कांग्रेस के 81 विधायकों के त्यागपत्रों के मामले में सुनवाई, राजेंद्र राठौड़ ने खुद की पैरवी
राठौड़ ने कहा कि चुने गये विधायकों का 110 दिन बाद यह कथन कि उनके त्यागपत्र स्वैच्छिक नहीं थे तो यक्ष प्रश्न यह है कि किस खलनायक ने बलपूर्वक उनसे त्यागपत्र दिलवाया, इसका खुलासा होना नितांत आवश्यक है।
जयपुर। आज राजस्थान उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति पंकज भण्डारी व भुवन गोयल की खंडपीठ के समक्ष पूर्व नेता प्रतिपक्ष राजेन्द्र राठौड़ द्वारा कांग्रेस के 81 विधायकों के त्यागपत्रों के प्रकरण को लेकर दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई हुई जिसमें राठौड़ स्वयं व माननीय विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से आर.एन. माथुर व प्रतीक माथुर उपस्थित हुए।
आर.एन. माथुर ने राठौड़ द्वारा याचिका में संशोधन कर महेश जोशी, रफीक खान, शांति धारीवाल, रामलाल जाट व महेन्द्र चौधरी को पक्षकार बनाने व विधानसभा अध्यक्ष के इस्तीफे स्वीकार करने के आदेश दिनांक 13 जनवरी 2023 को अवैधानिक घोषित करने हेतु प्रस्तुत प्रार्थना पत्र पर विधानसभा अध्यक्ष की तरफ से जवाब प्रस्तुत किया।
न्यायालय में दिए गए जवाब में विधानसभा अध्यक्ष द्वारा यह स्वीकारोक्ति की गई कि 81 विधायकों द्वारा दिये गये त्यागपत्रों के स्वैच्छिक व वास्तविक होने या ना होने की कोई भी जांच तत्समय विधानसभा अध्यक्ष द्वारा किया जाना रिकॉर्ड पर नहीं है और सभी विधायकों के त्यागपत्र वापिस लिए जाने के पत्रों की भाषा भी पूर्णतया समान थी। विधानसभा अध्यक्ष ने कथन किया है कि सदस्यों के साथ यदि कुछ गलत हुआ हो जिसके कारण उन्हें त्याग पत्र देने पड़े हो तो ऐसी कोई सामग्री विधानसभा के रिकॉर्ड पर नहीं है।
राठौड़ ने कहा कि 25 सितंबर 2022 को दिये गये त्यागपत्र में महिला विधायकों मनीषा पंवार, मंजू देवी, ममता भूपेश, गायत्री देवी, कृष्णा पूनिया, निर्मला खडिया, प्रीति शक्तावत, गंगा देवी, शकुंतला रावत, इंदिरा मीणा व शोभारानी कुशवाह सहित अन्य महिला विधायकों ने त्यागपत्र देते हुए स्वयं के लिये पुल्लिंग शब्दों का इस्तेमाल किया जिससे यह साबित है कि त्यागपत्र एक योजनाबद्ध तरीके से कांग्रेस के आलाकमान को प्रभावित करने के लिए पूर्व मुख्यमंत्री अशोक गहलोत के दबाव में ताबड़तोड़ दिलवाये गये थे।
राठौड़ ने यह भी कहा कि वर्तमान नेता प्रतिपक् टीकाराम जूली, पूर्व संसदीय कार्यमंत्री शांति धारीवाल, महेश जोशी, अशोक चांदना व उदयलाल आंजना का भी एकस्वर का यह कथन कि उनके द्वारा दिये गये त्यागपत्रों पर उनके हस्ताक्षर स्वैच्छिक नहीं थे, इसी प्रकार के कथन की पुनरावृत्ति अन्य सभी विधायकों ने भी की है। चुने गये विधायकों का 110 दिन बाद यह कथन कि उनके त्यागपत्र स्वैच्छिक नहीं थे तो यक्ष प्रश्न यह है कि किस खलनायक ने बलपूर्वक उनसे त्यागपत्र दिलवाया, इसका खुलासा होना नितांत आवश्यक है।
राठौड़ ने कहा कि आज माननीय राजस्थान उच्च न्यायालय में प्रस्तुत विधानसभा अध्यक्ष के जवाब से यह सिद्ध हो गया कि 25 सितंबर 2022 से जनवरी 2023 तक पूर्ववर्ती कांग्रेस सरकार में किस्सा कुर्सी का खेल इस कदर निम्न स्तर का चला कि संवैधानिक प्रावधानों की खुलेआम बलि चढ़ाते हुए अपनी कुर्सी बचाने के उद्देश्य की प्राप्ति में चुने गये जनप्रतिनिधियों का कठपुतली की तरह बेजा इस्तेमाल किया गया तथा संविधान के साथ किये गये इस आपराधिक आचरण में वर्तमान नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली सहित 81 चुने गये कांग्रेस विधायक षड्यंत्रपूर्वक शामिल थे।
राठौड़ ने अपनी याचिका में यह दावा किया है कि 25 सितंबर 2022 को जिन 81 विधायकों ने संविधान के आर्टिकल 190 (3) के प्रावधानों के अनुसार स्वैच्छिक रूप से स्वयं उपस्थित होकर विधानसभा अध्यक्ष के समक्ष त्यागपत्र दिये थे, जिनके फोटो भी समाचार पत्र मे प्रकाशित हुए, को तत्काल 25 सितंबर 2022 को ही स्वीकार किया जाना संवैधानिक प्रावधानों के अनुसार आवश्यक था। तत्समय विधानसभा अध्यक्ष की ओर से इस मिथ्या परिस्थिति को सही बताते हुए जो शपथ पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया वो एक शर्मनाक झूठ है। न्याय यात्रा निकाल रहे राहुल गांधी की सर्वोच्च प्राथमिकता इन पीड़ित 81 विधायकों को न्याय दिलाने की होनी चाहिये जिनकी स्वयं के लिए न्याय प्राप्त करने की शक्ति 3 माह तक छीन ली गई थी।
राठौड ने 25 सितंबर 2022 को 81 विधायकों द्वारा लिये गये वेतन – भत्तों को पुनः राजकोष में जमा कराने की प्रार्थना भी की है जो लगभग 19 करोड़ रुपये की है। माननीय उच्च न्यायालय की खंडपीठ ने 5 मार्च 2024 को सुनवाई नियत की है।
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