माहे रमजान के पहले जुमे की नमाज अदा कर अमन चैन मांगी दुआ

सदके में झुके हजारों सिर

माहे रमजान के पहले जुमे की नमाज अदा कर अमन चैन मांगी दुआ

माहे रमजान के पहले जुमे की नमाज अता कर मोमिनों ने देश में अच्छी बारिश और अमन चैन की दुआ मांगी। रमजान में जुम्मे की नमाज का विशेष महत्व होता है।

कोटा। माहे रमजान के पहले जुमे की नमाज अता कर मोमिनों ने देश में अच्छी बारिश और अमन चैन की दुआ मांगी। रमजान में जुमे की नमाज का विशेष महत्व होता है। शहर की बड़ी मस्जिद, घंटाघर, स्टेशन रोड , नांता , कुन्हाड़ी, पीरबाग, बावड़ी मस्जिद में जुमे की नमाज अता की। मोमिनों माहे रमजान का छठा रोजा रखकर अल्लाह से जाने अनजाने में हुए गुनाहों की माफी मांगी।

ईश्वरसे निकटता का अवसर है रोजा 
माहे रमजान के पहले जुमे के मौके पर शहर काजी  अनवार अहमद कहा कि रोजा अल्लाह की भक्ति का एक मार्ग है। पवित्र कुरान में अल्लाह इस संदर्भ में कहता है कि श्रद्धावान लोगों, तुम पर रोजे अनिवार्य किए गए जिस तरह से तुम से पहले लोगों पर किए गए थे। ताकि तुम में तकवा (ईश्वर का भय) उत्पन्न हो। पवित्र कुरान के इस संदर्भ में ईश्वर ने उपवास का उद्देश्य तकवा बताया है। तकवा अरबी भाषा का शब्द है जिसका अर्थ होता है अल्लाह का भय। रोजे में व्यक्ति को खान-पान के साथ-साथ तमाम बुरी बातों से बचना आवश्यक होता है। ऐसा करने पर ही वह खरा उपवासी कहलाता है अन्यथा नहीं। यह सब कार्य उपवासी इसलिए करता है ताकि उसे तकवा हासिल हो। उपवासी तन्हाई में रहने पर कुछ नहीं खाता क्योंकि उसे पता है कि ईश्वर की दृष्टि सदैव उस पर है। यही मानसिक भाव जिससे व्यक्ति हर बुरा काम करने से रुक जाता है और सोचता है कि उसे ईश्वर देख रहा है। रोजा इंसान के भीतर से जुर्म करने की प्रवृत्ति खत्म कर कर देता है। रोजेदार रोजे के समय ईश्वर के बहुत पास होता है। अल्लाह को रोजेदार के मुंह की खुशबू बहुत पसंद है। रोजा रखने से मनुष्य के अंदर अपने भाई के प्रति सहानुभूति उत्पन्न होती है। एक अमीर (दौलतमंद) इंसान को भी रोजे में पता चलता है कि भूख और प्यास क्या होती है। इस तरह से इंसान इस सहानुभूति का उपयोग सत्कार्य करने में योगदान देकर करता है।

रमजान ईश्वर प्रेम के साथ मनुष्य प्रेम भी सिखाता है
नायब शहरकाजी जुबेर अहमद ने कहा कि इस्लाम में मानवजाति को प्रभावी और परिणाम कारक नैतिक व्यवस्था प्रदान की गई है। जिसमें व्यक्ति और समाज का हित है उसे इस्लाम ने नैतिक मूल्य या सदाचार (नेकी) कहा है। इसके विपरीत घातक बातों को दुराचार या बुरा घोषित किया है। नेकी का इस्लाम में बहुत विस्तृत उल्लेख किया गया है। इसकी सीमाएं विस्तृत और विशाल हैं। यहां तक कि रास्ते पर पड़ी कष्ट देने वाली वस्तु को हटा देना ताकि वहां से गुजरने वालों को कोई कष्ट होए यह भी नेकी है। इस्लाम में ईश्वर प्रेम के साथ मनुष्य प्रेम पर भी अत्यधिक जोर दिया।

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