हम दो-हमारे दो : राजस्थान का सपना पूरा : 19 जिलों में ‘बच्चे दो ही अच्छे’ की सोच से पूरा टारगेट

14 जिलों में औसत तीन से अधिक संतान हो रही पैदा

 हम दो-हमारे दो : राजस्थान का सपना पूरा :  19 जिलों में ‘बच्चे दो ही अच्छे’ की सोच से पूरा टारगेट

शहरों में युवाओं की सोच हम दो हमारे एक

जयपुर।  देश में अभी भी 14 जिलों में बच्चे दो ही अच्छे की सोच बनना बाकी है। इन जिलों में अभी भी नव दंपत्ति के परिवार में तीन या इससे अधिक बच्चे पैदा हो रहे हैं। अगर इन जिलों में हालात सुधरे तो प्रदेश में परिवार में बच्चों का औसत दो से भी कम हो जाए और जनसंख्या वृद्वि पर बड़ा ब्रेक लगे। राहत की बात यह भी है कि शहरी क्षेत्रों में नई पीढ़ी एक बच्चे से ही अपने परिवार को पूर्ण मानने लगी है। शहरी क्षेत्रों में एनएफएचएस सर्वे के सैंपल सर्वे में औसतन 1.7 ही बच्चे नव दंपत्तियों के परिवार में पैदा हो रहे हैं। ग्रामीण में यह दो से मामूली ज्यादा 2.1 है।

देश में इंदिरा गांधी की सरकार ने जनसंख्या नियंत्रण को बालकवि बैरागी के लिखे हम दो-हमारे दो का नारा दिया था। राजस्थान में अब जाकर यह सपना पूरा हुआ है, लेकिन प्रदेश के इस सपने को पूरा करने के भागीदार केवल 19 जिले ही हैं।

इन बातों पर चिंता, सभी जिलों में छोटे परिवार को जरुरी
1. महिलाओं पर ही छोटे परिवार का जिम्मा, पुरुष नसबंदी को क्यों नहीं आते
चिकित्सा विभाग सालाना परिवार नियोजन पर 150 करोड़ रुपए खर्च करता है। नसबंदी कराने पर प्रोतसाहन के रूप में 1400-2000 रुपए तक दिए जा रहे हैं। चिंतनीय यह है कि पुरुष छोटे परिवार के लिए महिलाओं को ही आगे कर रहे हैं। उनकी भागीदारी शून्य ही है। प्रदेश में 42.4 फीसदी महिलाएं गर्भनिरोधक उपाय जैसे आॅपरेशन या अन्य साधन से गर्भधारण होने से रोक रही हैं। लेकिन पुरुष मात्र 0.3 फीसदी यानी कहें तो शून्य नसबंदी कराने ही आ रहे हैं।

2. 7.6 फीसदी दंपत्ति परिवार नियोजन की पहुंच से बाहर
चिकित्सा विभाग के आंकड़ों के अनुसार पूरे प्रदेश में दो बच्चों का परिवार नियोजित करने के लिए 72 फीसदी नई दंपत्ति के पास इसके साधन या गर्भनिरोधक उपाय की पहुंच होनी जरुरी है। लेकिन अभी 7.6 फीसदी कम यानी 64.4 फीसदी तक ही यह पहुंच पा रहे हैं। इससे प्रजनन दर कई जिलों में ज्यादा है। परिवार कल्याण के परियोजना निदेशक डॉ. गिरीश द्विवेद्वी की माने तो इन तक चिकित्सा विभाग की पहुंच नहीं बनी है या फिर ये नियोजन के साधन लेने नहीं आ रहे हैं। नियोजन को तय टारगेट पूरा हो जाए तो सभी जिलों में छोटे परिवार का सपना भी पूरा हो जाएगा।

3.  शिक्षा बेहद जरुरी
जिन 14 जिलों में प्रजनन दर ज्यादा है यानी बच्चे 3 या इससे अधिक हो रहे हैं। उनमें शिक्षा का प्रतिशत ज्यादातर में कम है। इसके चलते जागरुकता भी समानुपाती कम ही है। इसलिए छोटे परिवार की सोच विकसित करने के लिए शिक्षा का स्तर बढ़ाने की जरुरत है। वहीं इनमें बॉर्डर जिले, आदिवासी जिले, मरूस्थली जिलों की संख्या सर्वाधिक है। संभागीय मुख्यालयों में केवल मात्र उदयपुर ऐसा जिला है जहां प्रजनन दर 3 या इससे अधिक है।

19 जिले जहां दो बच्चों की सोच बनी
अजमेर, अलवर, भीलवाड़ा, बीकानेर, बूंदी, चित्तौड़गढ़, चूरू, दौसा, गंगानगर, हनुमानगढ़, जयपुर, झालावाड़, झुंझुनूं, जोधपुर, कोटा, नागौर, प्रतापगढ़, सीकर, टोंक।

14 जिले जहां परिवार अभी भी बड़ा
बाड़मेर, बांसवाड़ा, जालौर, जैसलमेर, उदयपुर, पाली, राजसमंद, सिरोही, सवाईमाधोपुर, धौलपुर, बारां, भरतपुर, डूंगरपुर, करौली।

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