आंदोलन खत्म हो
अब इसमें कोई संदेह नहीं रहा कि केन्द्र सरकार आंदोलनरत किसानों की सभी जायज मांगों को सहानुभूति पूर्वक विचार करने को तैयार है तो अब किसानों को अपना आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर देनी चाहिए।
अब इसमें कोई संदेह नहीं रहा कि केन्द्र सरकार आंदोलनरत किसानों की सभी जायज मांगों को सहानुभूति पूर्वक विचार करने को तैयार है तो अब किसानों को अपना आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर देनी चाहिए। सरकार तीनों विवादित कानूनों को वापस लेने की प्रक्रिया पूरी कर दी है। पराली जलाने को अपराध की श्रेणी से हटा लिया है और न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गठित होने वाली समिति में पांच किसान नेताओं को शामिल करने की घोषणा कर किसान संगठनों से पांच नाम मांग लिए हैं। सरकार ने किसानों पर दर्ज मुकदमों को वापस लेने के लिए राज्यों से कह दिया गया है। सरकार के लचीले रुख को देखकर किसान नेताओं का रुख भी लचीला दिखाई देने लगा है। वैसे भी लोकतंत्र की नैतिक मर्यादा का तकाजा है कि पिछले एक साल से अधिक समय से जारी आंदोलन को आगे खींचने का अब कोई औचित्य नहीं बनता। हालांकि संयुक्त किसान मोर्चा की सूची में बिजली को लेकर कानून बनाने, दूध के दाम तय करने आदि संबंधी मांगें भी शामिल हैं। सरकार ने दो बड़ी मांगों को मानना स्वीकार कर लिया है तो इन मांगों को मान लेना कोई मुश्किल काम नहीं है। हालांकि किसान नेता राकेश टिकैत ने अभी भी तेवर दिखाते हुए कहा है कि सरकार जब तक एमएसपी पर कानून नहीं बनाती आंदोलन के दौरान जान गंवाने वाले किसानों को मुआवजा और गृह राज्य मंत्री को पद से हटाने की घोषणा नहीं करती, तब तक किसान आंदोलन जारी रहेगा। टिकैत की यह जिद उचित जान नहीं पड़ती है और फिर भी यदि वे अड़े रहते हैं तो माना जाएगा कि टिकैत निजी तौर पर राजनीति कर रहे हैं। वे किसानों के हित में ज्यादा रूचि दिखाने की बजाए अपने निजी हितों की पूर्ति करना चाहते हैं। टिकैत को समझ होनी चाहिए कि एमएसपी कानून बनाना आज के दौर में आसान नहीं है। कोई भी सरकार इसे कानूनी जामा नहीं पहना सकती। इसमें अनेक जटिलताएं हैं, जिन पर विचार के लिए ही समिति का गठन किया जा रहा है। इसमें एमएसपी सहित किसानों से जुड़े कई मुद्दों पर विचार होगा। लोकतंत्र में हटधर्मिता अधिक नहीं चल सकती और सरकार ने इसे त्यागकर ही फैसले लिए हैं तो किसानों को भी अपनी जिद छोड़ देनी चाहिए।
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