जयपुर के गुलाल गोटे बिना अधूरी लगती है होली
होली का डांडा रोपने से शुरू होता है गुलाल गोटा बनाने का काम
देश के कई राज्यों और विदेशों में भी है डिमांड
जयपुर। होली आने में अब कुछ ही दिन बाकी हैं, लेकिन बाजारों में ऐसे रंगों की भरमार हो गई है जो त्वचा, आंखों के लिए हानिकारक हो सकते हैं। हालांकि खाद्य पदार्थों में मिलावट को नियंत्रित करने के उपाय हैं, लेकिन हानिकारक रसायनों वाले रंगों को रोकने के लिए कम प्रयास किए हैं। हर साल एलर्जी और श्वसन संबंधी शिकायत के सैकड़ों मामले सामने आते हैं। प्रशासन उन मिलावतकर्ताओं पर नजर रखने के लिए भी तैयार है। जैविक रंग अच्छी आर्थिक पृष्ठभूमि से आते हैं। ग्राहक अक्षत मदान ने कहा कि मेरे लिए इतना पैसा खर्च करना संभव नहीं है, ये रंग सस्ते भी होने चाहिए। शहर के मनिहारों का रास्ता के मुस्लिम परिवार जो लाख की चूड़ियां बनाने में शामिल थे, वे भी जड़ी-बूटियों के रंगों से भरा गुलाल गोटा बनाने में लगे हुए हैं। इन परिवारों को उस तरह की बिक्री नहीं मिल रही है जैसी 1990 के दशक तक मिलती थी। यह लाल और हरे गोटा का उपयोग व्यापारिक और राज घरानों द्वारा उपहार पैक के लिए किया जाता है या यह हमारे मंदिरों में। गुलाल गोटे का उपयोग 300 से अधिक वर्षों से होली समारोह के दौरान किया जाता है। हालांकि होली रंगों की प्रचुरता के साथ पिंकसिटी में गुलाल गोटा भी दुनियाभर में प्रसिद्ध है।
कोरोना के बाद अब मिली राहत
गोटे के निर्माता कोरोना काल में बहुत परेशान थे। हालांकि अब आमजन को कुछ निजात मिली है, जिससे बाजारों और त्योहारों में रोनक देखने को मिलेगी। जयपुर के मनिहारों के रास्ता में महिला गुलाल गोटा निर्माता हिफाकत सुल्तान ने बताया आज गुलाल गोटे के बहुत कम लेने वाले हैं। लाख की चूड़ियां बनाने के अलावा गुलाल गोटा की तैयारी होली उत्सव के लिए हमारे पारंपरिक शाही परिवार से रहे हैं। यह अंदर से खाली है और गुलाल का नेतृत्व किया जाता है। इस गुलाल गोटे को लोगों पर फेंकते है, जब यह टूट जाता है तो गुलाल फैल जाता है।
यह पारंपरिक काम, लेकिन अब आकर्षक नहीं
विक्रेता अमजद ने बताया कि बिक्री में गिरावट पहले से थी। अब रहा सहा व्यापार कोरोना से ठप हो गया। परिवारों की युवा पीढ़ी विरासत को आगे बढ़ाने के लिए उत्सुक नहीं है। वे पढ़ाई में हैं और नौकरी के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हम उन्हें सीमित करने के पक्ष में भी नहीं हैं। यह पारंपरिक काम है, जो अब आकर्षक नहीं है।
1990 के बाद से नहीं मिल रहे हैं पर्याप्त गुलाल गोटे के ग्राहक
ऐसे बनाता है गुलाल गोटा
जयपुर का गुलाल गोटा लाख से बनाता है। करीब 2.3 ग्राम लाख की छोटी-छोटी गोलियों को एक बांसुरीनुमा नलकी में लगाकर फूंक मारते हुए घुमाया जाता है। धीरे-धीरे यह गुब्बारे की तरह फूल जाता है। फिर धीरे से इसको नलकी में से निकालकर पानी भरे हुए बर्तन में रख दिया जाता है। बाद में प्राकृतिक सुगंधित गुलाल भरी जाती है।
जयपुर स्थापना से चली आ रही परंपरा
1727 में जब महाराजा जयसिंह द्वितीय ने जयपुर की स्थापना की थी। उस समय शाहपुरा के लखेर गांव से आमेर आए हुए इन कारीगरों के पूर्वज को मनिहारों के रास्ते में बसाया था। तब से आज तक यह गुलाल गोटा बनाने वाले कारीगर इस काम को करते आ रहे हैं। ये परिवार गुलाल गोटा बनाने का काम होली का डांडा रोपने से करते हैं।
उपहार में देने का बढ़ा प्रचलन
आजकल जयपुरवासी दूसरे शहरों में रहने वाले अपने संबंधियों को गुलाल गोटे के पैकेट उपहार स्वरूप भेजते हैं। यहां से भी कुछ लोग ऐसे हैं जो कि गुलाल गोटा खरीदकर दूसरे शहरों में होली मनाते हैं। गुलाल गोटा अहमदाबाद, सूरत, बड़ोदरा, मुबंई, नागपुर, पुणे, आगरा, मथुरा, वृंदावन जैसी जगहों पर भेजा जा रहा है। वहीं विदेशों में अमरीका, स्वीटजरलैण्ड, आस्ट्रेलिया, सिंगापुर, इलैण्ड जैसे देशों तक लोग इसे ले जाते हैं।
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