आखिर कब थमेगा कोटा में सुसाइड का सिलसिला?

आखिर कब थमेगा कोटा में सुसाइड का सिलसिला?

पिछले पांच दिनों मेंं वहां तीन बच्चों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली है। लगातार हो रही इन घटनाओं से हर कोई स्तब्ध है।

देश में कोचिंग हब के रूप में मशहूर राजस्थान का कोटा शहर ऐसी जगह के रूप मेंं पहचान बना चुका है, जहां कोचिंग करने के लिए आए बच्चे जिंदगी का दामन छोड़कर मौत को गले लगा रहे हैं। कोटा से कब किस बच्चे के फंदा लगा लेने की खबर आ जाए, कोई नहीं जानता। पिछले पांच दिनों मेंं वहां तीन बच्चों ने अपनी जीवन लीला समाप्त कर ली है। लगातार हो रही इन घटनाओं से हर कोई स्तब्ध है। हर कोई शोक में डूबा है।

ताजा मामला पटना के सत्रह साल के नवलेश का है। वह कोटा में नीट की तैयारी करने के लिए आया था। एक तरफ  नवलेश के सपने थे तो दूसरी तरफ  उसके माता-पिता के बेटे को डॉक्टर बनते देखने के ख्वाब, लेकिन कल सुबह हॉस्टल में नवलेश के फंदा लगाकर जान देने के साथ ही सब कुछ खत्म हो गया। सुसाइड नोट मेंं नवलेश ने पढ़ाई के दौरान तनाव होने की बात लिखी है। इससे महज एक दिन पहले नीट की कोचिंग कर रहे पन्द्रह वर्षीय धनेश ने जान दे दी। इससे तीन दिन पूर्व बेंगलुरू के 22 वर्षीय नासिर ने एक बिल्डिंग के दसवें फ्लोर से छलांग लगाकर मौत को गले लगा लिया था। इन तीन बच्चों की सुसाइड तो ताजा उदाहरण है। असल में, कोटा में कोचिंग करने वाले बच्चों की सुसाइड एक ऐसा सिलसिला बन गई है, जिसका कोई अंत नहीं नजर आ रहा है। कोई बच्चा फंदा लगाता है तो कोई ऊंची बिल्डिंग से कूद जाता है, तो कोई अपने को आग की लपटों के हवाले कर रहा है। इस साल अब तक नौ बच्चे मौत को गले लगा चुके हैं। राज्य विधानसभा में सरकार द्वारा दी जानकारी के अनुसार वर्ष 2019 से 2022 तक चार साल में कोटा संभाग में 53 स्टूडेंट आत्महत्या कर चुके हैं। वहां कितने बच्चे मरे, इसके आंकड़े हैं, लेकिन इस सवाल का पुख्ता जवाब किसी के पास नहीं है कि कोचिंग की बदौलत कॅरियर बनाने के लिए कोटा मेंं आए ये बच्चे क्यों सुसाइड कर रहे हैं और इनमेंं जिंदगी के प्रति लगाव कैसे पैदा किया जा सकता है?

सरकार, मनोचिकित्सक और आत्महत्या करने वाले बच्चे (सुसाइड नोट में) अलग-अलग कारण गिनाते हैं। सरकार ने विधानसभा में जवाब दिया है कि कोचिंग सेंटरों में आयोजित टेस्टों में पिछड़ जाने के कारण  स्टूडेंट्स में आत्मविश्वास की कमी, अभिभावकों की बच्चों के प्रति महत्वाकांक्षा, बच्चों में स्टडी के प्रेशर में पनप रहा मानसिक तनाव आर्थिक तंगी, ब्लैक मेलिंग, प्रेम प्रसंग जैसी वजहें आत्महत्या का सबब बन रही हैं। मनो चिकित्सक बच्चों में कॅरियर संबंधी प्रेशर को बड़ी वजह मान रहे हैं। मनोचिकित्सक कहते हैं कि कई बार बच्चे की रुचि के विपरीत मां-बाप उस पर डॉक्टर या इंजीनियर बनने का दबाव डालते हैं। बच्चे अनमने भाव से उसमें एडमिशन ले लेते हैं। मां-बाप द्वारा भरी गई भारी-भरकम फीस भी उन्हें तनावग्रस्त करती है। कोटा में हॉस्टल का अकेलापन भी बच्चों को सालता है, क्योंकि वहां कोई ऐसा नहीं होता, जिससे वह मन की बात कह सकें। ऐसे मेंं तनाव अवसाद में बदल जाता है और नकारात्मक विचारों से घिरे बच्चे मौत में समस्याओं का समाधान खोजने लगते हैं।

