जानिए राजकाज में क्या है खास?

जानिए राजकाज में क्या है खास?

सूबे की राजनीति में केबिनेट रिशफलिंग को एक बार फिर शगूफा उठा है। शगूफा भी पिंकसिटी से लेकर लालकिले वाली नगरी तक दौड़ रहा है। रिशफलिंग को लेकर हर कोई अपने हिसाब से मायने निकाल रहा है। निकाले भी क्यों नहीं, राजधर्म आड़े जो आ रहा है। दिल्ली तक की भाग दौड़ में एक बात का खुलासा हुआ है कि आलाकमान को एक सूची को इंतजार है।

एल एल शर्मा
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इंतजार लिस्ट का

सूबे की राजनीति में केबिनेट रिशफलिंग को एक बार फिर शगूफा उठा है। शगूफा भी पिंकसिटी से लेकर लालकिले वाली नगरी तक दौड़ रहा है। रिशफलिंग को लेकर हर कोई अपने हिसाब से मायने निकाल रहा है। निकाले भी क्यों नहीं, राजधर्म आड़े जो आ रहा है। दिल्ली तक की भाग दौड़ में एक बात का खुलासा हुआ है कि आलाकमान को एक सूची को इंतजार है। सूची के लिए सूबे के नेताओं से भी पूछताछ हुई, पर उनके पास भी नहीं पहुंची। राज का काज करने वालों में खुसर-फुसर है कि आलाकमान को दस महीने से उस सूची का इंतजार है, जिसमें अंसतुष्ट खेमे की ओर से मंत्री बनाया जाना है। कन्फ्यूजन के चलते सूची फाइनल नहीं हो पा रही, चूंकि रोजाना नाम जोड़ने और हटाने से ही फुर्सत जो नहीं है। हम बताय देते हैं कि दिल्ली वाले तो पहले रिशफलिंग में राज के रत्नों की संख्या 21 से 26 करने के मूड में है।

जब सेनापति कमजोर हो तो....
आज हम बात करेंगे सेनापति की। सेनापति कमजोर होता है, तो सेना का जीतना नामुमकिन नहीं असंभव होता है। सूबे की सियासी राजनीति में भी इन दिनों कुछ ऐसा ही चल रहा है। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि सूबे में पिछले एक साल से जो चल रहा है, उसके लिए लोकल लीडरशिप नहीं, बल्कि लालकिले वाले महानगर में बिराजे पार्टी आलाकमान ज्यादा जिम्मेदार हैं। अब देखो ना जो कुछ हो रहा है, वह हाथ वाली पार्टी के लिए नहीं बल्कि पर्सनल एजेण्डे के लिए है, तभी तो सिर्फ थप्पी की वजह से दस महीनों में भी सुलटारा नहीं हो पाया, वरना दस दिन भी नहीं लगते। अब बेचारे आलाकमान भी क्या करे हम उम्र वालों की यारी दोस्ती आड़े जो आई हुई हैं।

सौम्य-शील और भगवाधारी
सूबे में इन दिनों भगवाधारी भाई लोगों की हालत कुछ ज्यादा ठीक नहीं है। बेचारे अपने ही दल की सौम्या और शील के फेर में फंसे हुए हैं। फेर भी ऐसा है कि न उगला जा रहा है और नहीं निगला। बैठकों में चिंतन-मंथन करने वाले भाईसाहबों को तनिक भी अहसास नहीं था कि राज की बड़ी चतुराई से ग्रेटर वाली सौम्या और शील की आड़ में भारती भवन तक गर्मी हो जाएगी। अब छोटे भाइयों को कौन समझाए कि बड़े भाईसाहबों के इशारों पर देश हित में ऐसे ही काम करोगे, तो कई राजा आएंगे और राम बनकर चले जाएंगे। राज का काज करने वाले साहब लोग भी लंच केबिनों में गुनगुना रहे हैं कि रुपया नाम की लूट है, लूट सके तो लूट-अंत काल पछताएगा, प्राण जाएगा छूट।

टोटका लाल चींटी का
टोटका तो टोटका ही होता है, कब और कहॉं करना पड़ पाए, कुछ नहीं कहा जा सकता। अब देखो ना जयपुर ग्रेटर निगम में शील जी ने दूसरी बार मेयर की कुर्सी संभाली, तो जाने-अनजाने में टोटका हुए बिना नहीं रह सका। किसी शुभचिंतक की फूल माला में आई लाल चींटी ने मैडम को मैसेज दे दिया कि अब यह कुर्सी इतनी मखमली नहीं है, जितनी पहले वाले काल में थी। कभी भी किसी का गलत पगफेरा हो सकता है, जैसे पहले दिन ही फूल माला की आड़ में लाल चींटी ने अपना कमाल दिखा दिया।

एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं बल्कि संतुष्ट और असंतुष्टों को लेकर है। दोनों खेमों के नेताओं की नींद उड़ी हुई है। इंदिरा गांधी भवन में आने वाले सालों पुराने हार्ड वर्कर्स बतियाते हैं, कि अब असंतुष्टों की हालत देखते लायक है, उनके चेहरों पर चिन्ता की लकीरें साफ दिखाई देने लगी है। कुछ वरिष्ठों ने राज के खिलाफ झण्डा तो उठा लिया, परन्तु अब सबसे ज्यादा नुकसान उन्हीं को होता दिख रहा है। चूंकि यह राजनीति है, इसमें जो होता है, वह दिखता नहीं है, और दिखता है, वह होता नहीं है। कसमें और वादे भूलकर सब अपनी-अपनी बचाने के लिए देवरे धोक रहे हैं। लेकिन जोधपुर वाले अशोक जी भाईसाहब की मंद-मंद मुस्कराहट के आगे बेबसी के सिवाय उनके पास कोई चारा भी तो नहीं है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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