जानें राजकाज में क्या है खास
सब कुर्सी के लिए 102 बनाम 18 में बंट कर लड़ाई लड़ते रहे और बेचारे वर्कर्स देखते रहे
सूबे में पिछले सात दिनों से वफादारी और गद्दारी को लेकर चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों ना, मामला ही कुछ ऐसा है।
चर्चा वफादारी और गद्दारी
सूबे में पिछले सात दिनों से वफादारी और गद्दारी को लेकर चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यों ना, मामला ही कुछ ऐसा है। हाथ वाली पार्टी के वर्कर्स के साथ सूबे की जनता को अभी तक यह समझ में नहीं आया कि कौन वफादार है और कौन गद्दार। समझ में इसलिए नहीं आई कि उनको किसी ने समझाया ही नहीं। सब कुर्सी के लिए 102 बनाम 18 में बंट कर लड़ाई लड़ते रहे और बेचारे वर्कर्स देखते रहे। और तो और जनता के प्रतिनिधि भी दो पालों में बंट कर कबड्डी-कबड्डी रटते रहे। अब इन वफादारों और गद्दारों को कौन समझाए कि यह पब्लिक है, सब जानती है, अंदर क्या है और बाहर क्या है, सब पहचानती है।
जिद ने बिगाड़ा खेल
जिद तो जिद होती है, और आदमी कब जिद्दीपन में आकर रायता बिखेर दे, पता नहीं चलता। अब देखो ना, सूबे सब कुछ ठीक ठाक होने वाला था कि गुजरे संडे को हाथ वाले आलाकमान का दूत बन कर आए मेष राशि वाले भाई के जिद्दीपन से सारा खेल बिगड़ गया। आलाकमान की किरकिरी कराई वो तो अलग बात है, लेकिन खुद ने जिस मकसद से पिंकसिटी की धरा पर पैर रखे थे, उसमें भी कामयाब नहीं हो पाए। इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वाले के ठिकाने पर चर्चा है कि फटाफट अंग्रेजी बोलने वाले भाईसाहब अगर हिन्दी बोलने वाले भाई लोगों की बात सुन लेता, तो यह दिन नहीं देखना पड़ता। लेकिन जिद्दीपन में भाईसाहब को ना आगा सूझा और न ही पीछा। भाई को तो बैरंग लौटना ही था, लेकिन वर्कर्स को 25 साल पहले बनी जिद्दी फिल्म के गाने 'हम तुमसे ना कुछ कह पाए' गुनगुनाने पर मजबूर कर गए।
हैकड़ी बनाम सिद्धांत
इंदिरा गांधी में भवन में बने हाथ वाले के ठिकाने पर इन दिनों हैकड़ी और सिद्धांत को लेकर काफी खुसरफुसर है। इसमें ठिकाने पर हर कोई आने वाला मशगूल हो जाता है। लक्ष्मणगढ़ वाले भाईसाहब भी सुनकर मुस्कराए बिना नहीं रहते। खुसरफुसर कि हाथ वाली पार्टी में हैकड़ी और सिद्धांतों वाले भाई लोगों के दो पाटों में बिचारा दरियां उठाने वाला वर्कर फंसा हुआ है। वह न बोल पा रहा है और न ही समझ पा रहा है। अब देखो ना, हैकड़ी और सिद्धांतों के चलते मराठा भूमि में 25 साल पुराने याराना तक को भुला दिया। और तो और हमारे सूबे में भी तीन दशक पुरानी दोस्ती ऐसी टूटी कि गुजरे जमाने में महारथी रहे नेता भी एक-दूसरे की शक्ल तक देखना पसंद नहीं करते।
नींद उड़ी बड़े साहबों की
जब से घूस वाले महकमे ने बड़े साहबों के ठिकानों को खंगालना शुरू किया, तभी से कई साहब लोगों की भौहें तनी हुई हैं। कुछ ने तो इधर-उधर से सूंघासांघी भी करने की भी कोशिश की थी, मगर पार नहीं पड़ी। एक साहब ने तो पुरानी दोस्ती की दुहाई भी दी, लेकिन खाकी वालों ने अपना असली रूप दिखा दिया। साहब का दुखड़ा है कि वे तो सालों से सिस्टम से चल रहे हैं, मगर सामने वाले हैं कि लाइन से हटकर काम करने में तुले हैं। अब जब अति होगी, तो भाण्डा भी फूटेगा ही। अब यह सब कुछ राज के इशारे पर हो रहा है, या फिर राज के खिलाफ, यह तो पता नहीं। मगर राज का काज करने वालों में चर्चा है कि जब से 150 फोनों के सर्विलांस में रखने का शगूफा मार्केट में आया है, तब से कुछ साहबों की नींद उड़ी हुई है। दिन-रात दुबले होते जा रहे हैं। और तो और पुराने नंबर वाली सिम के मोबाइल की तरफ देखने तक की सौगंध खा ली।
एक जुमला यह भी
इन दिनों इंदिरा गांधी भवन में बने हाथ वालों के ठिकाने के साथ ही सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि शिष्टाचार से ताल्लुक रखता है। भाई लोग इस जुमले को एक-दूसरे को सुनाने के साथ चटखारे लेने में भी कोई कसर नहीं छोड़ रहे। जुमला है कि दोनों दलों के कुछ भाई लोग पिछले दिनों लालकिले वाले महानगर में अपने-अपने आकाओं से मिलने पहुंचे, तो गेट पर खड़े चौकीदारों ने पहले ही टोक दिया कि साहब लोगों से बात करते समय केवल तू का संबोधन ही करना, क्योंकि उनको आजकल आप के नाम से फिर काफी चिढ़ होने लगी है। इस जुमले का असर दोनों के ठिकाने पर भी दिखाई देने लगा। अब वहां भी आप बोलने से पहले इधर-उधर ताक झांक जरूर की जाती है।
(यह लेखक के अपने विचार हैं)
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