3 बार कैंसर को हराने वाले रोगी ने स्वयं के बोन मेरो से ट्रांसप्लांट करवाकर कैंसर को दी मात
दोबारा कैंसर होने की संभावना होती है
ब्लड कैंसर के कुछ रोगियों को मुक्त होने के बाद दोबारा कैंसर होने की संभावना होती है। ऐसे में जरूरी है। उन रोगियों के उपचार में रोग के अनुसार उपलब्ध श्रेष्ठ उपचार पद्धति को अपनाया जाए।
जयपुर। ब्लड कैंसर के कुछ रोगियों को मुक्त होने के बाद दोबारा कैंसर होने की संभावना होती है। ऐसे में जरूरी है। उन रोगियों के उपचार में रोग के अनुसार उपलब्ध श्रेष्ठ उपचार पद्धति को अपनाया जाए। रक्त कैंसर से पीड़ित एक मरीज के लिए ऐसी ही एक तकनीक बोन मेरो ट्रांसप्लांट यानि बीएमटी वरदान साबित हुई। इस तकनीक के जरिए तीन बार कैंसर को हराने वाले रोगी ने स्वयं के बोन मेरो से ट्रांसप्लांट करवाकर कैंसर को हराया है। महावीर कैंसर हॉस्पिटल के मेडिकल ऑन्कोलॉजिस्ट डॉ. दीपक गुप्ता ने बताया कि नॉन हॉजकिन लिंफोमा (रक्त कैंसर का एक प्रकार) के रोगी का उसके खुद के बोन मेरो से ट्रांसप्लांट कर उपचार किया गया है। बीएमसीएचआरसी में यह पहला बोन मेरो ट्रांसप्लांट बगैर किसी जटिलता के सफलतापूर्ण किया गया। डॉ. गुप्ता ने बताया कि जयपुर निवासी रोगी को उपचार के लिए बीएमटी का सुझाव दिया गया लेकिन कोविड संक्रमण का दौर और पारिवारिक कारणों के कारण रोगी ने बीएमटी नहीं करवाया। तीन बार उपचार पूर्ण करने के बाद रोगी ने बीएमटी करवाने का निर्णय लिया। रोगी का आॅटोलॉगस ट्रांसप्लांट किया गया, जिसके काफी अच्छे परिणाम सामने आए हैं। तीन सप्ताह तक चले इस उपचार के बाद रोगी स्वस्थ है लेकिन करीब एक साल रोगी को मेंटेनेंस ट्रीटमेंट पर रखा जाएगा।
इन रोगियों में बीएमटी की आवश्यकता
नॉन हॉजकिन लिंफोमा, हॉजकिन लिंफोमा और मल्टीपल माइलोमा, ब्लड कैंसर के रोगियों में उपचार के लिए बोन मेरो ट्रांसप्लांट करवाने का सुझाव दिया जाता है। मुख्य तौर पर बीएमटी दो तरह से होता है जिसमें आॅटोलॉगस ट्रांसप्लांट (रोगी की स्वयं की बोन मेरो से ट्रांसप्लांट) और दूसरा ऐलोजेनिक ट्रांसप्लांट (रोगी के रक्तसंबधि से बोने मेरो मैच करवाकर ट्रांसप्लांट) है। रोगी और उसकी बीमारी की स्थिति के आधार पर ट्रांसप्लांट की प्रकिया का चयन किया जाता है।
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