सबक तो नहीं!
समाजवादी मलिक ने किसान आंदोलन के दौरान पीएम मोदी एवं अमित शाह तक को नहीं छोड़ा
असल में, सोचा तो मलिक साहब के बारे में भी गया होगा। लेकिन समय के साथ वह डिरेल होते चले गए। मलिक साहब असंतुष्ट होकर इतना आगे बढ़ गए कि गवर्नर पद की मयार्दा भी भूल गए। सो, अब परिणाम भुगतने की नौबत।
सबक तो नहीं!
मेघालय के गवर्नर सत्यपाल मलिक काफी निराश होंगे। पूर्व में वह गोवा एवं जम्मू-कश्मीर के गवर्नर भी रह चुके। कई बार भाजपा को असहज करने वाली गलतबयानी भी करते रहे। मूलत: समाजवादी मलिक ने किसान आंदोलन के दौरान पीएम मोदी एवं अमित शाह तक को नहीं छोड़ा। इनके नाम जोड़ते हुए भ्रष्टाचार तक का जिक्र किया। लेकिन इसी बीच, भाजपा नेतृत्व ने जगदीप धनखड़ को उपराष्ट्रपति के रुप में आगे करके मलिक साहब को संकेत एवं संदेश दे दिया। क्योंकि धनखड़ साहब की पृष्ठभूमि भी समाजवादी ही। असल में, सोचा तो मलिक साहब के बारे में भी गया होगा। लेकिन समय के साथ वह डिरेल होते चले गए। मलिक साहब असंतुष्ट होकर इतना आगे बढ़ गए कि गवर्नर पद की मयार्दा भी भूल गए। सो, अब परिणाम भुगतने की नौबत। जम्मू-कश्मीर से जुड़े एक रिश्वत प्रकरण में सीबीआई जांच की तलवार लटक रही। संभव हो ईडी का पगफेरा भी हो जाए। बस, इंतजार उनका कार्यकाल खत्म होने का। जो सितंबर में हो रहा।
कौन-कौन गायब हुआ!
एक दौर था। जब भारतीय राजनीति में भाजपा अछूत थी। कांग्रेस एवं वामदलों के जमाने में सेकुलेरिज्म के फेर में भाजपा के साथ कोई भी दल जुड़ना नहीं चाहता था। हां, जनसंघ के बाद बनी भाजपा से शिवसेना, अकाली दल बादल एवं जॉर्ज फर्नाडिस वाली समता पार्टी ने गठबंधन किया। वहीं, अब हाल यह कि भाजपा देश की राजनीति के केन्द्र में। लेकिन इस दौरान कई राज्यों में कभी प्रभावशाली रहे दल गायब से हो गए या अप्रभावी। भाजपा गुजरात में चिमनभाई पटेल के बाद ऐसी जमी कि उनकी पार्टी गायब हो गई। वहीं, जैसे यूपी में बसपा। पंजाब में अकाली दल। असम में असम गण परिषद। हरियाणा में इनेलो। राजस्थान में लोकदल। जम्मू-कश्मीर में पीडीपी। राष्ट्रीय स्तर पर जनता दल। इनका कभी भाजपा से गठबंधन रहा। हां, ओडिशा में बीजद। बिहार में जदयू के सामने भाजपा की चल नहीं चली। अब एआईएडीएमके और टीडीपी का नंबर। आज भाजपा राजनीति के क्षितिज पर। लेकिन उसके साथ गठबंधन वाले दल ढीले पड़ गए।
महज संयोग या... !
सोनिया गांधी से ईडी की पूछताछ काफी हिल हुज्जल के बाद 21 जुलाई को हो गई। लेकिन यह तारीख अनायास ही विशेष बन गई। क्योंकि इसी दिन राष्ट्रपति चुनाव के नतीजे आए। द्रौपदी मुर्मू देश की पहली आदिवासी और दूसरी महिला राष्ट्रपति हो गईं। वहीं, दूसरी ओर, कांग्रेस ने अपनी अध्यक्ष से पूछताछ के विरोध में अच्छी खासी तैयार कर रखी थी। दिनभर जोरदार मीडिया कवरेज भी मिली। लेकिन दोपहर बाद करीब चार बजे जैसे ही राष्ट्रपति चुनाव की मतगणना के रूझान आना शुरू हुए। तो मीडिया का सारा ध्यान उधर चला गया। भाजपा ने देशभर में जमकर जश्न मनाया। इसकी तैयारी पहले से ही थी। वहीं, कांग्रेस का देशभर में विरोध प्रदर्शन इसी खबर के बीच कहीं तिरोहित हो गया। हां, दिन में सोनिया गांधी से ईडी के सवालों को लेकर जो खबरें चलीं। उनका शाम को खंडन करने के लिए पार्टी के संचार विभाग के प्रभारी जराम रमेश जरूर प्रकट हुए। लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी थी।
तो दूसरा संयोग...!
