आतंक का खतरा
अफगानिस्तान लंबे समय से आतंकी संगठनों का बड़ा ठिकाना बना हुआ है
अफगानिस्तान लंबे समय से आतंकी संगठनों का बड़ा ठिकाना बना हुआ है। अब वहां तालिबान के सत्ता में आने के बाद यह खतरा और बढ़ गया है। इस खतरे से चिंतित भारत और अमेरिका ने अफगानिस्तान पर दबाव बढ़ाना शुरू कर दिया है। दोनों देशों ने अफगानिस्तान से स्पष्ट कहा है कि उसे यह सुनिश्चित करना होगा कि वह अपनी जमीन का इस्तेमाल आतंकवाद के लिए नहीं होने देगा और साथ ही अलकायदा, लश्कर-ए-तैयबा और जैश-ए-मोहम्मद जैसे आतंकी संगठनों के खिलाफ कार्रवाई करेगा। दरअसल, आतंकवाद को लेकर भारत और अमेरिका ही चिंतित नहीं हैं, बल्कि यह वैश्विक संकट है। इसमें भारत की चिंताएं विशेष हैं, जो तीन दशक से ज्यादा सीमा पार आतंकवाद झेल चुका है। अफगानिस्तान की तरह ही पाकिस्तान भी आतंकवाद का बड़ा केन्द्र बना हुआ है। अमेरिका की कई चेतावनियों के बावजूद पाकिस्तान ने आतंकवाद के खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की है। तालिबान के सत्ता में आने के बाद तो उसने भारत में आतंकी गतिविधियों को ओर बढ़ा दिया है। आतंकवाद के खिलाफ सभी देशों को एकजुट होकर निपटने की जरूरत है। आतंकवाद के खतरे को लेकर भारत और अमेरिका के बीच दो दिन की रणनीतिक स्तर की वार्ता में इस बात पर सहमति बनी कि आतंकी गतिविधियों पर लगाम के लिए अफगानिस्तान पर लगातार दबाव बनाया जाना चाहिए। हाल ही में अफगानिस्तान में बिगड़ते हालात को लेकर रूस ने मास्को फार्मेट बैठक की थी, जिसमें रूस, चीन, पाकिस्तान, ईरान, भारत, कजाकिस्तान आदि कुछ और देश भी शामिल हुए। मास्को फार्मेट के बयान में कहा गया कि अफगानिस्तान के साथ संबंधों में अब नई हकीकत को ध्यान में रखना होगा। अब तालिबान सत्ता में है, जो हकीकत है, चाहे कोई देश उसे मान्यता दे या न दे। बयान में कहा गया कि तालिबान की सरकार को शासन व्यवस्था में सुधार करना होगा ताकि समावेशी सरकार बनाई जा सके। हालांकि बयान से भारत विशेष रूप से संतुष्ट नहीं था, लेकिन रूस से दोस्ती के चलते उसने कुछ कहने से बचना चाहा। भारत को रूस व अमेरिका के भरोसे पर नहीं बैठे रहना चाहिए, बल्कि अपनी अलग रणनीति बनानी होगी। क्योंकि एक तो आतंकवाद दूसरा यह है कि उसकी अरबों का निवेश अफगानिस्तान के पुन: निर्माण में फंसा हुआ है। अफगानिस्तान के मामले में चीन और पाकिस्तान का हस्तक्षेप लगातार बढ़ रहा है तो भारत को चुप नहीं बैठना चाहिए।
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