कोटा शहर में देशभर से आए दो लाख से अधिक बच्चे कोचिंग संस्थानों मेंं पढ़ रहे हैं। इन बच्चों के पेरेंट्स द्वारा चुकाई जाने वाली मोटी फीस की बदौलत कोटा की अर्थव्यवस्था ने ऊंचाइयां छुई हैं।  कोचिंग का कारोबार दो हजार करोड़ रुपये का माना जाता है। शहर में एक दर्जन से अधिक कोचिंग इंस्टीट्यूट चल रहे हैं, जिनमें  5-6 इंस्टीट्यूट का कारोबार तो अरबों रुपयों का है। कोचिंग करने वाले आए बच्चों की वजह से कोटा में लगभग चार हजार हॉस्टल चल रहे हैं। इतने ही पीजी हैं। सैकड़ों मेस, रेस्टोरेंट, बुक डिपो, जिम आदि का कारोबार भी कोचिंग की वजह से फला-फूला है। कोचिंग इंंस्टीट्यूट तो चांदी कूट रहे हैं, लेकिन सवाल यह उठता है कि क्या वह बच्चों को मौत के मुंह से जाने से बचाने के लिए भी कुछ कर रहे हैं? यह सवाल इसलिए उठता है कि स्टूडेंट्स की बढ़ती सुसाइड इन इंस्टीट्यूट्स पर भी सवालिया निशान खड़े करती है। वर्ष 2016 मेंं कोटा में सुसाइड करने वाली गाजियाबाद की कृति त्रिपाठी ने सुसाइड नोट मेंं लिखा था कि मैं भारत सरकार और मानव संसाधन विभाग से अपील करती हूं कि जितनी जल्दी हो सके, कोचिंग संस्थानों को बंद कर देना चाहिए। कोचिंग संस्थान खून चूसते हैं।
उस समय कृति का सुसाइड नोट खूब चर्चा में रहा था लेकिन बाद में किसी को कुछ याद नहीं रहा। जब कोई बच्चा सुसाइड करता है तो कुछ दिन उसकी चर्चा होती है लेकिन बाद मेंं सब भुला दिया जाता है। कोटा में कोचिंग स्टूडेंट्स की सुसाइड के मामलों पर राजस्थान हाई कोर्ट चिंता जता चुका है। राज्य सरकार का उच्च शिक्षा विभाग  कोटा समेत राज्य भर में चल रहे कोचिंग सेंटरों में पढ़ रहे बच्चों को मानसिक संबल और सुरक्षा प्रदान करने के लिए कई बार दिशा-निर्देश जारी कर चुका है। कोचिंग संस्थान भी अपने यहां तनावग्रस्त बच्चों से बात करने के लिए काउंसलर रखे होने का दावा करते हैं। स्थानीय पुलिस भी इस मामले में कोचिंग संस्थानों और हॉस्टल संचालकों से संपर्क बनाकर रखती है। कोटा के कुछ मनोचिकित्सक मिलकर वहां होप सोसायटी प्रोजेक्ट भी चला रहे हैं, जिसके तहत स्टूडेंट्स में पसर रही टेंशन को कम करने और उन्हें जीवन की राह दिखाने की कोशिश की जा रही है, लेकिन इसके बावजूद सुसाइड का सिलसिला थम नहीं रहा है।
         

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-अमरपाल सिंह वर्मा

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