जुलाई 2016 से नियुक्ति नहीं, कैसे हो वीरांगनाओं की सुनवाई
सशस्त्र सेना अधिकरण में साढ़े पांच साल से न्यायिक सदस्य की नियुक्ति नहीं
जयपुर। सैन्य विधवाओं और भूतपूर्व सैनिकों के मामलों की सुनवाई के लिए भले ही अलग से सशस्त्र सेना अधिकरण बना हुआ है, लेकिन इसमें पिछले करीब साढ़े पांच साल से न्यायिक सदस्य की नियुक्ति नहीं होने के चलते इनके मुकदमों की सुनवाई नहीं हो पा रही है। न्यायिक सदस्य के रूप में यहां तैनात रही हाईकोर्ट की पूर्व न्यायाधीश मीना वी. गोम्बर के जाने के बाद से जुलाई 2016 से यह पद खाली चल रहा है। वहीं प्रशासनिक सदस्य के तौर पर बीच-बीच में कई अधिकारियों को नियुक्त किया गया, लेकिन उन्हें अकेले मुकदमों की सुनवाई का अधिकार ही नहीं है। जानकारी के अनुसार यहां करीब पांच हजार मुकदमों को सुनवाई का इंतजार है।
अन्य अदालतों में सुनवाई नहीं
जयपुर एएफटी का गठन 22 जून, 2009 को हुआ था। वहीं 29 जुलाई, 2016 को इसमें न्यायिक सदस्य का पद खाली हो गया। वहीं कुछ माह बाद ही प्रशासनिक अधिकारी का पद भी रिक्त हो गया। हालांकि बीच में कई अधिकारी यहां आए, लेकिन वे मुकदमों की सुनवाई नहीं कर सके। एएफटी को तीनों सेनाओं से जुड़े सैनिकों के प्रकरणों को सुनवाई का अधिकार है। अलग से अधिकरण होने के चलते अन्य अदालतों को सैन्यकर्मियों के मामले की सुनवाई का अधिकार भी नहीं है।
हाईकोर्ट के पूर्व जज और कर्नल रैंक का होता है सदस्य
एएफटी में न्यायिक सदस्य के तौर पर हाईकोर्ट के पूर्व जज को नियुक्त किया जाता है। इसी तरह प्रशासनिक सदस्य के तौर पर कर्नल रैंक के पूर्व सैन्य अधिकारी को लगाया जाता है। जानकारी के अनुसार इन पदों पर नियुक्ति करने का कार्य केन्द्रीय विधि मंत्रालय को है।
जंग में गोली खाली, पेंशन की आस में मौत
एक सैन्यकर्मी होशियार सिंह वर्ष 1971 की लड़ाई में गोली लगने से अपंग हो गए। इसके कई सालों बाद उन्हें बिना पेंशन सेवा से हटा दिया गया। इस पर उन्होंने सितंबर 2011 में एएफटी में केस दायर किया, लेकिन सुनवाई पूरी होने से पहले की सितंबर 2017 में उनकी मौत हो गई। इस संबंध में एएफटी एडवोकेट्स एसोसिएशन के महासचिव ओमप्रकाश श्योराण ने बताया कि इस संबंध में हमने सीजेआई को पत्र लिखकर वस्तुस्थिति से अवगत कराया है। सदस्यों की नियुक्ति नहीं होने से सैन्यकर्मी, पूर्व सैन्यकर्मी और उनके आश्रितों के मामलों की सुनवाई नहीं हो पा रही है।
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