रेजीडेन्ट डॉक्टर हड़ताल समाप्त: मुद्दे वही, लेकिन क्या फिर नहीं होगी हड़ताल?

रेजीडेन्ट डॉक्टरों की हड़ताल कोर्ट के हस्तक्षेप से समाप्त हो गई है

रेजीडेन्ट डॉक्टर हड़ताल समाप्त: मुद्दे वही, लेकिन क्या फिर नहीं होगी हड़ताल?

सरकार ने मांगों पर विचार को कमेटी बना दी है लेकिन रेजीडेन्ट्स मांगों को लेकर फिर से हड़ताल पर नहीं जाएं, इसे लेकर ठोस कदम सरकार को उठाने होंगे, अन्यथा फिर हड़ताल मरीजों पर ही भारी पड़ेगी। 

जयपुर। रेजीडेन्ट डॉक्टरों की हड़ताल कोर्ट के हस्तक्षेप से समाप्त हो गई है। मरीजों ने राहत की सांस ली है। बीते दस सालों में रेजीडेन्टों की हड़ताल के मुद्दे सुरक्षा और उनके स्टाइपेंड से जुड़े ही रहे। सरकारों से टकराहट हुई। कई बार हड़ताल लंबी भी चली। आखिर समझौता हो गया। हड़ताल टूट गई लेकिन इस दौरान संकट मरीजों ने भारी झेला।

सरकारी में इलाज नहीं मिला, आखिर आर्थिक दंड मरीजों पर आया। प्राइवेट अस्पतालों का रूख भी करना पड़ा। जो आर्थिक कमजोर थे, उनकी बीमारी के गंभीर परिणाम भी हुए। जान पर भी बन आई। सरकार ने मांगों पर विचार को कमेटी बना दी है लेकिन रेजीडेन्ट्स मांगों को लेकर फिर से हड़ताल पर नहीं जाएं, इसे लेकर ठोस कदम सरकार को उठाने होंगे, अन्यथा फिर हठताल मरीजों पर ही भारी पड़ेगी। 

डॉक्टर धरती के भगवान हैं, हड़ताल ठीक नहीं लेकिन सरकार भी समय पर संवाद से मरीजों का संकट हरे: रघु शर्मा
पूर्व चिकित्सा मंत्री रघु शर्मा का कहना है कि उनकी सरकार के वक्त भी हड़तालें हुई। लेकिन अंतत: मरीज की ही जान सांसत में आती है। हमने रेजीडेन्टों से बातचीत जारी रखी और बीच का रास्ता निकालकर मरीजों का संकट हरा। स्टाइपेंड भी बढ़ाया गया। डॉक्टरों की हड़ताल को हमें पक्ष-विपक्ष की सोच से ऊपर उठकर देखना होगा। हड़ताल ठीक नहीं है। रेजीडेन्ट और सरकार दोनों अपना समय पर हठ छोड़ दें और मरीजों का संकट समय पूर्व ही हरे। डॉक्टरों में भी धैर्य होना चाहिए। मरीजों के प्रति रेजीडेन्टों की संवेदना होनी चाहिए। डॉक्टर धरती के भगवान होते हैं। हड़ताल होती है तो मरीजों की जान पर बन आती है। मरीजों के इलाज का उन्हें अपना कर्तव्य याद रखना होगा लेकिन सरकार भी इन्हें ठीक से कंवेंस करे। हठधर्मिता यहां भी ठीक नहीं है। 

मरीज की जान की कीमत पर हड़ताल ठीक नहीं, स्थाई समाधान निकले: राजेन्द्र राठौड 
पूर्व चिकित्सा मंत्री राजेन्द्र राठौड़ डॉक्टरों की हड़ताल पर अपने कार्यकाल का अनुभव बताते हुए कहते हैं कि तब भी हड़ताल हुई। दिक्कत मरीजों को हुई। बैठकर बात करने से ही समाधान निकलता है। रेजीडेन्ट को भी मरीजों का पक्ष देखना होगा। मरीजों की जान की कीमत पर हड़ताल ठीक नहीं होती। मैं चिकित्सा मंत्री था तब भी स्टाईपेंड बढ़ाया गया। अपनी बात रखने के कई और तरीके भी हो सकते हैं। वे काली पट्टी बांधे, बिना चिकित्सा सेवाएं प्रभावित करें आंदोलन हों, ज्यादा काम कर अपनी ओर सरकार का ध्यान खीचें। सरकार को भी मामले में स्थाई समाधान तलाशने होंगे। 

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