चार साल से कागजों में दबी है राजस्थान की नई स्पोर्ट्स पॉलिसी

दो साल पहले तैयार हुआ ड्रॉफ्ट, खेल संघों से सुझाव भी मांगे लेकिन अब तक जारी नहीं हुई नीति

चार साल से कागजों में दबी है राजस्थान की नई स्पोर्ट्स पॉलिसी

खेलमंत्री की ओर से इस दिशा में प्रयास भी किए गए और 2020 में खेल नीति का ड्रॉफ्ट तैयार कर इस पर प्रदेश के विभिन्न खेल संघों की राय जानने के लिए इसे सभी को भेजा गया।

जयपुर। प्रदेश के खिलाड़ियों और खेल संघों को राहत और सुविधाएं देने के लिए राजस्थान सरकार अब 17 साल पहले लागू हुए स्पोर्ट्स एक्ट में भी बदलाव की तैयारी कर रही है लेकिन प्रदेश की प्रस्तावित खेल नीति पिछले चार साल से कागजों में ही दबी पड़ी है। खेलमंत्री अशोक चांदना ने प्रदेश में कांग्रेस की सरकार बनने के बाद खिलाड़ियों को बेहतर माहौल देने के लिए नई खेल नीति की जरूरत बताई। खेलमंत्री की ओर से इस दिशा में प्रयास भी किए गए और 2020 में खेल नीति का ड्रॉफ्ट तैयार कर इस पर प्रदेश के विभिन्न खेल संघों की राय जानने के लिए इसे सभी को भेजा गया। खेल संघों की ओर से सुझाव भी भेजे गए लेकिन इसके बाद खेल नीति दो साल से कागजों में ही दबी पड़ी है। 

2013 में बनी पॉलिसी लेकिन लागू ही नहीं हो सकी
राजस्थान खेल परिषद ने 2013 में प्रदेश की खेल नीति बनाई। इस नीति के अधिकांश प्रावधानों को सुप्रीम कोर्ट द्वारा जस्टिस लोढा की अध्यक्षता में बनाई कमेटी ने भी अपनी सिफारिशों में शामिल किया लेकिन यह नीति राजस्थान में ही लागू नहीं हो सकी।  राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन में तब सीपी जोशी अध्यक्ष थे और खेल नीति लागू होने की सूरत में कई दिग्गज राजनेता खेलों की राजनीति से दूर हो जाते। ऐसे में राजस्थान खेल परिषद की ओर से जारी इस खेल नीति के अमल पर राजस्थान के खेल विभाग ने ही रोक लगा दी। 

नई खेल नीति के प्रावधान
खेल विभाग की ओर से खेल नीति का जो ड्रॉफ्ट खेल संघों को भेजा गया उसमें प्रदेश में आधारभूत खेल संरचना के विकास के साथ ही खिलाड़ियों को प्रशिक्षण और प्रोत्साहन समेत खेल आयोजनों की बढ़ावा देने के लिए महत्वपूर्ण प्रावधान किए गए हैं। आधारभूत सुविधाओं को बढ़ाने के लिए नई स्टेडियम नीति बनाने, निजी क्षेत्र की सहभागिता बढ़ाने और सीएसआर के तहत विकास कार्य कराने की बात कही गई। प्रशिक्षण के लिए प्रतिभा खोज योजना, एकेडमियों की स्थापना के साथ निजी एकेडमियों को प्रोत्साहन, पे एण्ड प्ले स्कीम तथा स्कूल और कॉलेज के साथ ही ग्रामीण स्तर पर खेलों को प्रोत्साहन देने की योजना बनाई है। खिलाड़ियों को प्रोत्साहन के लिए पदक विजेताओं को आकर्षक पुरस्कार राशि, आउट आॅफ टर्न आधार पर सरकारी नौकरी और खिलाड़ी पेंशन योजना के साथ कई प्रावधान किए हैं। 

नीति लागू होती तो खिलाड़ियों को मिल जाते 25 फीसदी पद
राजस्थान खेल परिषद के तत्कालीन अध्यक्ष शिवचरण माली द्वारा बनाई खेल परिषद की 2013 की खेल नीति यदि प्रदेश में लागू होती तो खेल संघों में खिलाड़ियों को प्रतिनिधित्व मिलता और राजनेताओं के लिए खेल संघों के रास्ते कठिन हो जाते। इस खेल नीति में कुछ ऐसे ही प्रावधान थे, जो 2011 में केन्द्र सरकार की राष्ट्रीय खेल नीति में भी शामिल किए गए थे। खेल संघों के पदाधिकारियों का कार्यकाल अधिकतम 12 वर्ष के साथ दो वर्ष के कार्यकाल के बाद कूलिंग आफ और 70 वर्ष से अधिक उम्र पर चुनाव न लड़ने का प्रावधान था। इसके अलावा खेल संघों में खिलाड़ियों को 25 फीसदी पद देन और खेल संघों को आरटीआई के दायरे में लाने का भी प्रावधान था। खेल नीति के ये प्रावधान बाद में जस्टिस लोढ़ा कमेटी की सिफारिशों में भी लागू किए गए हैं।

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