सतरंगी सियासत

सतरंगी सियासत

आम चुनाव के पहले चरण में हुए कम मतदान से नेता और दल चिंतित। अपनी मरुधरा भी इससे अधूरी नहीं।

चिंता की लकीरें!
आम चुनाव के पहले चरण में हुए कम मतदान से नेता और दल चिंतित। अपनी मरुधरा भी इससे अधूरी नहीं। अब कम मतदान का भी दल अपने पक्ष में मायने निकल रहे। वैसे मतदान कम होने का बहाना महज औपचारिकता। आखिर हर कोई इतनी गर्मी में भी तो रोजाना अपने काम पर निकलता। फिर मतदान के दिन वह बाहर निकलने में ढिलाई बरतेगा। यह बात गले नहीं उतरती। खैर, भाजपा इस मुगालते से मुतमईन कि पिछली बार उसने अधिकांश सीटें लाखों मतों से जीत थीं। ऐसे में मतदान इतना भी कम नहीं हुआ कि परिणाम तय कर देगा। इसी प्रकार, कांग्रेस इसमें खुश कि कम वोटिंग करके मतदाताओं ने मोदी लहर का दावा हवा कर दिया। हां, ग्रामीण क्षेत्रों में कम मतदान कांग्रेस, तो शहरी क्षेत्रों में कम मतदान भाजपा के चेहरे पर चिंता की लकीरों का सबब! फिर सभी को चार जून का इंतजार।

संकेत... अनुमान...
ज्यों-ज्यों आम चुनाव के मतदान का क्रम आगे बढ़ रहा। तो संकेत भी मिल रहे। अभी तक मोदी सरकार के खिलाफ कोई बहुत ज्यादा नाराजगी मतदाता द्वारा जाहिर नहीं हो रही। कम से कम सार्वजनिक रूप से। लेकिन ईवीएम में मतदाता अपनी राय कैसे जाहिर करेगा। यह तो मतगणना के दिन ही सामने आएगा। लेकिन अपेक्षाकृत कम मतदान बहुत कुछ बयां कर रहा। हालांकि जानकार कह रहे। दशकों बाद यह ऐसा चुनाव। जिसमें परिणाम का अनुमान पहले ही लग रहा। फिर भी भारतीय मतदाता के विवेक पर किसी को संदेह नहीं। अपने राजनीतिक निर्णय से वह चौंकाता रहा। वैसे, भारतीय आम चुनाव पर दुनिया की नजरें नहीं हों। ऐसा संभव नहीं। दुनियां की कई ताकतें कभी नहीं चाहतीं कि लोकतांत्रिक व्यवस्था वाला भारत स्थिर एवं मजबूत रहे। उन्हें कमजोर भारत चाहिए। इसीलिए चुनाव में भी दखलंदाजी की कोशिश रहती। लेकिन उन्हें सफलता मिलेगी। इसमें संदेह।

अब क्या करेंगे?
अरविंद केजरीवाल की जमानत का मामला खिंचता ही जा रहा। इंतजार की घंड़ियां लंबी हो रहीं। इधर, आम चुनाव चल रहे। जिसमें आम आदमी पार्टी का स्टेक लगा हुआ। खासतौर से राजधानी दिल्ली और पंजाब में। ऐसे में केजरीवाल की पार्टी की पूरी चुनावी योजना एवं रणनीति ही गड़बड़ा रही। जानकार बता रहे कि जिस तरह से शराब नीति के सबूत सामने आ रहे। उससे लग नहीं रहा कि केजरीवाल को जल्द राहत मिलेगी। ऐसे में अब आगे क्या? और इस राजनीतिक परिस्थिति का वास्तविक लाभार्थी कौन? फिर आप आईएनडीआईए गठबंधन में हिस्सेदार भी। दिल्ली में उसका कांग्रेस के साथ गठजोड़। पंजाब में अकेले ही। आप अब राष्टÑीय दल का दर्जा प्राप्त दल। सो, उसका अन्य राज्यों में भी स्टेक। लेकिन अब चुनावी प्रचार के लिए सुनिता केजरीवाल मैदान में। लेकिन यदि केजरीवाल चुनावी प्रचार की कमान संभाल रहे होते। तो बात अलग ही होती!

