दिल्ली सिंहासन के लिए मरुप्रदेश की सियासत पच्चीसी

राजनीतिक चेतना का परचम फहराया है

दिल्ली सिंहासन के लिए मरुप्रदेश की सियासत पच्चीसी

आदिवासी संसदीय सीट बांसवाड़ा की महिलाओं ने सबसे अधिक 75.75% मतदान करके अपनी राजनीतिक चेतना का परचम फहराया है। 

जयपुर। दिल्ली के सिंहासन के लिए मरुप्रदेश के तीन करोड़ 28 लाख 35 हजार 337 मतदाताओं ने सियासत पच्चीसी की इबारत लिख दी है। प्रदेश में पड़े लोकसभा सीटवार मतों का विश्लेषण चौंकाता है। इस बार भी आदिवासी संसदीय सीट बांसवाड़ा की महिलाओं ने सबसे अधिक 75.75% मतदान करके अपनी राजनीतिक चेतना का परचम फहराया है। 

चूरू, झुंझुनूं, सीकर, पाली, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा और राजसमंद वे सीटें हैं, जहां महिलाओं ने पुरुषों से अधिक मतदान करके चुनावी समीकरणों को प्रभावित किया है। साल 2019 में चूरू, झुंझुनूं, सीकर, नागौर, पाली, बाड़मेर, जालोर, उदयपुर, बांसवाड़ा और राजसमंद संसदीय सीटों पर महिलाओं ने पुरुषों से अधिक वोट डाले थे। हम जब 2014 के चुनावों में पड़े वोटों का विश्लेषण करते हैं तो उस चुनाव में सिर्फ बांसवाड़ा की महिलाओं ने पुरुषों से अधिक वोटिंग की थी। महिला वोटिंग अधिक वहीं है, जहां-जहां सरकारी स्कूलों में लड़कों की तुलना में लड़कियां अधिक तादाद में हैं।

गंगानगर (एससी)
जानना जरूरी है : भाजपा ने पांच बार के सांसद निहाल चंद मेघवाल का टिकट काटकर प्रियंका बैलान को दिया। महिला उम्मीदवार होने के बावजूद सीट पर महिला मतदाताओं ने कम वोट डाला। नहरी इलाके की यह सीट दो बार से भाजपा के पास थी। 

बीकानेर (एससी)
जानना जरूरी है : यह वह सीट है जहां 2004 में फिल्म स्टार धर्मेन्द्र ने चुनाव जीता था। उसके बाद से यह सीट लगातार भाजपा के पास है। यह सीट 2009 से एससी है। 

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चूरू
जानना जरूरी है : 1999 से लगातार पांच चुनावों में यह सीट भाजपा को गई है। 1999, 2004 और 2009 में रामसिंह कस्वां यहां से सांसद थे और 2014  और 2019 में उनके बेटे राहुल कस्वां जीते। इस बार कस्वां कांगे्रस में चले गए। भाजपा ने यहां से पैरा ओलम्पियन देवेन्द्र झाझड़िया उतारा है। 

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झुन्झुनूं
जानना जरूरी है : यह सीट कांगे्रस का गढ़ रही है। 1999 से 2009 तक यहां शीशराम ओला सांसद रहे। 2014 से यह भाजपा के पास है।

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सीकर
जानना जरूरी है : शेखावाटी की इस सीट की तासीर बहुत अलग है। 1952 में राम राज्य परिषद से खाता खोलने वाली यह सीट जिसे चुनती है बाद में उससे बहुत नाराज भी रहती है। लेकिन दो दफा ऐसे कारण रहे जब सुभाष महरिया यहां से तीन बार और स्वामी सुमेधानंद दो बार जीते। स्वामी के सामने अब हैट्रिक की चुनौती है। 

जयपुर ग्रामीण
जानना जरूरी है : यह पुनर्सीमांकन के बाद 2009 से बनी नई सीट है। यहां लालचंद कटारिया ने खाता खोला था, जो अब कांगे्रस छोड़ कर भाजपा में चले गए। यहां दो बार भाजपा जीत रही है। 2014 और 2019 में जीते राज्यवर्धन राठौड़ अब राज्य सरकार में मंत्री हैं। लिहाजा, राव राजेन्द्र सिंह भाजपा के उम्मीदवार हैं जबकि कांगे्रस ने युवा अनिल चौपड़ा पर दांव खेला है।

