हिमालय से कोटा पहुंचे ब्लैक काइट शिकारी पक्षी
शहर में करीब 6 हजार पक्षियों ने बनाया आशियाना
ब्लैक काइट ईगल अप्रवासी पक्षी है, जो हिमालय से कोटा पहुंचे हैं। शहर के विभिन्न इलाकों में इनकी संख्या करीब 6 हजार से ज्यादा है। यह पर्यावरण हितेषी व किसान मित्र कहलाते हैं। आमतौर पर चील के नाम से जाना जाता है। यह 6 माह हिमालय में रहते हैं, इसके बाद 6 माह के लिए उन इलाकों में चले जाते हैं जहां वातावरण इनके अनुकूल होता है।
कोटा। हिमालय से आने वाले अप्रवासी शिकारी पक्षी इन दिनों पर्यटकों के लिए आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं। शहर के कई इलाकों में इनकी बस्ती आबाद हो रही है। 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवा में उड़ान भरने वाला यह पक्षी पलभर में ही अपने शिकार को पंजों में दबोच लेता है। जमीन से दो किमी ऊंचाई पर उड़ते हुए अपने शिकार को निशाना बनाने में माहिर है, इसलिए इसे शिकारी के साथ विजन पक्षी भी कहा जाता है। इसकी निगाहों से शिकार का बच पाना मुश्किल है। दरअसल, यहां ब्लैक काइट ईगल पक्षी की बात हो रही है। यह अप्रवासी पक्षी है, जो हिमालय से कोटा पहुंचे हैं। शहर के विभिन्न इलाकों में इनकी संख्या करीब 6 हजार से ज्यादा है। यह पर्यावरण हितेषी व किसान मित्र कहलाते हैं।
सितम्बर से अप्रेल तक रहते हैं
नेचर प्रमोटर एएच जैदी ने बताया कि ब्लैक काइट ईगल को आमतौर पर चील के नाम से जाना जाता है। यह 6 माह हिमालय में रहते हैं, इसके बाद 6 माह के लिए उन इलाकों में चले जाते हैं जहां वातावरण इनके अनुकूल होता है। इन पक्षियों का सितम्बर माह के मध्य से ही कोटा जिले में आना शुरू हो जाता है, जो मार्च-अप्रेल तक रहते हैं। शहर के किशोर सागर तालाब, उम्मेदगंज पक्षी विहार, सीवी गार्डन, नांता ट्रैचिंग ग्राउंड, सूर सागर व रायपुर सहित कई जगहों पर ब्लैक काइट ईगल ने बसेरा बनाया हुआ है। इन इलाकों में इनकी संख्या करीब 6 हजार से अधिक हैं। इन दिनों नांता ट्रैचिंग ग्राउंड स्थित हाईटेंशन लाइन पर बड़ी तादाद में नजर में नजर आ रहे हैं। हाइटेंशन लाइन पर डाला डेराजैदी ने बताया कि ब्लैक काइट ईगल ऊंचाई वाले स्थान तालाब किनारे पेड़, हाईटेंशन लाइन पर अपना ठिकाना बनाते हैं। यहां से वे जमीन पर अपने शिकार पर पैनी निगाह रखते हैं। यह मछली, चूहे, कबूतर व अपने से छोटे पक्षियों को भोजन बनाते हैं। ट्रेचिंग ग्राउंड पर कचरों में से मांसाहारी जानवरों के अपशिष्ट को भोजन बनाकर गंदगी को साफ करने में इनका बड़ा योगदान होता है। वहीं, घौंसले के लिए पेड़ोेंकी ऊंची शाखाओं का चुनाव करते हैं।
किसान मित्र भी होती है चील
ब्लैक काइट ईगल यानी चील पर्यावरण संतुलित रखने के साथ किसान मित्र भी कहलाते हैं। फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले चूहें, सांप, बिच्छु सहित अन्य जीव को अपना भोजन बनाकर अन्नदाता की मेहनत को महफूज रखते हैं। खेतों में इनकी मौजूदगी से फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले जीव गायब हो जाते हैं। यह एक तरह से फसलों की रखवाली करते हैं, इनके होने से किसान कई तरह की चिंताओं से मुक्त रहते हैं।
100 किमी प्रतिघंटे की रफ्तार से हवा में भरता है उड़ान
बडर््स रिसर्चर हर्षित शर्मा ने बताया कि चील हवा में उड़ने वाला पक्षी है। इसका विजन इतना मजबूत होता है कि 100 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से हवा में उड़ान भरते हुए भी जमीन पर मौजूद अपने शिकार को पलक झपकते ही पंजों में जकड़ लेता है। यह जमीन से दो किमी ऊंचाई तक उड़ता है। इनमें निर्णय लेने व देखने की क्षमता जबरदस्त होती है। इनकी लंबाई करीब दो फीट होती है।
एकबार में 4 अंडे दे सकती है मादा चील
हर्षित के मुताबिक, मादा चील एक बार में 2 से 4 अंडे दे सकती है। नर चील अंडों की रखवाली करता है। अंडों से चूजों के बाहर निकलने में करीब एक माह का समय लगता है। नर और मादा दोनों ही बड़े होने तक बच्चों की अन्य पक्षियों से रक्षा करते हैं। उड़ना सीखने के बाद बच्चे मां से अलग हो जाते हैं। यह पक्षी कभी भी जोड़ा बनाकर नहीं रहते। मार्च-अप्रेल तक ये वापस हिमालय की ओर लौट जाते हैं
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