सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

आम चुनाव के मानिंद पहले कांग्रेस का और उसके बाद भाजपा का घोषणापत्र आम जनता के बीच नमूदार। कांग्रेस ने इसे न्याय पत्र बताया।

संकल्प बनाम न्याय पत्र
आम चुनाव के मानिंद पहले कांग्रेस का और उसके बाद भाजपा का घोषणापत्र आम जनता के बीच नमूदार। कांग्रेस ने इसे न्याय पत्र बताया। तो भाजपा ने संकल्प पत्र। साथ में मोदी की गारंटी। अब यह देश की जनता को तय करना कि वह किसके वादे और इरादे पर भरोसा जताए। और किस पर नहीं। हां, दोनों ही दलों ने लोक लुभावन घोषणाओं में कोई कमी नहीं छोड़ी। इसमें कौन आगे निकलेगा और कौन पिछड़ेगा। यह चुनाव परिणाम बताएगा। लेकिन प्रचार-प्रसार में कोई पीछे नहीं। लेकिन एक सवाल। जिन प्रदेशों में भाजपा और कांग्रेस की सरकारें। वहां इन वादों को पूरा करने के लिए किसने रोका हुआ? हां, यह बहाना संभव कि लोकसभा देश का चुनाव। सो, वादे पूरे करने की केन्द्र में ज्यादा संभावना। राज्य सरकारों की ज्यादा सीमाएं एवं बाधाएं। लेकिन जब केन्द्र में सरकार थी। तब क्या किया और किसने रोका था?

लालू की छाया!
कांग्रेस ने भरपूर जतन कर लिया कि कन्हैया कुमार और बाहुबली नेता पप्पू यादव को बिहार से मौका दिया जाए। लेकिन लालू यादव ने साबित कर दिया कि गठबंधन पर उनकी पूरी छाया। तमाम कोशिशों के बावजूद लालू ने पप्पू यादव को पर्णिया से नहीं उतरने दिया। इसी प्रकार, पिछली बार कन्हैया कुमार को बेगूसराय से अच्छा जनसमर्थन मिला था। लेकिन इस बार भी लालू जी नहीं माने। असल में, वह अपने बेटे के लिए भविष्य में कोई राजनीतिक चुनौती नहीं चाहते। फिर मौके की नजाकत देखते हुए कांग्रेस भी पीछे हटी। आखरी मामला गठबंधन की एकजुटता का। क्योंकि नीतीश कुमार गठबंधन छोड़ चुके। अब ठीक चुनावी मौके पर यदि लालू यादव बिदक गए। तो कांग्रेस की भद्द पिटती। सो, अपने उभरते हुए युवा चेहरे और एक जमे जमाए नेता का बलिदान देना श्रेयकर समझा। लेकिन कांग्रेस इसे इतनी आसानी से भूल जाएगी? शायद नहीं!

दिख रही मेहनत!
आम चुनाव- 2014 से ही भाजपा की नजर दक्षिण एवं पूर्वी भारत पर। इसके लिए रणनीति बनाकर प्रयास किए गए। सो, अब परिणाम का इंतजार। चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर भी इस पर मुहर लगा रहे। तमाम सर्वे और अनुमान बता रहे। भाजपा पूर्व में पश्चिम बंगाल और ओडिशा में अच्छा प्रदर्शन करने जा रही। मतलब मत प्रतिशत ही नहीं। बल्कि सीटें भी बढ़ेंगी। वहीं, कर्नाटक और तेलंगाना ही नहीं। बल्कि तमिलनाडु और केरल में भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवाएगी। आंध्रप्रदेश में टीडीपी से गठबंधन। पीएम मोदी भाजपा नेताओं एवं कार्यकतार्ओं को कई बार कह चुके। हमें देश के पूर्वी एवं दक्षिणी राज्यों में खूब मेहनत करने की जरुरत। क्योंकि हिंदी पट्टी में भाजपा सर्वाेत्तम प्रदर्शन कर चुकी। ऐसे में नए क्षेत्रों में संभावनाएं तलाशना जरुरी। फिर महाराष्ट्र एवं पंजाब जैसे राज्यों में भी भाजपा को सीटें बढ़ने की उम्मीद। क्योंकि यहां अब नए राजनीतिक समीकरण।

