वैक्सीन के पहले-दूसरे डोज के बीच समय का कम अंतराल जरूरी, सरकारी फैसले का विरोधाभासी है वैज्ञानिकों का निष्कर्ष
डेल्टा वैरिएंट के प्रतिरोध के लिए पहले और दूसरे डोज के बीच समय का अंतराल कम होना चाहिए। लांसेट पत्रिका में प्रकाशित समाचार में कहा गया है कि कम समय में दूसरा डोज लगा देने पर वैक्सीन का असर अधिक होता है। यह अनुशंसा भारत सरकार के उस फैसले की विरोधाभासी है, जिसके तहत उसने कोविशील्ड वैक्सीन के दोनों डोजों के बीच समय 6 से 8 सप्ताह से बढ़ाकर 12 से 16 सप्ताह कर दिया।
नई दिल्ली। डेल्टा वैरिएंट के प्रतिरोध के लिए पहले और दूसरे डोज के बीच समय का अंतराल कम होना चाहिए। लांसेट पत्रिका में प्रकाशित समाचार में कहा गया है कि कम समय में दूसरा डोज लगा देने पर वैक्सीन का असर अधिक होता है। यह अनुशंसा भारत सरकार के उस फैसले की विरोधाभासी है, जिसके तहत उसने कोविशील्ड वैक्सीन के दोनों डोजों के बीच समय 6 से 8 सप्ताह से बढ़ाकर 12 से 16 सप्ताह कर दिया। लांसेट में प्रकाशित समाचार में यह भी कहा गया है कि फाइजर वैक्सीन डेल्टा वैरिएंट के बरक्श कहीं कम प्रभावी है, जबकि हाल में डेल्टा वैरिएंट ने ही भारत में जनधन का भारी विनाश किया है। लांसेट के अध्ययन में कहा गया है कि जिन लोगों ने केवल एक डोज लिया है, उनमें उत्पन्न होने वाली रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी कम होती है। जिन लोगों में दोनों डोज के बीच का अंतराल बहुत अधिक होता है, उमनें डेल्टा वैरिएंट के लिए रोगप्रतिरोधक क्षमता काफी कम हो जाती है।
अध्ययन में कहा गया है कि फाइजर का पहला डोज 79 प्रतिशत लोगों में मूल स्ट्रेन यानी पहले स्ट्रेन के खिलाफ पर्याप्त एंटी बॉडी निर्मित कर देता है। लेकिन अल्फा वैरिएंट के मामले में यह 50 प्रतिशत कम हो जाता है, जबकि डेल्टा वैरिएंट के लिए यह 32 प्रतिशत ही रह जाता है और बी.1.351 या बीटा वैरिएंट के लिए केवल 25 प्रतिशत। संक्रामक रोगों की डॉक्टर एमा वाल कहती हैं कि इन परिणामों से सामने आया है कि इस संक्रमण को रोकने के लिए दूसरी डोज जल्द लगा दी जानी चाहिए। जिन लोगों में नि:संक्राम्यता या रोगप्रतिरोधक क्षमता कम है, उन्हें बूस्टर भी दिया जाना चाहिए।
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