तेल की कीमतें

कीमतों व महंगाई की तरफ घूम गया

तेल की कीमतें

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के मामलों की समीक्षा के लिए मुख्यमंत्रियों से संवाद के लिए बैठक बुलाई थी, लेकिनर इस बैठक में कोरोना पर तो कोई विशेष संवाद नहीं हुआ और मामला पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतों व महंगाई की तरफ घूम गया।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना के मामलों की समीक्षा के लिए मुख्यमंत्रियों से संवाद के लिए बैठक बुलाई थी, लेकिनर इस बैठक में कोरोना पर तो कोई विशेष संवाद नहीं हुआ और मामला पेट्रोलियम पदार्थो की कीमतों व महंगाई की तरफ घूम गया। मोदी ने विपक्षी दलों शासित राज्य सरकारों को नसीहत दी कि केन्द्र सरकार द्वारा उत्पाद शुल्क कम करने के बावजूद वैट में कटौती करके लोगों को राहत नहीं दी जा रही है। इसके बाद इस मुद्दे पर राजनीतिक बयानबाजी शुरु हो गई। इन राज्यों ने केन्द्र पर आरोप लगाया है कि ऊंचे उत्पाद शुल्क और उपकरों की वजह से तेल की कीमतें बढ़ी हैं। उसे उन करों और शुल्कों में कटौती करनी चाहिए। केन्द्र सरकार ने उत्पाद शुल्क में कटौती की थी और राज्य सरकारों से भी वैट में कटौती की अपील की गई थी, लेकिन तब ज्यादा भाजपा शासित राज्यों ने अपने करों में कटौती कर दी थी।

अभी सात राज्यों ने कटौती नहीं की हैं और ये सभी गैर भाजपा शासित हैं। स्वाभाविक रूप से तेल की कीमतों में भारी वृद्धि और बढ़ती महंगाई को लेकर केन्द्र सरकार दबाव में है। पेट्रोल, डीजल, रसोई गैस व प्राकृतिक गैस की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी का सिलसिला कायम है और इससे जनता में काफी रोष है। तेल की कीमतों के साथ-साथ हद पार होती महंगाई से भी लोग खासा नाराज हैं। तेल की कीमतें बढ़ने का सीधा असर खुदरा महंगाई पर पड़ता है। थोक महंगाई भी अभी अपने सबसे ऊंचे स्तर तक पहुंच गई है। चिंतित केन्द्र सरकार ने वेट घटाने की नसीहत विपक्षी राज्य सरकारों को देकर गेंद उनके पाले में डालने की कोशिश तो की है, लेकिन सवाल है कि क्या भाजपा शासित राज्यों में वैट घटाने से तेल की कीमतें सामान्य स्तर पर आई हैं और क्या वहां महंगाई का दबाव नहीं है। केन्द्र की वैट कम करने की नसीहत उचित हो सकती है, लेकिन व्यावहारिक प्रतीत नहीं होती। पेट्रोल-डीजल आदि की कीमतें अन्तरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल की कीमतों के आधार पर तय होती है और अभी कच्चा तेल काफी महंगा मिल रहा है। तेल की बढ़ती कीमतों पर अंकुश का मामला काफी टेढ़ा बन रहा है। जब कच्चा तेल सस्ता होता है तो भी उसकी राहत देश के लोगों को अपेक्षित ढंग से नहीं दी जाती। केन्द्र हो या राज्य सरकारें, तेल पर लगने वाले शुल्क और कर इनके राजस्व के बड़े स्रोत होते हैं। इसी के कारण ही पेट्रोलियम पदार्थों को जीएसटी से बाहर रखा गया है। केन्द्र सरकार स्वयं उदारतापूर्वक स्वयं पहले अपने करों में कटौती करें और फिर राज्यों से अपील करें।

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