जानिए राजकाज में क्या है खास

जानिए राजकाज में क्या है खास

दिल्ली दरबार के लिए हो रही जंग के नतीजों को लेकर दोनों बड़े दलों के ठिकानों पर चर्चा जोरों पर हैं। नेता अपनी-अपनी गणित के हिसाब से दावें करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे।

गणित अपना-अपना
दिल्ली दरबार के लिए हो रही जंग के नतीजों को लेकर दोनों बड़े दलों के ठिकानों पर चर्चा जोरों पर हैं। नेता अपनी-अपनी गणित के हिसाब से दावें करने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे। ठिकानों पर हार्ड कोर वर्कर्स का एक गुट ऐसा भी है जो यह सब चुपचाप देख और सुन रहा है। वे नेताओं के बीच में बोलना भी मुनासिब नहीं समझते हैं। चूंकि उनको डांट-फटकार जो मिलती है। बेचारे चाय-पान की थड़ियों पर ही खुसर-फुसर करते हैं, लेकिन उससे पहले अगल-बगल में देखे बिना नहीं रहते। उनकी गणित नेताओं से अलग ही है। उनमें खुसर-फुसर है कि इस बार केवल दो ही गुट है। एक गुट वह है, जिसने सिर्फ नमोजी के नाम पर वोट डाला है, चाहे कंडीडेट कोई भी हो। दूसरा गुट वह जो नमोजी के खिलाफ है और उनसे नफरत करते हैं, जिसने उनके नाम से वोट नहीं डाला, चाहे कंडीडेट अपनी ही बिरादरी का क्यों ना हो।

असर बृहस्पति का
इन दिनों पंडितों के भी पौ-बारह हैं। जहां मन हो, वहीं पंचांग खोलकर बिना पूछे ही बताना शुरू कर देते हैं। न जगह देखते हैं और न ही समय। अब देखो ना, शुक्र को अपने परिचित की शोकसभा में पहुंचे पिंकसिटी वाले पंडित जी ने बिना आगा-पीछा सोचे ही आदत के अनुसार अपना मुंह खोलना शुरू दिया। आसपास बैठे कुछ लोगों ने भी उन्हें जोजरू के पेड़ पर चढ़ा दिया। पंडितजी कहना था कि दो मई से गुरु बृहस्पति बदला है तो अपना असर दिखाए बिना कोई कसर नहीं छोड़ेगा। जब-जब बृहस्पति केन्द्र में आता है तो पब्लिक नारों से नहीं विवेक से वोट देती है। बृहस्पति 1977 और 2004 के बाद ही 2024 में केन्द्र में आया है। बृहस्पति के असर से सब कुछ उल्टा पुलटा होता है, यानी कि जहां जीत दिखती है, वहां हार हो जाती है और जहां हार दिखती है, वहां जीत हो जाती है।

लहर चली या थमी
सूबे में दिल्ली दरबार के लिए वोटिंग के बाद ठाले बैठे भाई लोग कुछ न कुछ शगुफा छोड़े बिना नहीं रहते। शगुफा छोड़ने वाले भी दोनों तरफ के हार्डकोर वर्कर है। हर संडे से नया शगुफा शुरू होता है, जो शनि की रात तक चलता है। इस संडे को मोदी लहर को लेकर नया शगुफा आया। पीसीसी के ठिकानेदारों ने जोर-जोर से चिल्ला कर कहना शुरू कर दिया कि इस बार दूर-दूर तक मोदी लहर नहीं थी, पब्लिक केवल पार्टी औैर कंडीडेट को ढूंढ रही थी। इस बार भगवा वाली मैडम को यूज नहीं करना भी पब्लिक को अखर रहा था। शेखावाटी के साथ हाड़ोती और मेवाड़ में दस सीटों पर लहर बेअसर रही। भगवा वाले भाई लोगों को अभी भी मोदी लहर पर भरोसा है।

एक जुमला यह भी
सूबे में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि तपन को लेकर है। जुमले की चर्चा सचिवालय के गलियारों में भी हुए बिना नहीं रहती। चर्चा करने वाले भी भगवा वाले भाई लोगों के एक खास गुट के लोग ज्यादा है और एक खास बंगले में उनका पग फेरा है, जिनका पांच महीनों से हाजमा खराब है। जुमला है कि सूबे में 30 जून के बाद भारी बदलाव होने की पोसिबिलिटी है। किसी न किसी पर गाज गिर सकती है, अगर सीटें कम हुई तो एनडीए में सूबे की भगवा वाली मैडम ट्रंप कार्ड हो सकती है। और तो और ब्यूरोक्रेसी भी रिचार्ज होगी। यानी की तपती रेत और तपते रेगिस्तान में सत्ता की तपन भी महसूस हुए बिना नहीं रहेगी। इस जुमले को समझने वाले समझ गए, ना समझे वो अनाड़ी है। 

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-एल एल शर्मा
(ये लेखक के अपने विचार हैं।)

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