जानिए राजकाज में क्या है खास
पिंकसिटी में दस दिनों से भोजन पॉलिटिक्स की चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यूं ना, पहली बार हाथ के साथ कमल वालों ने भी भोजन कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी।
चर्चा में भोजन पॉलिटिक्स
पिंकसिटी में दस दिनों से भोजन पॉलिटिक्स की चर्चा जोरों पर है। हो भी क्यूं ना, पहली बार हाथ के साथ कमल वालों ने भी भोजन कराने में कोई कसर नहीं छोड़ी। उत्तर में पापड़ के हनुमान से लेकर दक्षिण में देहलास वाले बालाजी और पूर्व में खोले के हनुमान जी से लेकर पश्चिम में झारखंड महादेव मंदिर तक चली भोजन के बहाने पॉलिटिक्स का यह फार्मूला तकिए के नीचे चाबी रख कर सोने वाले धन्ना सेठों ने निकाला है। चर्चा है कि भोजन पॉलिटिक्स के बहाने देसी घी की रसोई खाकर डकारें लेने वाले भाई लोगों ने ईवीएम का बटन दबाते समय भी अपनी बिरादरी का खयाल रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी। चूंकि मामला दाना-पानी के साथ ही नमक से ताल्लुक जो रखता है।
असर निगेटिव ग्राउंड रिपोर्ट का
दिल्ली दरबार के लिए सूबे में हुई पहली चुनावी जंग के बाद अलग-अलग ग्राउण्ड रिपोर्ट्स ने दोनों दलों के नेताओं की नींद उड़ा दी है। उड़े भी क्यों नहीं, वोटर्स ने भी अबकी बार लीडर्स की अग्नि परीक्षा लेने में कोई कसर नहीं छोड़ी। दस साल तक मन की बात सुन सुनकर अपने कान पकवाने वाले पांच फीसदी साइलेंट वोटर्स ने भी अपने मन की बात नहीं बताई। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वाले के ठिकाने पर ग्राउण्ड रिपोर्ट को लेकर रोजाना कानाफूसी हो रही है। उनके समझ में नहीं आ रहा कि यह रिपोर्ट उनके पक्ष में निगेटिव है या पॉजीटिव।
गणित वोटरों की, परेशान नेता
सूबे के राज के लिए हुए चुनाव में हार के बाद हाथ वाली पार्टी के नेताओं की जुबान पर ताला सा लग गया है। चुनाव से पहले तक बड़े-बड़े दावे करने वाले नेताओं को अब यह समझ में नहीं आ रहा है कि आखिर मतदाताओं ने उन्हें गणित का कौन सा पाठ सिखाया है। चुनाव से पहले तक सौ से ज्यादा सीटों पर अपने झण्डे लहराने का दावा करने वाले नेता अब दिल्ली दरबार के लिए हो रही जंग में चुप्पी साधे हुए हैं। और तो और एक-दो सवालों का जबाव देने के बाद हकलाने लग जाते हैं। राज का काज करने वाले भी जोड़-बाकी करने में व्यस्त हैं। फर्क इतना सा है कि नेता दो और दो पांच बताते हैं।
किलों की हुई तबीयत नासाज
हाथ पार्टी की दशा देखकर कई किलों और खण्डहरों की तबीयत नासाज हैं। पुराने साथी जो अलग होते जा रहे हैं। कुछ को अलग कर दिया गया और कुछ खुद ही अलग हो गए। झोटवाड़ा वाले कटारियाजी के कथन के बाद तो बाकी बचे किलों और खण्डहरों के पास कोई जवाब नहीं है। वानप्रस्थ आश्रम में पहुंच चुके इन किलों के आदेशों की किसी को परवाह भी नहीं है। राजस्थान में तो उनकी दशा और भी बुरी है। बार-बार आंख दिखा रहे किलों को समझ में नहीं आ रहा कि अब क्या किया जाए। सो, सोच लिया कि बहुमत और जनमत को जानने के बाद कुछ नहीं कहना। बचे-खुचे दिनों को आराम से काटना है। दूसरी के बाद तीसरी पीढ़ी का मिजाज कुछ अलग ही है।
एक जुमला यह भी
सूबे की राजनीति में इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी नंबर एक की कुर्सी को लेकर है। चर्चा है कि आजकल राजनेता भी गुगली फेंकने में माहिर हैं। वैसे तो खुद की गलतियों को ढंकने के लिए सारा ठीकरा मीडिया के सिर फोड़ने में कोई कसर नहीं छोड़ते, मगर जरूरत पड़ने पर यूज करने में भी पीछे नहीं रहते। राज का काज करने वालों की जुबान पर है कि इस बार तो राजनेताओं का प्रोग्रेस कार्ड भी मीडिया के जरिए लिया जा रहा है। जब भी असंतुष्ट खेमा दिल्ली दरबार में चक्कर लगाना शुरू करता है, तो राजधानी से खबरें आती हैं कि तीन-चार महकमे तो फेल हैं।
-एल एल शर्मा
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