डक्टिंग चलाने से पहले लू चलने का इंतजार
बायोलॉजिकल पार्क में वन्यजीवों को सताने लगी गर्मी : वन्यजीव विभाग अप्रेल से शुरू करेगा डक्टिंग-फोगर्स
बेजुबानों को गर्मी से बचाव के लिए विभाग ने शुरू की कवायद।
कोटा। होली के बाद से ही अमूमन गर्मी असर दिखाना शुरू कर देती है। लेकिन, इस बार मार्च माह खत्म होने से पहले ही सूर्य देव ने रौद्र रूप के संकेत दे दिए हैं। बुधवार को शहर का अधिकतम तापमान 40 डिग्री पार कर गया। गर्मी की तपन से इंसान ही नहीं बेजुबान जानवरों का भी हाल बेहाल होने लगा है। अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में गर्म हवाओं के थपेड़े वन्यजीवों को बैचेन कर रही है लेकिन विभाग द्वारा अभी तक बचाव कार्य शुरू नहीं किए। हालांकि, वनकर्मियों ने डक्टिंग, फोगर्स व स्प्रिंगलर की सार-संभाल शुरू तो कर दी है लेकिन इन्हें अप्रेल से चलाने की बात कही जा रही है। जबकि, इस माह से लू का दौर शुरू हो जाता है। ऐसे में वन्यजीवों को गर्मी से राहत पाने के लिए कुछ दिन और इंतजार करना पड़ेगा।
तप रहे एनक्लोजर के शेड
अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में शाकाहारी व मांसाहारी वन्यजीवों के लिए अलग-अलग एनक्लोजर बने हुए हैं। प्रत्येक एनक्लोजर में छज्जानुमा शेड बने हुए हैं लेकिन, धूप की सीधी किरणें पड़ने से उसमें छांव नहीं रहती। ऐसे में ये बेजुबान दिनभर गर्मी की तपन सहने को मजबूर हैं। हैरानी की बात यह है, जब नवज्योति ने जिम्मेदारों से डक्टिंग कुलिंग सिस्टम, फोगर्स व स्प्रिंगलर चलने के समय को लेकर बात की तो उन्होंने गर्मी ज्यादा न होने का हवाला देते हुए अप्रेल माह से चलाने को कहा। जबकि, बुधवार का अधिकतम तापमान ही 40.8 तथा न्यूनतम 22.6 डिग्री सेल्सियस रहा। ऐसे में मार्च की समाप्ती तक तापमान में और बढ़ोत्तरी हो सकती है। लेकिन विभाग की नजरों में यह यह तापमान समान्य है।
जंगल और चिड़ियाघर की परिस्थिति अलग-अलग
बायोलॉजिस्ट रविंद्र नागर कहते हैं, जंगल और कैपेविटी दोनों में अंतर होता है। चिड़िया घर या बायोलॉजिकल पार्क में जानवरों को पाला जाता है, उनका रखरखाव किया जाता है। केयर टेकर की सुविधा होती है। जबकि, जंगल में जंगल में वाइल्ड लाइफ स्वयं खुद को पालते हैं, वहां उनके लिए केयर टेकर नहीं होता। दोनों के व्यवहार, हैबीटॉट और दिनचर्या में अंतर होता है। इसलिए, कैपेविटी के जानवरों पर जंगल की परिस्थितियां लागू नहीं होती है। वन्यजीव विभाग को तापमान के अनुसार गर्मी से बचाव के इंतजाम शुरू कर देना चाहिए। चूंकी, अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क पथरीला और खुला इलाका है, पेड़-पौधों भी पर्याप्त नहीं हैं। ऐसे में 40 डिग्री टेम्प्रेचर अभेड़ा के लिए ज्यादा है। विभाग को गर्मी से बचाव के इंतजाम शुरू कर देना चाहिए।
मांसाहारी के नाइट शेल्टर में लगी हैं डक्टिंग
लॉयन, बाघ-बाघिन और पैंथर सहित अन्य मांसाहारी वन्यजीवों के नाइट शेल्टर में डक्टिंग लगी हुई है। वहीं, डिस्प्ले एरिया में गत वर्ष शेड किनारे फोगर्स व स्प्रिंगलर लगवाए गए थे। फव्वारों से गिरता पानी हवा के साथ वन्यजीवों को ठंडक पहुंचाता है। लेकिन, अभी तक वन्यजीव विभाग ने इन संसाधनों को शुरू नहीं किया है। हालांकि, सार-संभाल करना शुरू कर दिया गया है।
मांसाहारी वन्यजीवों पर ये पड़ता है प्रभाव
- हीट स्ट्रोक का खतरा ज्यादा रहता है।
- भोजन कम लेना और रूची में गिरावट, जैसे भोजन देख दौड़कर आना, एक्टिवनेस में गिरावट, इंसान को देखकर भी रिएक्शन नहीं करना।
- पानी कम पीना। आंखों से आंसू आना और चमक कम होना।
- चमड़ी और बालों का रंग फीका होना।
- शारीरिक गतिविधियां कम हो जाना।
- बाहरी उद्दीपनों पर हरकत न करना।
- प्रजन्न क्षमता पर विपरित असर पड़ता है।
गर्मी से बचाव के कर रहे इंतजाम
अभेड़ा बायोलॉजिकल पार्क में शाकाहारी व मांसाहारी वन्यजीवों को गर्मी से बचाव के लिए इंतजाम शुरू कर दिए गए हैं। डक्टिंग, फोगर्स व स्प्रिंगलर की सार-संभाल की जा रही है। वहीं, एनक्लोजर में बने शेड व पिंजरों पर ग्रीन नेट लगाने का काम भी शुरू कर दिया है। वन्यजीवों की सुरक्षा हमारी पहली प्राथमिकता है। उनके लिए संसाधनों को और बेहतर करने की कोशिश लगातार जारी है। आगामी दिनों में यहां वन्यजीवों व पर्यटकों के लिए सुविधाओं में इजाफा देखने को मिलेंगे।
- अनुराग भटनागर, उप वन संरक्षक, वन्यजीव विभाग
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