जयपुर
जानना जरूरी है : भाजपा के इस गढ़ में पार्टी की महिला उम्मीदवार मंजु देवी के होने के बावजूद महिला मतदान प्रतिशत कम रहा। 2019  और 2014 में सांसद रहे रामचरण बोहरा का टिकट इस बार भाजपा ने काट दिया था। कांगे्रस ने पहले सुनील शर्मा को टिकट दिया, फिर अचानक बदलकर प्रताप सिंह खाचरियावास को उम्मीदवार बनाया। 

अलवर
जानना जरूरी है : महंत बालकनाथ के विधायक बनने के बाद भाजपा ने यहां से केन्द्रीय मंत्री भूपेन्द्र यादव को टिकट दिया जबकि कांगे्रस ने विधायक ललित यादव को।

भरतपुर (एससी)
जानना जरूरी है : इस सीट की यह रवायत बहुत ही जोरदार है कि यहां दो बार भाजपा जीतती है तो तीसरी बार कांगे्रस। कांगे्रस के तुरन्त बाद भाजपा दो बार। 1991 और 1996 में भाजपा, 1998 में कांगे्रस, 1999 और 2004 में भाजपा, 2009 में कांग्रे्रस और 2014 और 2019 में भाजपा। इस लिहाज से इस बार का चुनाव परिणाम चौंका सकता है। महिला उम्मीदवार होने के बावजूद महिला मतदान कम रहा है। यहां से कांग्रेस की उम्मीदवार संजना जाटव थी।

करौली-धौलपुर (एससी)
जानना जरूरी है : 2014 से यह नई सीट है। भाजपा की उम्मीदवार इन्दु देवी जाटव हैं। महिला उम्मीदवार होने के बावजूद सीट पर महिला मतदान कम है। सीट दो बार से भाजपा के पास है।

दौसा (एसटी)
जानना जरूरी है : गुर्जर मीणा राजनीति की इस धरती पर किरोड़ी लाल मीणा, हरिश्चंद्र मीणा और सचिन पायलट का दबदबा है। 

टोंक-स.माधोपुर
जानना जरूरी है : पुनर्सींमाकन के बाद यहां पहली बार कांग्रेस से नमोनारायण मीणा चुने गए जबकि 2014 और 2019 में भाजपा से सुखवीर सिंह जौनापुरिया। मुस्लिम बहुल यह सीट गुर्जर मीणा के वर्चस्व वाली है।  

अजमेर
जानना जरूरी है : 1989 से इस सीट का बहुत ही दिलचस्प उतार चढ़ाव है। तीन बार भाजपा(1989,1991,1996), फिर एक बार कांगे्रस(1998), दो बार भाजपा(1999,2004) फिर एक बार कांगे्रस(2009) और इसके बाद एक बार भाजपा(2014,2019) और एक बार कांगे्रस(2018 उपचुनाव  में रघु शर्मा)।

नागौर
जानना जरूरी है : दो बार से 1999 से इस सीट पर कभी कोई पार्टी दुबारा नहीं जीती। भाजपा की महिला उम्मीदवार ज्योति मिर्धा होने के बावजूद मतदान प्रतिशत यहां भी बराबर आते आते रह गया। इस सीट पर आरएलपी के हनुमान बेनीवाल पिछली बार भाजपा के साथ गठबंधन से जीते थे। इस बार वे कांगे्रस से गठबंधन करके मैदान में है।

पाली
जानना जरूरी है : यह सीट भी अजमेर की तरह अपनी अलग ही तासीर रखती है। 1989,1991 और 1996 में तीन बार भाजपा जीती फिर 1998 में कांगे्रस। इसके बाद दो बार भाजपा और एक बार कांगे्रस। 2014 और 2019 का चुनाव भाजपा के पीपी चौधरी जीते। कांगे्रस की उम्मीदवार संगीता बेनीवाल है और मतदान प्रतिशत बढ़ा है।

