मदद के हाथ
अमेरिका के रुख की अनदेखी करके भारत ने अफगानिस्तान की मदद के लिए अपने हाथ बढ़ा दिए हैं।
अमेरिका के रुख की अनदेखी करके भारत ने अफगानिस्तान की मदद के लिए अपने हाथ बढ़ा दिए हैं। संकट से जूझ रहे वहां के नागरिकों के लिए भारी मात्रा में जीवन रक्षक दवाओं की पहली खेप भेजी है। इसके अलावा अब भारत अफगानिस्तान को 50 हजार टन अनाज और कुछ आवश्यक दवाओं की एक और खेप भेजने वाला है। यह मदद पाकिस्तान के रास्ते से जाने वाली है जिसके लिए पाकिस्तान ने अपनी सहमति दे दी है। दवाओं की पहली खेप उस विमान से भेजी गई, जो अफगान शरणार्थियों को भारत लेकर आया था। भारत अफगानिस्तान में व्याप्त संकट की अनदेखी नहीं कर सकता। अफगानिस्तान भारत का पड़ोसी देश है हालांकि अब वहां तालिबान की सरकार है। तालिबान को भारत सहित दुनिया के अनेक देश खतरनाक आतंकी संगठन मानते हैं, लेकिन वहां के नागरिकों की मदद मानवीय दृष्टिकोण से की जानी चाहिए और यही संदेश देने के लिए भारत ने मदद की पहल की है। तालिबान की सरकार बनने के बाद से भारत ने अपनी गतिविधियां लगभग रोक दी थीं, क्योंकि वह अमेरिका सहित दुनिया का रुख देख रहा था। अमेरिका नहीं चाहता था कि कोई देश अफगानिस्तान की मदद करे। लेकिन तालिबान की सरकार बनने के बाद चीन व रूस ने तालिबान की सरकार को समर्थन देना शुरू कर दिया था। यह भी भारत के लिए एक संकट था,क्योंकि चीन ने अफगानिस्तान में अपने पैर पसारने की पहल शुरू कर दी थी। इससे भारत को बड़ा खतरा पैदा हो सकता था। पाकिस्तान पहले से ही भारत से दुश्मनी भरे रिश्ते रखता आ रहा है। पाकिस्तान भी तालिबान की सरकार का समर्थक है। यदि अफगानिस्तान का झुकाव पाकिस्तान की तरफ बढ़ता है तो यह भी भारत के लिए एक संकट हो सकता है। इसलिए भारत केवल अमेरिका के रुख के साथ नहीं चल सकता। भारत अफगानिस्तान के खिलाफ खड़ा नहीं हो सकता और यह कूटनीतिक दृष्टि से भी ठीक नहीं रहता। अब भारत-रूस के रिश्ते भी मजबूत हुए हैं और भारत ने अमेरिका के विरोध के बावजूद रूस से हथियारों की खरीद की है। रूस तालिबान के प्रति नरम रुख रखता है। अब भारत ने अफगानिस्तान की मदद की तरफ हाथ बढ़ा दिए हैं और इससे वहां के लोगों को बड़ी राहत मिलेगी और उम्मीद है कि तालिबान की सत्ता भी भारत के हितों का ध्यान रखेगी।
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