कुम्हार परिवारों पर रोजी रोटी का संकट
करवर में 66 परिवारों में अब महज 6 परिवार ही मिट्टी के बर्तन बना रहे
करवर क्षैत्र में मिट्टी व ईंधन की कमी के चलते लागत ज्यादा आने लगी है और मुनाफा बहुत कम होता जा रहा है जिससे कुम्हार के घर परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है,
करवर। क्षैत्र में मिट्टी व ईंधन की कमी के चलते लागत ज्यादा आने लगी है और मुनाफा बहुत कम होता जा रहा है जिससे कुम्हार के घर परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है, इसलिए पारंपरिक धंधे को छोड़कर अन्य धंधों की ओर युवा वर्ग रुख करने लगा है। एक समय करवर के 66 कुम्हार के परिवार मिट्टी के बर्तन तैयार करते थे लेकिन अब महज 6 परिवार ही यह काम कर रहे है। इन परिवारों को मिट्टी भी दूर-दूर से लानी पड़ती है। क्षेत्र में कुम्हारों का मटका व्यवसाय ठप होने से उन्हें रोजी रोटी और घर परिवार की आजीविका का संचालन करने में काफी परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
मिट्टी के बर्तनों की जगह स्टील और एल्युमिनियम के बर्तनों ने ले ली
एक-दो दशक पूर्व मिट्टी के बर्तनों का क्रेज बहुत ज्यादा हुआ करता था। हर घर में गर्मी के समय में ठंडे पानी के लिए मिट्टी से बने मटके,मटकियां,घडे देखे जाते थे। और ग्रामीण इलाकों में तो लोग खाना पकाने ओर खाना परोसने के लिए मिट्टी से बने बर्तनों का ही उपयोग किया करते थे। लेकिन बदलते समय के साथ- साथ यह व्यवसाय लुप्त होने के कगार पर हैं। मौजूदा समय में रसोई में स्टील और एलुमिनियम के बर्तनों में खाना पकाया व खाया जाने लगा है। जिसके चलते इंसान को कई तरह की बीमारियों का सामना करना पड़ रहा है। आधुनिक व आर्थिक युग के दौर में धीरे-धीरे मिट्टी के बर्तनों का चलन कम होने से इस उद्योग धंधे पर मंदी के बादल छाने लगे है। पहले घर -घर में मिट्टी से बने हुए मटकों का ही उपयोग होता था। लेकिन अब इनकी जगह वाटर कूलर और फ्रिज ने अपनी जगह बना ली , जिसके चलते रोजगार में भी कमी आई है। आज भी यह व्यवसाय आर्थिक तंगी से जूझ रहा हैं और धीरे -धीरे मिट्टी के बर्तन बनाने का मोह भंग होता जा रहा है।
अब मिट्टी व ईधन की कमी के चलते लागत ज्यादा आने लगी है और मुनाफा बहुत कम होता जा रहा है जिससे घर परिवार का खर्च चलाना मुश्किल हो रहा है, इसलिए पारंपरिक धंधे को छोड़कर अन्य धंधों की ओर युवा वर्ग रुख करने लगा है। - पप्पू लाल कुम्हार, कारीगर
धीरे -धीरे मिट्टी के बर्तनों की खरीद कम होने से परंपरा लुप्त होती जा रही है और युवा पीढ़ी मिट्टी के बर्तन बनाने से मुंह मोड रही है, क्योंकि इसमे अच्छा मुनाफा नहीं मिल रहा और अन्य काम की ओर युवा वर्ग रुख करने लगा है। - सोजी लाल कुम्हार,कारीगर
मिट्टी कला से जुड़े हुए उद्योगों के लिए सरकार की कई कल्याणकारी योजनाएं चल रही है साथ ही एनजीओ भी हुनर हाट बाजार लगाकर इनको प्रमोट करते रहते हैं। सरकार भी ऐसे उद्योगों पर काम करने वाले लोगों को प्रोत्साहित करने का काम कर रही है।
-डूंगर राम गेदर,उपाध्यक्ष शिल्प एवं माटी कला बोर्ड राजस्थान सरकार
एक दशक पूर्व मिट्टी से जुड़े हुए व्यवसायियों को मिट्टी व र्इंधन आसानी से उपलब्ध हो जाती थी लेकिन अब मिट्टी व र्इंधन की बहुत ज्यादा समस्या होने से हैं यह सीजनेबल व्यवसाय हो गया है।
- कजोड़ी लाल प्रजापत,राष्ट्रीय कुम्हार महासभा प्रदेश उपाध्यक्ष
मिट्टी से बने हुए बर्तनों में खाना बनाने व खाना परोसने से आयरन , फास्फोरस ,कैल्शियम और मैग्नीशियम की मात्रा पाई जाती है जो शरीर के लिए बेहद फायदेमंद होती है। मिट्टी के बर्तनों में होने वाले छोटे-छोटे छिद्र आग और नमी को बराबर सकुर्लेट करते हैं जिससे खाने के पौष्टिक तत्व सुरक्षित रहते हैं।
-डॉ दिनेश कुमार शर्मा, वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी इंद्रगढ़
मिट्टी से बर्तन बनाने वाले व्यवसाइयों को अपना उद्योग आगे बढ़ाने के लिए राजस्थान सरकार द्वारा मुख्यमंत्री लघु उद्योग प्रोत्साहन योजना के अंतर्गत 3 लाख तक का ब्याज मुक्त ऋण दिया जाता है ऐसे लोग मेले या हाट बाजार में जाते हैं तो आने जाने का स्लीपर कोच का किराया भी सरकार वहन करती हैं। वहां जो इनको दुकानें आवंटित की जाती है जिसका किराया 50% खुद को वाहन करना होता है बाकी का राजस्थान सरकार वहन करती हैं।
-चंद्रमोहन गुप्ता, महाप्रबंधक , जिला उद्योग एवं वाणिज्य केंद्र बूंदी
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