रेल हादसे में दोनों पैर गंवा दिए पर जिंदगी से हार नहीं मानी

सुरेंद्र सिंह सोलंकी बूंदी में रेलवे में कार्यरत होने के साथ ही कुशल चित्रकार भी है

रेल हादसे में दोनों पैर गंवा दिए पर जिंदगी से हार नहीं मानी

34 साल पहले 4 अप्रैल 1988 को एक रेल दुर्घटना में दोनों पैर खो चुके सुरेंद्र सिंह सोलंकी की हौसलों से भरी जीवन यात्रा 35 वर्ष से विभिन्न आयामों को पार करती हुई। आज भी पूरी सकारात्मक सोच के साथ जारी है।

बून्दी। हौसलों से उड़ान को भला कोई कैसे रोक सकता है। यह पंक्ति साहित्यकार सुरेंद्र सिंह सोलंकी पर सटीक  साबित होती है। हंसता मुस्कुराता गर्मजोशी से जय माताजी करता एक चेहरा जब आपसे रूबरू होता है तो आप सोच नहीं सकते कि यह 100% निशक्त व्यक्ति है।  34 साल पहले 4 अप्रैल 1988 को एक रेल दुर्घटना में दोनों पैर  खो चुके सुरेंद्र सिंह सोलंकी की हौसलों से भरी जीवन यात्रा 35 वर्ष से विभिन्न आयामों को पार करती हुई। आज भी पूरी सकारात्मक सोच के साथ जारी है। 30 वर्ष से विकलांग विकास संगठन के संरक्षक एवं राष्ट्रीय दिव्यांग जगत पत्रिका के संरक्षक का कार्य करते हुए सोलंकी पश्चिम मध्य रेलवे में बूंदी में कार्यालय अधीक्षक के पद पर नियुक्त हैं। वेस्ट सेंट्रल रेलवे एंप्लाइज यूनियन के 30 वर्ष से कोषाध्यक्ष हैं। चित्रकला में भी अपनी अभिरुचि रखने वाले सोलंकी द बूंदी आर्ट एंबिशन गैलरी के संस्थापक हैं।

 वर्ष 1999 -2000 का रेड एंड वाइट ब्रेवरी अवार्ड के साथ 2019 में उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा विलक्षण प्रतिभा सम्मान भी दिया गया है। बहुमुखी प्रतिभा के धनी सोलंकी सकारात्मक सोच से कार्य करते हुए श्री महावीर विकलांग सहायता समिति नारायण सेवा संस्थान श्री नारायण सेवा संस्था रोटरी क्लब त्रिलोक सुलाया समिति एवं कई अन्य सामाजिक संस्थाओं के साथ सक्रिय योगदान देते आए हैं निशक्त होते हुए भी वह अपने सभी कार्य स्वयं ही करते हुए शाम तक वापस घर लौटते हैं। दिव्यांगता के बावजूद दिव्यांगों एवं निराश्रित जनों की सेवा के लिए जिला कलेक्टर शिवांगी स्वर्णकार द्वारा सम्मानित किया गया। वर्ष 2004  में अल्प बचत का अधिकतम संग्रह किए जाने पर जिला कलेक्टर  मुग्धा सिन्हा द्वारा सम्मानित सामाजिक न्याय एवं अधिकारिता मंत्रालय द्वारा वर्ष 2017-18 के लिए प्रेरणा स्रोत रोल मॉडल एवं उत्कृष्ट सृजनशीलता के लिए राजभवन में सम्मानित किया गया। वर्ष 2012 में एनडीडीवाई प्राकृतिक चिकित्सा की डिग्री प्राप्त सोलंकी अपने नाम से पहले डॉक्टर भी लिख सकते हैं। लगभग 80 कविताओं का कविता संग्रह कितना खोया कितना पाया है जिसका विमोचन 2019 में बूंदी कजली तीज मेले में पधारे राष्ट्रीय कवियों द्वारा किया गया।

 दोनों पैर गंवा देने के बाद भी नही छोड़ा साथ
जानकारी के अनुसार रेलव हादसे में पैर गंवाने के दौरान सोलंकी अविाहित थे। तब उनके विवाह के लिए चर्चा चल रही थी। लेकिन हादसे के बाद जब सोलंकी के दोनों पैर कट गए तो वे पूरी तरह निशक्त हो गए। उनसे भी अधिक साहस रखने वाली महिला उनकी पत्नी हेमलता है जिन्होंने स्वयं सही शारीरिक स्थिति होते हुए भी दिव्यांग व्यक्ति से स्वेच्छा से विवाह किया। सोलंकी को 1 पुत्र व पुत्री है। पुत्र विश्वेंद्र सिंह सोलंकी बी टेक डिग्री करने के पश्चात गुड़गांव में कार्य करते हैं। बूंदी में जन सामान्य से सीधा संपर्क रखने वाले सोलंकी पूरे देश भर में विभिन्न संस्थाओं के माध्यम से अपना संपर्क बनाकर लगातार सक्रिय रहते हैं।

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