जाने राजकाज में क्या है खास

जाने राजकाज में क्या है खास

भगवा वाले एक खेमे की ओर से गुपचुप में जो कुछ किया जा रहा है, उसका असर सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में भी दिखने लगा है। राज का काज करने वाले भी खुसरफुसर करने लगे हैं। सूबे में सबसे बड़ी पंचायत के लिए पंचों के नाम तय करने को लेकर कइयों की नींद उड़ी हुई है।

नजरें पगफेरा पर
नजरें तो नजरें ही होती हैं, कब किसी पर टिक जाएं, पता ही नहीं चलता। अब देखो ना, सूबे में हाथ वाले भाई लोगों की नजरें राजकुमार के पगफेरे पर टिकी हैं। पगफेरा भी धूमधाम से होगा, बधाइयां देने के साथ ही आरती भी उतारी जाएगी। लेकिन इसी बीच दो-दो हाथ करने में दिन रात पसीना बहा रहे हाथ वाले भाई लोग भी टकटकी लगाए बैठे हैं। राज का काज करने वालों में चर्चा है कि राजकुमार के पगफेरा करने के बाद भी पार्टी पर चल रही राहू-केतु की दशा के असर को कम होने केआसार नहीं दिख रहे। चूंकि मामला प्रेशर पॉलिक्टिस के फेर ऐसा फंसा है कि पार्टी के गणितज्ञों के भी समझ में नहीं आ रहा, कि जोड़-बाकी या गुणा-भाग से फल निकाले।

जरूरत रिपेयरिंग की 
सूबे में 12 महीने बाद होने वाली चुनावी जंग के लिए दोनों तरफ से वाकयुद्ध के बीच भगवा वाले के एक खेमे में रिपेयरिंग को लेकर जोरदार बहस छिड़ी है। बुजुर्गवार लोगों का कहना है कि सामने वालों से मुकाबले से पहले आमेर वाले भाईसाहब को अपने ही लोगों की वजह से तीस सीटों पर आने वाले वाले संकट से उभरने के लिए काट ढूंढना जरूरी है। 15 सीटों का खेल तो व्यक्तिगत कारणों से जोधपुर वाले बन्ना के कोटा वाले भाईसाहब और शेखावाटी वाले गुरुजी बिगाड़ने पर तुले हैं। मगर जिन 15 सीटों पर मैडम के राइट और लैफ्ट हैंड वालों में ही मूंछ की लड़ाई के चलते जायका बिगड़ने के संकेत मिले हैं, उनकी काट मिलना मुश्किल है। रिपेयरिंग के लिए ढंग के मार्का की सीमेंट की तलाश में घोड़े दौड़ाए जा रहे हैं।

बदली चाल-ढाल, उड़ी नींद
भगवा वाले एक खेमे की ओर से गुपचुप में जो कुछ किया जा रहा है, उसका असर सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में भी दिखने लगा है। राज का काज करने वाले भी खुसरफुसर करने लगे हैं। सूबे में सबसे बड़ी पंचायत के लिए पंचों के नाम तय करने को लेकर कइयों की नींद उड़ी हुई है। चार साल पहले पेटभर लड्डू खा चुके कुछ भाई लोगों की चाल-ढाल बदलने से राजधानी के पंचों की तो और भी हालत खराब है। चर्चा है कि जिले एक दर्जन सीटों पर नए चेहरों को अलग से प्रसाद बांटने को लेकर भी भारती भवन में चिंतन-मंथन हो रहा है।

एक जुमला यह भी
इन दिनों एक जुमला जोरों पर है। जुमला भी छोटा-मोटा नहीं, बल्कि मिस फील्डिंग को लेकर है। मिस फील्डिंग भी चौराहों पर नहीं, बल्कि बड़े रावळे में है। मिस फील्डिंग के जुमले से इंदिरा गांधी भवन में बना हाथ वालों का ठिकाना भी अछूता नहीं है। राज के कई रत्नों की भी रातों की नींद और दिन का चैन गायब है। काज करने वाले भी उनको लेकर की गई मिस फील्डिंग से दुबले होते जा रहे हैं। उनका काम करने में जी नहीं लग रहा है। चौकड़ी पर भी इसका असर साफ दिख रहा है। उसके भी समझ में नहीं आ रहा कि राज को मिस फील्डिंग करने वालों से सावचेत करने के लिए कौनसा तरीका अपनाया जाए। फिलहाल उनकी कोई सुनने के लिए तैयार ही नहीं है, चूंकि मिस फील्डिंग करने वालों ने ऐसा ताना बाना बुना है कि रावळे तक पहुंचने के लिए भी ऐड़ी से चोटी तक पसीने बहाने पड़ते हैं।

(यह लेखक के अपने विचार हैं)  

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