'राजकाज'

जानें राज-काज में क्या है खास

'राजकाज'

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जुबां पर आई सच्चाई
सूबे में ट्रांसफर्स को लेकर मिनिस्टरों पर लगे आरोपों को नकाराने में नेताओं ने कोई कसर नहीं छोड़ी। छोड़े भी क्यों, मामला उनसे सीधा ताल्लुक जो रखता है। नेताओं के लिए धंधा करने वाले वर्कर्स भी भागदौड़ करने में कतई कंजूसी नहीं करते। बेचारे दिन रात लिस्ट को ऊपर नीचे करने में ही पसीना बहाते हैं। दो दिन पहले राज की एक रत्न ने ट्रांसफर्स में लेनदेन का ठीकरा जब वर्कर्स पर फोड़ा, तो उनकी आंखें लाल होना लाजमी थी। बड़ी चौपड़ से सचिवालय तक चर्चा है कि इस सालाना उद्योग में किसी वर्कर ने बहती गंगा में हाथ धो लिया, तो मामला जुबान पर आ गया, लेकिन जब ब्रोकर पूरे थैले को ही हजम कर जाते हैं, तो पेट में दर्द तक नहीं होता। अब इनको कौन समझाए कि वर्कर और ब्रोकर में जमीन और आसमान का फर्क है।


चर्चा में पटकथा मिशन-23
सूबे में इन दिनों मिशन-23 को लेकर बैठकों में चिंतन-मंथन का दौर जारी है। हाथ वाले भाई लोगों के साथ भगवा वाले भी रात-दिन पसीने बहा रहे हैं। भारती भवन वाले भाई साहब अलग से चर्चा में मशगूल हैं। लेकिन इन सबकी नजरें दौसा वाले मीनेश वंशज भाई साहब पर टिकी हैं। भाई साहब भी गुजरे जमाने में पीली लूगड़ी के झाले से सूबे की राजनीति में धमाचौकड़ी मचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि किताब पढ़कर कमल का फूल सूंघने आए भाई साहब इन दिनों मिशन-23 के लिए नई पटकथा लिखने में व्यस्त है। इसमें मेष राशि वाले भाई साहब के साथ ही छोटे पायलट भी किरदार के रोल में दिखाई देंगे।


आप के निशाने पर
जब से आप ने सरदारों वाले सूबे में राज की कुर्सी संभाली है, तब से रोजाना नए-नए शगूफे आ रहे हैं। इन शगूफो से मरु प्रदेश में भी हाथ वालों के साथ-साथ भगवा वालों की भी नींद उड़ी हुई हैं। उड़े भी क्यों नहीं आप वाले अंदरखाने कब क्या कर जाए, पता ही नहीं चलता है। राज का काज करने वाले लंच केबिनों में बतियाते हैं कि आप की नजरें फिलहाल हिमाचल और गुजरात की तरफ टिकी हैं, जहां जोर लगाने में कोई कसर नहीं छोड़ेगी। वहां की हवा खाने के बाद हमारे सूबे की तरफ कदम रखेगी। आप की लड़ाई भगवा से नहीं, बल्कि हाथ वालों से है, सो नफा-नुकसान से सामना भी उनको ही करना है।


लॉटरी और किस्मत
इन दिनों सिविल लाइंस में पगफेरा करने वालों की संख्या में एकाएक बढ़ोतरी को देख कई भाई लोग चिंता में डूब गए। बैठक और चिंतन-मंथन में खोये भाई साहब पहले तो माजरा समझ नहीं पाए। जब छोटे भाई साहब ने समझाया तो लाल-पीले हो गए, लेकिन पगफेरा करने वालों पर इसका कोई असर नहीं पड़ा। सिविल लाइंस से सौ कदम दूर तक रहने वाले भाई लोग भी वहां मंडराने में कोई शरम नहीं कर रहे। पगफेरा रोजाना पीसीसी के ठिकाने पर जाने वालों की नहीं बल्कि किसी न किसी के बहाने सिविल लाइंस से पुराने रिश्ते भुनाने वालों की है। राज का काज करने वाले में चर्चा है कि जब से सूबे के शिक्षा के पांच बड़े मंदिरों में ऊंची कुर्सी पर बैठने वाले वीसीज के बनने की सुगबुगाहट शुरू हुई है, तब से ही सिविल लाइंस में पगफेरा करने वालों की संख्या बढ़ी है। इन कुर्सियों के लिए सिविल लाइंस की हरी झण्डी को अहम रोल होगा, सो भाई लोग अपनी किस्मत आजमाने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे। यह दीगर बात है कि यह लॉटरी किस्मत वालों की ही खुलेगी।

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          एल. एल शर्मा
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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