बहज में खुदाई में मिले भारत के सबसे प्राचीन और अनूठे सुई के आकार के हड्डियों के औजार
पूरे भारत में कहीं नहीं पाए गए
फिलहाल एएसआई की ओर से काम जारी है। संभावना जताई जा रही है कि यहां पर पीजीडब्ल्यू संस्कृति से भी प्राचीन सभ्यता के अवशेष दबे हुए हो सकते हैं।
जयपुर। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग (एएसआई) को भगवान श्री कृष्ण की जन्मस्थली और क्रीड़ास्थली ब्रज में बहुत बड़ी सफलता हाथ लगी है। डीग जिले के बहज गांव में चल रही खुदाई में कुषाण काल से पीजीडब्ल्यू संस्कृति (हस्तिनापुर) तक के पांच कालखंडों की सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं। महत्वपूर्ण बात यह है कि यहां पर बहुत बड़ी बोन इंडस्ट्री (हड्डियों से निर्मित औजारों का जखीरा) मिली है। जिसमें सुर्इं के आकार के ऐसे अनूठे हड्डियों के औजार मिले हैं जो अब से पहले पूरे भारत में कहीं नहीं पाए गए। फिलहाल एएसआई की ओर से काम जारी है। संभावना जताई जा रही है कि यहां पर पीजीडब्ल्यू संस्कृति से भी प्राचीन सभ्यता के अवशेष दबे हुए हो सकते हैं।
मिल रहे कई पुरावशेष
एएसआई विभाग की ओर से बहज गांव में 10 जनवरी 2024 से उत्खनन कार्य किया जा रहा है। अभी तक टीले के शीर्ष से करीब 20 मीटर और जमीन से करीब 9 मीटर की गहराई तक उत्खनन कार्य किया जा चुका है। खुदाई के दौरान सबसे पहले कुषाण कालीन अवशेष, उसके बाद शुंग कालीन, मौर्य कालीन, महाजनपद कालीन और पीजीडल्ब्यू संस्कृति (हस्तिनापुर) के अवशेष प्राप्त हुए हैं। ब्रज क्षेत्र का पीजीडल्ब्यू संस्कृति से जुड़ाव माना जाता रहा है। अब एएसआई की ओर से की जा रही खुदाई में मिले अवशेषों से यह साबित भी होता दिख रहा है। बहज गांव के उत्खनन में पीजीडब्ल्यू संस्कृति (हस्तिनापुर) के करीब 4 मीटर तक के जमाव प्राप्त हुए हैं, जो कि राजस्थान में अब तक के सबसे अधिक गहराई तक के जमाव हैं। इससे पहले नीम का थाना के पास पाटन में पीजीडब्ल्यू काल का पौन मीटर का जमाव मिल चुका है।
हड्डियों के औजारों पर दिखा उत्कृष्ट कार्य
संभवत: औजारों का इस्तेमाल लिखने, बुनने या किसी अन्य कार्य के लिए किया जाता होगा। विभाग से मिली जानकारी के अनुसार इस तरह के बारीक प्वाइंट वाले औजार अभी तक इतनी बड़ी संख्या में भारत में कहीं और प्राप्त नहीं हुए हैं। सुई के आकार के इन औजारों पर बहुत ही बारीक और उत्कृष्ट कार्य हुआ है।
संभावना है कि यहां और भी प्राचीन सभ्यता या कालखण्ड से ब्रज के जुड़ाव के प्रमाण मिल सकते हैं। अभी उत्खनन कार्य के दौरान सैकड़ों दुर्लभ वस्तुएं प्राप्त हुई हैं। जिन्हें 3500 साल पुरानी मानी जा सकती है। इससे प्राचीन समय की भी पुरा सामग्रियां मिलने की संभावना है। इसके अतिरिक्त हड्डियों से निर्मित औजार भी प्राप्त हुए हैं।
- विनय कुमार गुप्ता, अधीक्षण पुरातत्वविद्, भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण, जयपुर मण्डल, जयपुर
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