जेपी नड्डा के नए कार्यकाल की चुनौतियां

भाजपा ने उनका कार्यकाल वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक बढ़ा दिया है

जेपी नड्डा के नए कार्यकाल की चुनौतियां

वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के बीच एनडीए के 15 सहयोगी पार्टी से छिटक चुके हैं, लेकिन कई वजह से ये लोकसभा चुनाव परिणामों पर असर नहीं डाल पाए, लेकिन अब भाजपा अलग परिदृश्य का सामना कर रही है।                

भारतीय जनता पार्टी के राजनीतिक धरातल को मजबूती देने, उसके संगठन के आधार को सुदृढ़ बनाने, उसका जनाधार बढ़ाने एवं विभिन्न राज्यों एवं लोकसभा चुनाव में जीत के नए कीर्तिमान गढ़ने की दृष्टि से राष्टÑीय अध्यक्ष जेपी नड्डा अपने नए कार्यकाल में अग्रसर हो रहे हैं, प्रतीक्षा और कयासों को विराम देते हुए भाजपा ने उनका कार्यकाल वर्ष 2024 में होने वाले लोकसभा चुनाव तक बढ़ा दिया है। एक बड़ी चुनौती के रूप में वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव एवं वर्ष 2023 में नौ राज्यों के विधानसभा चुनाव है। नड्डा ने न केवल देश के निराशाजनक आर्थिक परिदृश्य, महंगाई और बेरोजगारी के बीच पार्टी की पताका लहराने का बल्कि नौ ही विधानसभा चुनावों में शानदार जीत दिलाने का संकल्प व्यक्त किया है। जेपी आंदोलन से सुर्खियों में आए नड्डा विश्व की सबसे बड़ी राजनीतिक पार्टी का सफल नेतृत्व कर राजनाथ सिंह एवं अमित शाह के नेतृत्व में आए स्वर्ण युग को जारी रखा है और अब एक नए अभ्युदय की ओर कदम बढ़ा रहे हैं।

एक जमीनी कार्यकर्ता से ऊपर उठकर राजनीति में चमकते सितारे की तरह जगह बनाने वाले नड्डा राजनीतिक कौशल में महारथ हासिल कद्दावर के नेता हैं। अनेक सफलताओं एवं कीर्तिमानों के बीच कुछ हार भी उनकी झोली में गिरी है। गुजरात में भाजपा की शानदार जीत के उत्साह के साथ अध्यक्ष का कार्यकाल बढ़ने का ईनाम मिला तो है, लेकिन गृह राज्य हिमाचल प्रदेश में सरकार खोने का दर्द भी है। दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार के पंजाब तक पहुंचना एवं दिल्ली के निकाय चुनावों में अपेक्षित जीत न मिल पाना भी भाजपा के लिए संकट के रूप में है। बावजूद नड्डा ने भाजपा के ताज में मणि ही जड़े हैं। भाजपा को नई ऊंचाइयों तक पहुंचाने वाले नड्डा को आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत, प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का आशीर्वाद, अटूट विश्वास और अमित शाह का पूरा समर्थन मिला। राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में नड्डा की राह में असली चुनौतियों एवं संघर्ष की भरमार अब सामने है। यही उनके लिए असली परीक्षा का समय भी है, जब उन्हें वर्ष 2023 में 9 राज्यों में विधानसभा चुनाव वर्ष 2024 के आम चुनावों में अपनी क्षमता, राजनीतिक कौशल और सामर्थ्य को दर्शाना है। 
एक उत्कृष्ट संगठनात्मक नेता के रूप में जेपी नड्डा का पिछला अध्यक्षीय कार्यकाल संतोषजनक ही नहीं, बल्कि यशस्वी, उत्साहवर्धक एवं करिश्माई रहा है। उन्होंने अपने कार्यकाल में विधानसभा चुनावों में 70 फीसदी से अधिक सफलताएं हासिल की है। वर्ष 2024 तक के लिए उनके कार्यकाल का विस्तार उनकी उच्च स्तरीय क्षमता को ही प्रदर्शित करता है। नड्डा के समक्ष अपने गठबंधन साझेदारों को साथ लेकर चलने समेत कई चुनौतियां हैं। एनडीए का साथ छोड़कर कई दलों ने अपनी राह पकड़ ली है। देखा जाए, तो राज्यों में नड्डा की चुनावी सफलताएं निर्बाध रूप से जारी रही हैं। 2019 में भाजपा हरियाणा में सबसे बड़ी पार्टी के रूप में उभरी और उसने जननायक जनता पार्टी के साथ मिलकर सरकार बनाई। बिहार में पार्टी को 74 सीटों पर जीत मिली। कोरोना महामारी के बाद असम, यूपी, मणिपुर, उत्तराखंड और गुजरात में चुनावी सफलता मिली। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि नड्डा को अब कर्नाटक की सत्ता में फिर से वापसी को लेकर बड़ी योजना तैयार करनी होगी। इसी तरह तेलंगाना पर विशेष कार्य योजना बनानी होगी। उत्तर भारत के प्रमुख राज्यों में भी इस वर्ष चुनाव होने हैं, जो बड़ी चुनौती लिए हुए हैं। 
पटना में 1960 में जन्में नड्डा ने बीए और एलएलबी की परीक्षा पटना से पास की थी और शुरु से ही वे एबीवीपी से जुड़े हुए थे। अपने राजनीतिक कैरियर में नड्डा जम्मू-कश्मीर, पंजाब, हरियाणा, छत्तीसगढ़, तेलंगाना, केरल, राजस्थान, महाराष्टÑ, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों के प्रभारी और चुनाव प्रभारी रहे। वे केन्द्र सरकार में मंत्री के रूप में भी अपनी सफलतम पारी खेल चुके हैं। संघ से तालमेल बिठाने एवं चुनाव जीतने की इन दो बड़ी चुनौतियों का सफल निर्वहन कर उन्होंने भाजपा को अमाप्य ऊंचाइयां प्रदान की है। भले ही वे दिल्ली में आम आदमी पार्टी को कमजोर करने में नाकाम रहे हैं, लेकिन उसकी तेज धार चुनौतियों को निस्तेज करने की दिशा में कदम बढ़ाए हैं। अब नड्डा को बड़ी जिम्मेदारियां दी गई हैं और जैसा उनका ट्रैक रिकॉर्ड है इस बात की भी उम्मीद है कि वो पीएम मोदी और अमित शाह की उन उम्मीदों को कायम रखेंगे, जिनका उद्देश्य भाजपा को नंबर 1 के पायदान पर बरकरार रखना है। मुख्य चुनौती सहयोगी दलों से तालमेल बिठाने की है। नड्डा के समक्ष अपने गठबंधन साझेदारों को साथ लेकर चलने समेत कई चुनौतियां हैं। वर्ष 2014 और वर्ष 2019 के बीच एनडीए के 15 सहयोगी पार्टी से छिटक चुके हैं, लेकिन कई वजह से ये लोकसभा चुनाव परिणामों पर असर नहीं डाल पाए, लेकिन अब भाजपा अलग परिदृश्य का सामना कर रही है।                

-ललित गर्ग
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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