'राजकाज'

जानें राज-काज में क्या है खास

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पर्दे के पीछे की खबरें जो जानना चाहते है आप....

    मायने मुंह खोलने के : पॉलिटिकल मामलों में आधे से ज्यादा समय अपना मुंह बंद रखने वाले पार्लियामेंट्री अफेयर्स मिनिस्टर कोटा वाले शांतिजी भाईसाहब ने शनि को लालकिले वाली नगरी में अपना मुंह खोला, तो पूरे सूबे में कानाफूसी हुए बिना नहीं रही। कानाफूसी भी भगवा वाले भाई लोगों में नहीं, बल्कि हाथ वाले ब्रदर्स में है। कई दिनों से राज की कुर्सी के लिए उछलकूद कर रहे कुंभ राशि वाले ब्रदर के समझ में नहीं आ रहा है कि पॉलिटिकल बयानों से कोसों दूर रहने वाले धारीवालजी के मुंह खोलने के पीछे का राज क्या है। राज का काज करने वाले भी लंच केबिनों में बतियाते हैं कि शांत रहने वाले भाईसाहब ने लू के थपेड़ों के बीच ऐसे ही मुंह थोड़े ही खोल दिया, उनको भी किसी ने मजबूर किया होगा। अब मजबूर किसने किया, ये तो समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी हैं।


    चर्चा में ऑड एंड इवन: पड़ोसी सूबे में इन दिनों ऑड एंड इवन को लेकर रोजाना कई तरह की चर्चाएं हो रही हैं। हो भी क्यों ना, मामला पांच नदियों वाले प्रदेश से ताल्लुक जो रखता है। झेलम, चेनाब, रावी, व्यास और सतलज नदियों का पानी पीने वाले सरदारों के समझ में नहीं आ रहा कि दिल्ली वाले केजरीवालजी का आदेश में मानें या फिर अपनी मस्ती में रहने वाले भगवंत का मान बढ़ाएं। चर्चा है कि जब कोई नहीं सूझा तो शनि को दोपहर में सरदारों के लीडर ने बुद्धि लगाकर फरमान जारी कर दिया कि ऑड एंड इवन के हिसाब से दिन बांट लो, एक दिन केजरीजी की मानो, तो दूसरे दिन भगवंतजी की मानो। अब भाई लोग दो दिन से भंगड़ा कर रहे हैं, थमने का नाम नहीं ले रहे।


    ऑल इज वेल : सूबे में हाथ वाले भाई लोगों के साथ ब्यूरोक्रेट्स भी कई दिनों से कंफ्यूज्ड हैं। उनका कंफ्यूज्ड होना भी लाजमी है, चूंकि हर घंटे नई बात उनके कानों तक पहुंचती है। मसखरों ने जब से मई एंड में बहुत बड़ा फैसला होने की डेट दी तो कइयों के पैर तो जमीन पर ही नहीं टिक रहे। हाथ वाले वर्कर्स के बजाय ब्यूरोक्रेट्स तो हाथ मिलाने के बाद हाल-चाल पूछने के बजाय राज में क्या चल रहा है की चर्चा करने में कतई चूक नहीं करते। अब इनको कौन समझाए कि फैसला तो पिछले साल नवंबर में हो चुका है, जब राज के रत्नों की संख्या बीस से बढ़ाकर तीस की गई थी। अब तो आॅल इज वेल है, न राज की कुर्सी वाले बदलेंगे और नहीं राज के रत्न। अब तो अगले मिशन के लिए जिनकी रगड़ाई होना बाकी है, उनको रगड़ा जाएगा, बाकी रामजी की कृपा है।


    रत्नों की बढ़ती चिंता: इन दिनों राज के कई रत्नों का वजन एकदम कम होने लगा है। शरीर से तो दुबले हो ही रहे हैं, चेहरों पर भी चिंता की लकीरें भी साफ दिखाई देने लगी हैं। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के दफ्तर में यह चर्चा का विषय बना हुआ है। संगठन से जुड़े एक साहब ने तो चौथे महीने की 28 तारीख को एक समारोह में दो रत्नों को इसका कारण पूछ भी लिया। बात जब बाहर आई तो, आसपास खड़े लोगों के पास हंसने के अलावा कोई चारा भी नहीं था। रत्नों का कहना था कि भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली वालों की ओर से चलाई मुहिम यूपी के बाद सूबे में घुस गई, तो कहीं भी मुंह दिखाने लायक नहीं रहेंगे। इसकी याद आते ही खाना पीना तक भूल जाते हैं।


    चर्चा छुट्टी की: हाथ वाले भाई लोगों में इन दिनों छुट्टी को लेकर बड़ी चर्चा है। सूबे के सदरों के साथ पीसीसी का ठिकाना भी इससे अछूता नहीं है। सूची में जिन लोगों के नाम गिनाए जा रहे हैं, उनके चेहरों पर चिन्ता की लकीरें भी साफ दिखाई देने लगी हैं। चर्चा है कि एक गुप्त छानबीन की मुताबिक 108 में से साठ से ज्यादा विधायकों की परफोरमेंस ठीक नहीं है। रिपोर्ट देने वाले और कोई नहीं, बल्कि जिलों के सदर हैं, जो खुद टिकट की दौड़ में हैं। खुचर-फुसर है कि आगूणी के जिले में दिए गए रिपोर्ट कार्ड में साफ-साफ संकेत दिए गए हैं कि अगर राज में आना है, तो साठ की छुट्टी करनी होगी। राज का काज करने वाले बतियाते हैं कि अपने टिकट के लिए दूसरे का पत्ता साफ कराने वाली रिपोर्ट में ज्यादा दम दिखता नहीं है। चूंकि मामला एवरीबडी वान्ट्स टिकट से जुड़ा है।
एल. एल. शर्मा, पत्रकार

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