जब जून में राहुल गांधी से ईडी ने पूछताछ की थी। तो राजस्थान के सीएम अशोक गहलोत ही नहीं। बल्कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने बढ़ चढ़कर दिल्ली में विरोध प्रदर्शनों में हिस्सा लिया था। बघेल तो दिल्ली पुलिस के रवैये के खिलाफ सड़क तक पर बैठ गए थे। लेकिन जब बीते गुरुवार को सोनिया गांधी से ईडी ने पूछताछ की। तब बघेल नदारद थे। सचिन पायलट भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवाने में पीछे नहीं रहे। उधर, भूपेश बघेल रायपुर में ही टिके रहे। मंत्रिमंडल में उनके वरिष्ठ सहयोगी टीएस सिंह देव भी दिल्ली नहीं पहुंचे। असल में, बघेल को सिंह देव से बगावत का डर। इसी डर ने उन्हें रायपुर नहीं छोड़ने दिया। नाराज सिंह देव पंचायतराज मंत्री के पद से इस्तीफा दे चुके। उनके तेवर अभी भी ढीले नहीं पड़ रहे। जिससे कांग्रेस आलाकमान भी खासा परेशान। क्योंकि भाजपा, कांग्रेस पर कब, कहां, कैसे हमला कर दे। यह किसी को पता नहीं। मतलब यहां भी महज संयोग ही?
आखिर माजरा क्या?
तो ममता बनर्जी ने उपराष्ट्रपति पद के लिए होने वाले मतदान से टीएमसी को अलग कर लिया। जो उनकी छवि के बिल्कुल विपरित। असल में, अनुमान तब लगा। जब दार्जिलिंग से तत्कालीन राज्यपाल जगदीप धनखड़, ममता बनर्जी और असम के सीएम हेमंत बिस्व सरमा के बीच हुई बैठक का फोटो वाइरल हुआ। अब कांग्रेस और वामदल आरोप लगा रहे कि टीएमसी और भाजपा में अंदरखाने सेटिंग हो गई। जिससे ममता का इनकार। लेकिन भाजपा खामोश। हां, एक सिरा ममता के परिजनों पर ईडी की तलवार भी बताया जा रहा। लेकिन सच क्या? यह किसी को मालूम नहीं। हां, ममता का फैसला सभी को चौंका रहा। यहां तक कि विपक्ष की उम्मीदवार मार्गरेट अल्वा को भी इस बारे में ट्वीट करना पड़ा। लेकिन जो लोग भाजपा और ममता के बीच सेटिंग का आरोप लगा रहे। उनको अगले ही दिन जवाब मिल गया। जब ईडी शुक्रवार को ममता के मंत्री पार्थ चटर्जी के घर पहुंच गई। फिर ममता के मतदान से हटने का माजरा क्या?
कौनसी सरकार और क्षत्रप?
महाराष्ट्र में भाजपा के मिशन ह्यऑपरेशन कमलह्ण के सफलतापूर्वक पूरा होने के बाद कई सरकारें और क्षत्रप चौकन्ने। फिलहाल सबसे ज्यादा परेशान तेलंगाना के केसीआर लग रहे। अब तो राज्य में समय पूर्व विधानसभा चुनाव तक की आहट! उन्हीं के पड़ोसी राज्य तमिलनाडु में विपक्षी एआईएडीएमके का आंतरिक संघर्ष सड़कों पर। जिसे डीएमके नेता स्टालिन समझ रहे। तो बिहार में नितिश कुमार भी चौकन्ने। तिस पर उन्हें राजद से पहले जैसा भाव नहीं मिल रहा। झारखंड में हेमंत सोरेन मानो ढीले पड़ते नजर आ रहे। तो गोवा में कांग्रेस विधायक दल टूटते-टूटते फिलहाल बचा हुआ। वहीं, कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ में वरिष्ठ मंत्री टीएस सिंह देव का इस्तीफा भीषण गर्मी में भी कांग्रेस को कंपकपा रहा। इधर, उपराष्ट्रपति चुनाव से ममता दीदी ने दूरी क्या बनाई। आजकल हर क्षेत्रीय दल में ह्यएकनाथ शिंदेह्ण तलाशे जा रहे। फिर जम्मू-कश्मीर में गुजरात एवं हिमाचल प्रदेश के साथ विधानसभा चुनाव की संभावना के चर्चे। तो फिर पीडीपी और एनसी की हिस्सेदारी वाले गुपकार गठबंधन का क्या होगा?
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