दीयों से जगमग करने वाला गजसिंहपुरा
हर घर के सामने काली और लाल मिट्टी तथा मटकों के ढेर
जयपुर। जयपुर के बीचों बीच आज भी एक गांव मौजूद है, जहां साठ कुंभकार परिवारों के करीब तीन सौ लोग मिलकर हर साल दीपावली पर लगभग 20 लाख से अधिक दीपक तैयार कर जयपुर के साथ आसपास के इलाकों में सप्लाई करते हैं। ठेठ ग्रामीण परिवेश का यह गांव गजसिंहपुरा अजमेर रोड पर मानसरोवर मेट्रो सटेशन के पास है। वाकई यह गांव मिट्टी के दीपकों की सबसे बड़ी मंडी है। वैसे तो दीपावली पर कोलकाता सहित कई जगहों से फैन्सी दीपक बिकने आते हैं, लेकिन पूजन के लिए साधारण दीपक इसी गांव से आते हैं। जयपुर के अलावा दिल्ली में यहां से दीपक की सप्लाई होती है।
जयपुर के बीच में बसा है गांव
गांव के बाहर मुख्य सड़क गोपालपुरा बाइपास पर कुछ घर हैं, जिनके सामने लगे दीपकों और मिट्टी के बर्तनों के ढेर दूर से बता देते हैं कि यह कुंभकारों का गांव है। मुख्य सड़क से गांव में आने के लिए छोटा रास्ता है। गांव में आते ही हर घर के सामने काली-लाल मिट्टी और मटके के ढेर लगे हैं। गांव के राजेश प्रजापत और कृष्ण कुमार प्रजापत का कहना है उनके पुरखे कई पीढ़ियों से यह कारोबार कर रहे हैं। वे हर दीपावली पर करीब एक लाख से ज्यादा दीपक बनाते हैं, जो जयपुर में ही सप्लाई हो जाते हैं। गांव में पहले कच्चे घर थे। बाद में पक्के बन गए। ज्यादातर दीपावली के सीजन में दीपक ही बनाते हैं। इसके अलावा लक्ष्मी-गणेश की मूर्तियां, पॉट्स, खिलौने, फैंसी आइटम, गमले भी बनाते हैं। दीपकों को पहले चाक पर तैयार कर सूखने के बाद गेरू यानि पहाड़ों की लाल मिट्टी में रंगा जाता है। फिर इन्हें भट्टी में पकाया जाता है। हनुमान प्रजापति ने बताया कि वे दसवीं तक पढ़े हैं। कोई नौकरी नहीं मिली, इसलिए पुश्तैनी धंधा ही अपना लिया। कितना कमा लेते हो के सवाल पर उन्होंने बताया कि बस ठीक से गुजारा हो जाता है। गांव में प्रजापति समाज की कुलदेवी श्रीयादे माता का मंदिर भी है। यह गांव पहले हीरापुरा ग्राम पंचायत में आता था। अब नगर निगम सीमा में आ गया है।
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