाजी में नहीं पड़ेगा। अब तो ईरान से भी रिश्ते सामान्य अवस्था की ओर बढ़ रहे। तमाम प्रयासों के बावजूद पाक इस्लामिक वर्ल्ड में भारत को अलग-थलग नहीं कर सका। वहीं, जबकि खाड़ी के देशों से लगातार संबंध प्रगाढ़ हो रहे। यानी दुनियां में भारत के लगातार ताकतवर एवं मजूबत होने का संकेत।


रामगोपाल यादव कहां?
सपा नेता रामगोपाल यादव की चर्चा नहीं हो रही। जबकि अवसर यूपी में चुनावी। मुलायम सिंह उम्रदराज हो गए। इसीलिए असक्रिय। शिवपाल यादव सपा से गठबंधन करके पछता रहे। जबकि अर्पणा यादव सपाई कुनबा छोड़कर भाजपा में चली गईं। डिम्पल यादव मैदान में नहीं उतरीं। लेकिन रामगोपाल यादव कहीं नजर नहीं आ रहे। याद है न। जब 2016 में जब यादव कुनबे में झगड़ा चरम पर था। तो रामगोपाल यादव की काफी चर्चा हुई थी। शिवपाल यादव ने सार्वजनिक तौर पर उन पर गंभीर आरोप लगाए थे। यहां तक कहा गया। अखिलेश वही कर रहे। जो रामगोपाल समझा रहे। लेकिन अब वह चुनावी मौके पर गायब से। आखिर इसका मतलब क्या? कहीं, यह चुनाव बाद के हालात का संकेत तो नहीं? रामगोपाल यादव कहीं असफलता का ठीकरा अपने सिर तो नहीं फुड़वाना चाहते। इसीलिए सबसे दूरी बनाए हुए। या सार्वजनिक चर्चा से दूर रहकर चुपचाप पर्दे के पीछे पार्टी का काम कर रहे? सवाल तो बनता है!
-दिल्ली डेस्क

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