चीता लाने से पहले शेरगढ़ सेंचुरी में जैव विविधता का होगा वैज्ञानिक विश्लेषण, सेंचुरी में कीट-पतंगों से दीमक तक पर होगी रिसर्च

वन्यजीव विभाग कोटा ने जारी किए वर्कआॅर्डर

चीता लाने से पहले शेरगढ़ सेंचुरी में जैव विविधता का होगा वैज्ञानिक विश्लेषण, सेंचुरी में कीट-पतंगों से दीमक तक पर होगी रिसर्च

यह अध्ययन तय करेगा कि आने वाले वर्षों में यहां के जंगल को किस दिशा में विकसित किया जा सकता है।

कोटा। शेरगढ़ सेंचुरी में अब जंगल की हर धड़कन को समझने की तैयारी शुरू हो गई है। राज्य सरकार ने यहां के जंगल, वन्यजीवों और पारिस्थितिकी तंत्र की गहराई से वैज्ञानिक अध्ययन शुरू करवा रही है। यहां लंबे समय से चीता पुनर्वास की मांग की जा रही है, ऐसे में चीता लाने से पहले जंगल की जैव विविधिता का बारीकी से अध्ययन कर डेटा बेस तैयार किए जाने की तैयारी की जा रही है। यह पहला मौका है जब इस अभ्यारण्य के हर हिस्से, घने पेड़-वनस्पतियां, दुर्लभ पक्षियों, प्राकृतिक जल स्रोतों, कीट-पतंगों से लेकर मिट्टी में रहने वाले दीमक तक का गहराई से अध्ययन किया जा रहा है। रिसर्च कार्य के लिए वन्यजीव विभाग कोटा ने वर्कआॅर्डर भी जारी कर दिया है। 

10 हजार हैक्टेयर में होगा अनुसंधान 
वाइल्ड लाइफ कोटा के डीएफओ अनुराग भटनागर ने बताया कि शेरगढ़ में करीब 10 हजार हेक्टेयर के जंगल में डीप रिसर्च की जाएगी। इससे विभाग को न केवल आॅथेंटिक डाटा मिलेगा बल्कि जंगल के उचित प्रबंधन और पर्यावरण की प्लानिंग में भी सकारात्मक मदद मिल सकेगी। नतीजन, भविष्य में चीता पुनर्वास योजना जैसी संभावनाओं पर ठोस निर्णय लिए जा सकेंगे।

इन 11 बिंदुओं पर होगी स्टडी
- टरमाइट और टरमेटोरियम की गिनती: जंगल में कितनी तरह की दीमक प्रजातियां हैं और कितने बाम्बी (टरमेटोरियम) मौजूद है। यदि, अधिक बाम्बी मिलती है तो इसका मतलब होगा कि जंगल स्वस्थ है। 
मधुमक्खियों की प्रजातियां: शेरगढ़ सेंचुरी में कितनी तरह की मधुमक्खियां हैं, किस पेड़ पर छत्ते बनते हैं और कितने छत्ते मौजूद हैं।
- शिकारी पक्षी (रैपटर्स): यहां कौन-कौन से शिकारी पक्षी हैं, वे किन पेड़ों पर रहते हैं और उनकी संख्या कितनी है।
- प्राकृतिक जल स्रोत: जंगल में कितने जल स्रोत हैं और किन स्थानों पर प्राकृतिक रूप से पानी भरता है।
- सूखे पेड़ों की संख्या: मृत पेड़ों की गणना होगी, जिनमें कई जीव अपना घोंसला बनाते हैं।
- डेन ट्री या गुफा वाले पेड़: पेड़ों के खोखले हिस्सों की पहचान की जाएगी, जिनमें मॉनिटर लिजर्ड या सियार जैसे जीव रहते हैं। 
- पुराने विशाल पेड़ : जंगल में 200-300 वर्ष पुराने पेड़ों की पहचान की जाएगी। 
- पुनरुत्थान: स्वत: पनपने वाले पेड़ों की गिनती और विदेशी प्रजातियां जैसे लेंटाना या सूबबुल से हो रहे प्रभाव का भी किया जाएगा।  
- वाइल्ड फ्रूट्स: जंगल में कौन-कौन से जंगली फल हैं और कौन से जानवर उनका सेवन करते हैं।
-  पक्षियों का विश्राम व्यवहार: कौन से पक्षी दिन में और कौन से रात में किस पेड़ पर विश्राम करते हैं। 
- पक्षियों का विश्राम व्यवहार: कौन से पक्षी दिन में और कौन से रात में किस पेड़ पर विश्राम करते हैं। 
- कीट-पतंगे, मच्छर और मक्खियां: कौन से फूलों वाले पौधों के आसपास यह पाए जाते हैं और किन समयों पर सक्रिय होते हैं।

90 दिन जंगल में रहकर अध्ययन करेगी रिसर्च टीम 
डीएफओ भटनागर ने बताया कि इस पूरी प्रक्रिया के लिए 10 लाख रुपए का बजट जारी किया गया है। जिसमें से 8.5 लाख रुपए का वर्क आॅर्डर जारी हुआ है।  टीम के 10 सदस्य 90 दिन तक जंगल में रहकर वैज्ञानिक अध्ययन करेंगे। उन्हें आवश्यक संसाधन भी वहीं उपलब्ध कराए जाएंगे ताकि वे लगातार काम कर सकें। यह अध्ययन न केवल शेरगढ़ की जैव विविधता का साइंटिफिक डेटा तैयार करेगा बल्कि यह भी तय करेगा कि आने वाले वर्षों में यहां के जंगल को किस दिशा में विकसित किया जा सकता है।

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वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित होने पर रिसर्च को मिलेगी मान्यता
उन्होंने बताया कि रिसर्च के लिए बायोलॉजिस्ट की टीम तैयार की गई है, जो पेड़-पौधे, पक्षियों, प्राकृतिक जल स्रोतों, कीट-पतंगों से दीमक तक का अनुसंधान करेगी।  हालांकि, इस स्टडी के डाटा को तभी मान्यता मिलेगी जब यह किसी प्रतिष्ठित वैज्ञानिक जर्नल में प्रकाशित होगा। यदि ऐसा नहीं हुआ तो संबंधित एजेंसी की सिक्योरिटी राशि जब्त कर ली जाएगी।

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वैज्ञानिक डेटा से होगा भविष्य की प्लानिंग
यह रिसर्च न केवल शेरगढ़ अभ्यारण्य की पर्यावरणीय स्थिति को समझने में मदद करेगी बल्कि भविष्य में चीता या अन्य वन्यजीव पुनस्थापन योजनाओं की दिशा भी तय करेगी। राजस्थान के लिए यह महत्वपूर्ण प्रयास है, जिससे वैज्ञानिक आधार पर जंगल के प्रबंधन की दिशा तय होगी। शेरगढ़ में जैव विविधता की डीप स्टडी कार्य किया जा रहा है।  
- अनुराग भटनागर, डीएफओ वन्यजीव विभाग कोटा  

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