ब्रेन स्ट्रोक के बाद गोल्डन पीरियड में इलाज मिले तो बच सकती है जान
गोल्डन पीरियड के महत्व के बारे में जागरूक होना जरूरी है
इस्केमिक जिसमें खून का थक्का जमने के कारण मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में खून की आपूर्ति बंद हो जाती है एवं दूसरा हेमोरेजिक जिसमें खून की नस फटने की वजह से तेजी से मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती है।
जयपुर। बिगड़ती जीवनशैली, उच्च रक्तचाप, कोलेस्ट्रॉल और डायबिटिज के कारण ब्रेन स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। स्ट्रोक मुख्यतया दो प्रकार के होता है। इस्केमिक जिसमें खून का थक्का जमने के कारण मस्तिष्क के कुछ हिस्सों में खून की आपूर्ति बंद हो जाती है एवं दूसरा हेमोरेजिक जिसमें खून की नस फटने की वजह से तेजी से मस्तिष्क की कोशिकाएं मरने लगती है। इसमें जल्द से जल्द मरीज का उपचार शुरू करवाना चाहिए ताकि मरीज की जान बचाई जा सके। नारायणा मल्टीस्पेशियलिटी हॉस्पिटल जयपुर के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. पृथ्वी गिरी ने स्ट्रोक के बारे में बताया कि लोगों को गोल्डन पीरियड के महत्व के बारे में जागरूक होना जरूरी है जो स्ट्रोक आने के बाद शुरुआती 3 से 4 घंटे का होता है।
स्ट्रोक के होते ही ब्रेन की प्रति मिनट 20 लाख कोशिकाएं मरने लगती हैं। समय रहते यदि स्ट्रोक का इलाज शुरू कर दिया जाए तो स्ट्रोक से होने वाली विकलांगता एवं मृत्यु से बचाया जा सकता है। इसलिए मरीज को बिना समय गंवाएं नजदीकी अस्पताल में पहुंचाना चाहिए ताकि मस्तिष्क को बचाने के लिए शीघ्र उपचार शुरू किया जा सके। हॉस्पिटल के न्यूरोलॉजिस्ट डॉ. मधुकर त्रिवेदी और क्लिनिकल डायरेक्टर डॉ. प्रदीप गोयल ने बताया कि ब्रेन स्ट्रोक का इलाज सीटी स्कैन या एमआरआई की जांच के बाद किया जाता है। जांच के बाद तुरंत इलाज शुरू कर मरीज को बचाने का हरसंभव प्रयास किया जाता है।
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