जोधपुर
जानना जरूरी है : पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत की इस गृह सीट का चरित्र बहुत अलग तरह का है। यह कभी भाजपा तो कभी कांगे्रस को विजयी बनाती रही है। यहां दो बार से केन्द्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत जीत रहे हैं। इस बार मुकाबला कड़ा है। 

बाड़मेर
जानना जरूरी है : निर्दलीय युवा विधायक रवीन्द्र सिंह भाटी के कारण बहुचर्चित इस सीट पर दो बार से भाजपा जीत रही है। इस बार केन्द्रीय मंत्री कैलाश चौधरी कड़े मुकाबले में हैं।

जालौर
जानना जरूरी है : बाहरी उम्मीदवारों को जिताने की प्रवृत्ति वाली यह सीट पर चार बार से भाजपा के पास है। तीन बार के सांसद देवजी पटेल की टिकट काटकर भाजपा ने इस बार लुम्बाराम चौधरी को प्रत्याशी बनाया। लेकिन यह सीट मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के बेटे वैभव गहलोत के कारण चर्चा में है, जो कांग्रेस के उम्मीदवार है।

उदयपुर (एसटी)
जानना जरूरी है : दो बार सांसद रहे अर्जुन मीणा का टिकट इस बार भाजपा ने काट दिया। उसके उम्मीदवार आरटीओ रहे मन्नालाल रावत हैं तो कांगे्रस के उम्मीदवार इसी जिले में कलेक्टर रहे ताराचंद मीणा ।

बांसवाड़ा (एसटी)
जानना जरूरी है : भाजपा इस सीट पर हर बार नए चेहरे को उतारती है। भाजपा ने कांग्रेस से आए महेन्द्रजीत मालवीया को  टिकट दी। बीएपी के राजकुमार रोत हैं, जिन्होंने तहलका मचा रखा है। बीएपी को समर्थन के बावजूद कांगे्रस का चेहरा भी डटा हुआ है।

चित्तौड़गढ़
जानना जरूरी है : मेवाड़ की सबसे अधिक प्रतिष्ठा वाली इस सीट पर इस बार भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष सी.पी. जोशी एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं तो उनके सामने कांगे्रस के उदयलाल आंजना को उम्मीदवार बनाया गया। यहां दो बार (1998 और 2009) को छोड़कर 1989 से 2019 तक भाजपा जीतती रही है। भाजपा का खाता 1989 में महेन्द्र सिंह मेवाड़ ने खोला था, जिनकी पुत्रवधू महिमा सिंह इस बार राजसमंद से भाजपा की उम्मीदवार हैं।

राजसंमद
जानना जरूरी है : इस सीट पर भाजपा ने उदयपुर के पूर्व राजघराने की महिमा सिंह को टिकट दिया था। यहां से पिछली बार दीयाकुमारी जीती थी। इस बार महिला मतदाताओं ने जमकर वोट डाले। 

भीलवाड़ा
जानना जरूरी है : राजस्थान की इस वस्त्र नगरी में 1999 से दो बार भाजपा और एक बार कांगे्रस और इसके बाद दो बार भाजपा जीतती रही है। 2009 में यहां से कांगे्रस के सी.पी.जोशी जीते थे। वे इस बार फिर चुनाव मैदान में है। 2014 से दो बार सांसद रहे सुभाष बहेड़िया का टिकट काटकर भाजपा ने इस बार दामोदर अग्रवाल को उतारा है।  

कोटा
जानना जरूरी है : 1989, 1991 और 1996 में भाजपा के पास रही यह सीट 1998 में कांगे्रस के पास चली गई। फिर यह 1998 में कांगे्रस के  पास चली गई। 1999 और 2004 में यह भाजपा के पास रही फिर कांगे्रस के पास। अब दो बार से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला जीत रहे हैं। 

झालावाड-बारां
जानना जरूरी है : पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के बेटे दुष्यंत सिंह यहां से 2004 से लगातार जीत रहे हैं। वे इस बार फिर जीतते हैं तो वे राजस्थान के सांसदों में सबसे सीनियर होंगे।  कांग्रेस की उम्मीदवार उर्मिला जैन भाया हैं। महिला उम्मीदवार के बावजूद मतदान प्रतिशत कम रहा।

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