हुनर दिखाने का मौका
हिमंता बिस्व सरमा के सामने पूर्वोत्तर में लोकसभा चुनाव के बहाने फिर से अपना राजनीतिक हुनर दिखाने का मौका। फिलहाल वह जोरहाट में पूरा जोर लगाए हुए। जहां से राज्य के तीन बार मुख्यमंत्री रहे तरुण गोगोई के बेटे गौरव गोगोई कांग्रेस प्रत्याशी। सरमा मानते। कांग्रेस में तरुण गोगोई ने उन्हें सीएम के लिए आगे नहीं बढ़ाया। उनकी सारी कवायद बेटे गौरव गोगोई को राजनीतिक रुप से सशक्त करने की रही। असल में, हिमंता भाजपा की कार्य संस्कृति में बहुत जल्दी रच-पच गए। उन्होंने पूरे पूर्वोत्तर में राजग को पैर जमाने में ईमानदारी से मेहनत की। इसीलिए भाजपा नेतृत्व ने भी सरमा पर भरोसा जताते हुए असम का सीएम बनाया। इस दौरान उन्होंने भाजपा के लिहाज से शानदार काम किया। अब सरमा गोगोई को रोकने में लगे हुए। अपने आधा दर्जन मंत्रियों को जोरहाट में उतारा हुआ। सरमा जानते, गोगोई उनके लिए भविष्य की चुनौती।

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अब अनुमान!
आम चुनाव के पहले चरण में प्रदेश की भी 12 सीटों पर मतदान हो गया। इसके साथ ही दसरे चरण के लिए भी अनुमान लगना शुरू हो गए। मतदान के पैटर्न से लग रहा आम जनता में कम उत्साह। क्योंकि कम या ज्यादा मतदान के भी मायने। अब अपने राजस्थान में चार नेता ऐसे। जिनके भाग्य का निर्णय अनुमानित। कांग्रेस में अशोक गहलोत और सचिन पायलट। वहीं, भाजपा में सीएम भजनलाल और पूर्व सीएम वसुंधरा राजे। भले ही तुरंत किसी निर्णय की संभावना नहीं। लेकिन परिणाम से निर्णय की नींव जरुर पड़ जाएगी। ऐसा जानकार कह रहे। भाजपा यदि क्लीन स्वीप नहीं करेगी। तो भजनलाल के लिए राजनीतिक झटका होगा। वहीं, अंगुली वसुंधरा राजे पर भी उठेगी। वह झालावाड़-बारां से कम ही बाहर निकलीं। कांग्रेस में गहलोत एवं पायलट ने अपने समर्थकों को टिकट दिलवाए। यदि भाजपा की हैट्रिक लगी। तो जवाबदेही भी तय होगी!

फूंक फूंक कर ...
जम्मू-कश्मीर में आम चुनाव के बाद विधानसभा चुनाव प्रस्तावित। सो, भाजपा सावचेत। क्योंकि सबसे बड़ी राजनीतिक परीक्षा भी उसी की। सो, भाजपा एक-एक कदम फंक-फूंककर आगे बढ़ा रही। जिसकी झलक अभी से दिखनी शुरू हो गई। भाजपा ने जम्मू की दो सीटों पर तो अपने प्रत्याशी उतार दिए। लेकिन रणनीति के तहत घाटी की तीन सीटों पर पीछे हट सी रही। यहां एक ओर तो पीडीपी और दूसरी ओर एनसी। एनसी के साथ कांग्रेस भी। हां, जम्मू क्षेत्र ने पीडीपी ने भी प्रत्याशी नहीं उतारे। ऐसे में, भाजपा द्वारा पीडीपी और एनसी के खिलाफ उतरने वाले दलों को समर्थन संभव। ताकि बाद में प्रदेश में सरकार बनाने की नौबत आई। तो इनसे समर्थन लिया जा सके। भाजपा जम्मू कश्मीर अपना दल और सज्जाद लोन की जम्मू कश्मीर पीपुल्स पार्टी को समर्थन देगी। ऐसी चर्चा। फिर ऐन मौके पर गुलाम नबी आजाद भी पीछे हट गए।

दो उभरते चेहरे!
आम चुनाव के बाद दो चेहरे राष्ट्रीय राजनीति में उभरें। तो अतिशयोक्ति नहीं होगी। एक दक्षिण से और दूसरा चेहरा उत्तर भारत से। प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के. अन्नामलाई तमिलनाडु से बाहर भी खासे चर्चित। वह कोयम्बटूर से भाजपा प्रत्याशी। जीत की भी संभावना! और कोई आश्चर्य नहीं कि वह टीम मोदी में शामिल हों। उन्हें गढ़ा ही तमिलनाडु के भावी मुख्यमंत्री में रूप में जा रहा। सो, प्रशासनिक अनुभव के लिहाज से केन्द्र में मंत्री बनाना संभव। इसी प्रकार एक और नाम कन्हैया कुमार का। जो पूर्वी दिल्ली से कांग्रेस प्रत्याशी। पिछला चुनाव उन्होंने बिहार के बेगूसराय से भाकपा प्रत्याशी के रूप में लड़ा। लेकिन हार गए। क्योंकि लालू यादव ने सहयोग नहीं किया। इस बार भी वह कांग्रेस की बात नहीं मान रहे। अब कहा जा रहा। कन्हैया कुमार चाहे दिल्ली से चुनाव हारें या जीतें। राहुल गांधी उनकी प्रभावी भूमिका तय कर चुके!

-दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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