कोरोनाकाल की अनकही कहानियों का दर्द है भीड़...

फिल्म समीक्षाः भीड़

कोरोनाकाल की अनकही कहानियों का दर्द है भीड़...

ये कहानी है लॉकडाउन के उस वक्त की जब कोरोना संक्रमण से ज्यादा अफवाहें तेजी से फैल रही थीं, जिस कारण स्टेट बॉर्डर बंद हो जाते है और हर कोई जहां है वहीं फंस जाता है।

जयपुर। भीड़ कहानी है दर्द की, यादों की, कड़वी बातों की, अमीर-गरीब की खाई की, ऊंच-नीच, जाति, समाज से भरे लॉकडाउन में फंसी उन जिंदगियों की, जो ठहर गई थी अपनी ही सांसों के घुटन में, जहां बेबस मजदूर इंसान बस चाह सकता है, लेकिन कुछ कर नहीं सकता। भीड़ छोटी-छोटी कई कहनियों की एक कहानी है। बेबस लोग और मजबूर मजदूरों की जो घर से निकले हैं घर जाने के लिए। ये कहानी है लॉकडाउन के उस वक्त की जब कोरोना संक्रमण से ज्यादा अफवाहें तेजी से फैल रही थीं, जिस कारण स्टेट बॉर्डर बंद हो जाते है और हर कोई जहां है वहीं फंस जाता है। पुलिस अधिकारी सूर्य कुमार सिंह टीकस (राजकुमार राव) निम्न जाति का है और राज्य की सीमा के एक चेक पोस्ट का इंचार्ज है, जहां डॉक्टर रेणु शर्मा (भूमि पेडणेकर) कोरोना निरक्षण करने के लिए अपनी ड्यूटी कर रही है। दोनों के बीच प्यार है। वहीं दूसरी ओर सिक्योरिटी गार्ड बलराम त्रिवेदी (पंकज कपूर) है, जो अपने परिवार और 13 साथियों के साथ निकला है। इधर, गीतांजलि (दीया मिर्जा) अपनी कार से बेटी को हॉस्टल से लेने के लिए निकली है, जबकि एक किशोर लड़की अपने शराबी पिता को साइकिल पर बैठाकर गांव जा रही है। इन सबको कवर करने टीवी चैनल की रिपोर्टर विधि (कृतिका कामरा) अपने दो सहयोगियों के साथ यहीं आ रही है। यह सभी दिल्ली से 1200 किमी दूर तेजपुर की सीमा चेक पोस्ट पर कोरोना के चलते रोक दिए जाते हैं। यहीं से इन सबकी कहानियां जुड़ती है, जो मजबूरियां बेबसी और समाज की दोहरी मानसिकता को दर्शाती है। अब किस तरह ये उलझी हुई जिंदगिया अपनी राह पकड़ मंजिल तक पहुंचेगी। यही कहानी है भीड़ की। कथा पटकथा नई है, कसी हुई है। सच की जमीन पर काल्पनिक हालत पैदा करती है, जो धीरे-धीरे परत दर परत आपको उन हालातों से जोड़ती है। अभिनय में राजकुमार राव अपने सरल अंदाज में गजब की परफॉर्मेंस देते हैं। भूमि भी अपनी भूमिका सशक्त तरीके से निभाती है, लेकिन पंकज कपूर का अभिनय इस फिल्म की जान है। दीया मिर्जा और अन्य कलाकार अच्छे लगे हैं। निर्देशन अनुभव सिन्हा का यथार्थ तक ले आता है। सिनेमेटोग्राफी किरदारों की इस भीड़ में सबको अपने मायने देती है और दर्शकों को 2020 के कोरोनाकाल में ले जाती है। एडिटिंग व पार्श्व संगीत ठीक है। ओवर आॅल फिल्म एक बार देखी जा सकती है।  

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