अदालत को ही न्याय की आस : पुलिस को मामले की जांच फिर से करने के आदेश

हम भारी हृदय और न्याय की उम्मीद के साथ ऐसे जुर्म के आरोपी को उम्रकैद दे रहे हैं, जो किसी अन्य ने किया है : हाईकोर्ट

अदालत को ही न्याय की आस : पुलिस को मामले की जांच फिर से करने के आदेश

फांसी की सजा को आजीवन कारावास मेंं बदला, कहा-जिन अफसरों ने फंसाया उन पर कार्रवाई की जाए

जयपुर। राजस्थान हाईकोर्ट ने झालावाड़ में सात साल की बच्ची की हत्या से पहले दुष्कर्म और अप्राकृतिक कृत्य करने से जुड़े मामले में हत्या के आरोप में अभियुक्त को दी गई फांसी की सजा को आजीवन कारावास में बदल दिया है। इसके साथ ही अदालत ने झालावाड़ एसपी को कहा है कि वह प्रकरण को री-ओपन करते हुए नए सिरे से जांच करे और उन लोगों को गिरफ्तार करें, जिनके डीएनए पीड़िता के कपड़ों पर पाए गए हैं। इसके साथ ही अदालत ने कहा है कि जिन अफसरों ने अपना केस लड़ने में असक्षम युवा को मामले में फंसाया है, उन पर कार्रवाई भी की जाए। जस्टिस पंकज भंडारी और जस्टिस अनूप कुमार ढंड ने यह आदेश राज्य सरकार के डेथ रेफरेंस व आरोपी के अपील पर सुनवाई करते हुए दिए।

अदालत ने अपने आदेश में कहा कि हम भारी हृदय और न्याय की उम्मीद के साथ ऐसे अपराध के आरोपी को आजीवन कारावास में भेज रहे हैं, जो किसी अन्य दो अपराधियों ने किया है। अदालत ने अधिवक्ता नितिन जैन और सरकारी वकील रेखा मदनानी की सराहना करते हुए कहा कि उन्होंने निष्पक्ष रूप से स्वीकार है कि पीड़िता से दो अन्य लोगों ने अपराध किया था। सुनवाई के दौरान प्रो-बोनो अधिवक्ता नितिन जैन ने अदालत को बताया कि घटना के समय आरोपी नाबालिग था। इसके अलावा प्रकरण में डीएनए रिपोर्ट भी आरोपी के ब्लड से मेल नहीं खाती है। ऐसे में उसकी फांसी की सजा को रद्द किया जाए।

क्या है मामला
झालावाड़ के कामखेड़ा थाना इलाके में सात साल की बच्ची से गत 28 जुलाई 2018 को बलात्कार और अप्राकृतिक कृत्य के बाद हत्या की वारदात हुई थी। पुलिस ने मामले में कोमल लोढ़ा को गिरफ्तार करते हुए घटना के 9 दिन में ही कोर्ट में आरोप पत्र पेश कर दिया। वहीं पॉक्सो कोर्ट ने भी आरोपी को अन्य अपराधों के अलावा हत्या के आरोप में 23 सितंबर 2019 को फांसी की सजा सुना दी। मामला हाईकोर्ट में आने पर पूर्व में अदालत ने फांसी को आजीवन कारावास में बदला था। इस पर राज्य सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में अपील की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने प्रकरण रिमांड करते हुए फांसी या आजीवन कारावास के संबंध में फैसला लेने का निर्देश दिया था।

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