Doctor's Day: जब मौत के मुंह से मरीजों को वापस खींच लाए ‘धरती के भगवान’
जब मरीज और परिजनों ने मान ली थी हार, लेकिन डॉक्टर्स की जिद के कारण वापस लौट आए मरीज
डॉक्टर्स-डे पर जयपुर के डॉक्टर्स ने कुछ ऐसे ही किस्से नवज्योति के साथ साझा किए जब मरीज और परिजन सभी ने हार मान ली थी लेकिन डॉक्टर्स की मरीज को बचाने की जिद के कारण वे वापस अपने परिवारों के साथ हंसी खुशी से रह पा रहे हैं।
जयपुर। डॉक्टर्स को धरती का भगवान यूं ही नहीं कहा गया है। कई बार मौत के मुहाने पर खड़े मरीजों को भी डॉक्टर्स अपनी मेहनत और जुनून के कारण वापस खींच लाए हैं।
डॉक्टर्स-डे पर जयपुर के डॉक्टर्स ने कुछ ऐसे ही किस्से नवज्योति के साथ साझा किए जब मरीज और परिजन सभी ने हार मान ली थी लेकिन डॉक्टर्स की मरीज को बचाने की जिद के कारण वे वापस अपने परिवारों के साथ हंसी खुशी से रह पा रहे हैं।
140 किलो की मरीज, 62 दिन तक किया बचाने का प्रयास, मिली सफलता
सीनियर कार्डियक सर्जन डॉ. अजीत बाना ने बताया कि उनके पास एक ऐसा केस आया। वजन 140 किलो, थायराइड, बीपी, डायबिटीज मैलिटस, आर्थराइटिस जैसी बीमारियां होने के बावजूद गंभीर निमोनिया से ग्रसित होने पर 48 वर्षीय की मरीज एक्मो सपोर्ट पर रही। इस जटिल केस में मरीज को बचाने के लिए 62 दिन तक मैं और मेरी टीम जद्दोजहद में लगे रहे। जिसमें मरीज 30 दिन एक्मो सपोर्ट पर रहीं और ठीक होकर जान के जोखिम से वापस लौटीं।
किडनी, लिवर फेल, दोनों फेफड़ों में निमोनिया नौ दिन तक दिन-रात मेहनत कर बचाया
सीनियर फिजिशियन एंड क्रिटिकल केयर एक्सपर्ट डॉ. पंकज आनंद ने बताया कि एक दिन 42 वर्ष के एक मरीज को अस्पताल लाया गया था जो वेंटीलेटर पर थे। उनका बीपी रिकॉर्ड नहीं हो पा रहा था। निमोनिया से दोनों फेफड़े बुरी तरह प्रभावित हो गए और किडनी-लिवर भी लगभग फेल हो चुके थे। लगभग 9 दिनों तक नेफ्रोलॉजी और पल्मोनोलॉजी टीम के साथ कॉर्डिनेट करते हुए हमने उस पेशेंट को बचाने में दिन रात एक कर दिया और एक निश्चित मृत्यु से बाहर निकाला।
रोड ऐक्सिडेंट में घायल वृद्ध दो बार हुए भर्ती 15 दिन में गंभीर निमोनिया से बचाया
सीनियर क्रिटिकल केयर और कार्डियक एनेस्थीसिया एक्सपर्ट डॉ. सुशील छाबड़ा ने बताया कि चोमूं क्षेत्र से एक 72 वर्षीय मरीज हॉस्पिटल में भर्ती हुए थे जिनका एक्सीडेंट हो गया था। उनके ब्रेन में हेमरेज होने के कारण वे बेहोश थे और सांस लेने में तकलीफ होने के कारण उनके गले में ट्रिक्योस्मी करके सांस लेने की जगह बनाई गई थी। कुछ परेशानी के कारण आधे इलाज के दौरान ही उनके परिजन कुछ समय बाद उन्हें वापस गांव ले गए लेकिन उन्हें निमोनिया हो गया और वापस बेहोशी की हालत में हॉस्पिटल भर्ती हुए। ज्यादा उम्र होने के कारण उनकी स्थिति बेहद गंभीर हो गई थी लेकिन 15 दिन तक लगातार प्रयास करने के बाद उन्हें होश में और ट्रिक्योस्मी हटा कर हॉस्पिटल से डिस्चार्ज किया गया।
आंतों में होने वाला था गैंगरीन जटिल प्रोसीजर से बचाया
सीनियर कार्डियक इलेक्ट्रोफीजियोलॉजिस्ट डॉ. राहुल सिंघल ने बताया कि एक महिला यहां रैफर हुई थीं जिनके पेट और छाती में दर्द था। सांस लेने में भी दिक्कत थी। सीटी स्कैन में उनके पेट की तीनों और किडनी की दोनों नसों में ब्लॉकेज सामने आया। पेट में खतरा ज्यादा था और आंतों में गैंगरीन होने का खतरा था जिससे मरीज को जान जाने का जोखिम था। ऐसे में उनके पेट की नसों का कॉम्प्लेक्स एंजियोप्लास्टी किया और उनकी जान बचाई।
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