अमेठी और राहुल गांधी!
आम चुनाव के दूसरे चरण का मतदान भी हो गया। इसी में केरल की वायनाड सीट भी। जहां से राहुल गांधी कांग्रेस उम्मीदवार। अब यूपी में अमेठी और रायबरेली की खासी चर्चा। असल में, अमेठी से राहुल गांधी के चुनाव लड़ने की संभावना। जहां से स्मृति ईरानी 2019 में उन्हें मात दे चुकीं। जबकि उस समय राहुल गांधी कांग्रेस अध्यक्ष थे। वहीं, रायबरेली से प्रियंका गांधी के भी चुनाव मैदान में उतरने चर्चा! यदि प्रियंका गांधी उतरीं। तो यह उनका पहला चुनाव होगा। अब कांग्रेस की हालत का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता कि वह अभी भी अपनी रणनीति को उजागर करने में झिझक रही। एक चर्चा यह भी। यदि प्रियंका गांधी रायबरेली से उतरीं। तो उनके सामने भाजपा की उम्मीदवार नुपुर शर्मा संभव! जिनके एक टीवी डिबेट में बयान देने से खासा हंगामा हो गया था। मतलब दोनों सीटों पर राजनीतिक गदर मचेगा!

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चुनावी गर्मी..
बीते शुक्रवार दूसरे चरण का मतदान के साथ ही करीब एक तिहाई सीटों पर चुनाव निपट गया। लेकिन एक बार फिर से लग रहा। चुनावी प्रचार वहीं जा रहा। जैसा कि पहले से मानो परंपरा सी चली आ रही हो। तीखी और आपत्तिजनक बयानबाजी। हालत यह हो गई कि दूसरे चरण के मतदान से पहले संतुलन साधते हुए चुनाव आयोग ने भाजपा एवं कांग्रेस अध्यक्षों को उनके पार्टी नेताओं द्वारा अनावश्यक बयानबाजी के लिए नोटिस जारी कर दिया। पीएम मोदी के 400 पार के नारे का पलटवार आईएनडीआइए गठबंधन द्वारा संविधान बदलने और लोकतंत्र समाप्त हो जाने का भय और डर दिखाया जा रहा। फिर आरक्षण व्यवस्था पर भी आरोप-प्रत्यारोप तो मानो सदाबहार मसला। दोनो ओर से बयानबाली हो रही। मतलब चुनावी प्रचार की गर्मी लगातार बढ़ रही। आखरी चरण तक पहुंचते-पहुंचते बयानबाजी किस स्तर तक चली जाएगी? इसके लिए सातवें चरण तक का इंतजार!

सेल्फ गोल?
अमरीका में निवास कर रहे कांग्रेस नेता सैम पित्रोदा ने विरासत टैक्स की चर्चा करके कहीं सेल्फ गोल तो नहीं कर दिया? क्योंकि पीएम मोदी ने इसे हाथों हाथ लपका और चुनावी रैलियों में जिक्र भी कर डाला। विवाद बढ़ा तो कांग्रेस की सफाई आई। इसे पित्रोदा की निजी राय बताया। फिर अगले ही दिन जयराम रमेश नमूदार हुए। दावा किया, साल 2014 से 2019 के बीच केन्द्रीय वित्त मंत्री रहे अरुण जेटली और राज्यमंत्री जयंत सिन्हा ऐसा सुझाव दे चुके। ऐसे में, कांग्रेस की बातों का क्या अर्थ निकाला जाए? मतलब, हां भी और ना भी! सवाल तो यह कि लगातार नुकसान के बावजूद कांग्रेस सबक लेने को तैयार क्यों नहीं? मणिशंकर अय्यर समेत कई कांग्रेस नेता 2014 और 2019 में इसी प्रकार की गलतियां कर चुके। इससे भी पहले 2002 से ही ऐसी गलतियों को दोहरा रहे। लेकिन सबक लेने को तैयार नहीं!
नॉर्मल तो नहीं...
मरुधरा में लगातार दूसरे चरणों में भी अपेक्षाकृत कम मतदान, क्या संकेत कर रहा? कहीं, विपक्ष के साथ ही सत्तापक्ष में भी खदबदाहट का इशारा तो नहीं? क्योंकि अभी पांच माह पहले ही प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हुआ। तमाम पूर्वानुमानों को नकारते हुए सत्ता गंवाने के बावजूद कांग्रेस ने ठीकठाक प्रदर्शन करते हुए सम्मानजनक संख्या के साथ विपक्षी दल का दर्जा हासिल किया। जबकि सत्तारूढ़ हुई भाजपा ने तो पूरा पीढ़ीगत बदलाव ही जमीन पर उतार दिया। ऐसे में, कहीं कुछ वरिष्ठ नेता ही तो अंदरखाने सुस्ती नहीं दिखा गए? पीएम मोदी ने मंगल सूत्र वाला बयान भी राजस्थान में ही दिया। तो अमित शाह ने भी पीएफआई को खत्म करने वाला बयान कोटा में दिया। यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ के दौरे भी हुए। इसके बावजूद भाजपा कैडर का वोटर्स को घरों से बाहर नहीं निकाल पाना, क्या बता रहा? कुछ गड़बड़ तो नहीं?
दिल्ली डेस्क
(ये लेखक के अपने विचार हैं)

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