बिना रीति-रिवाजों के हिंदू विवाह मान्य नहीं : Supreme Court
सात फेरों जैसी रीति का पालन होना चाहिए
सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साफ किया है कि कोई भी हिंदू शादी तभी वैध होगी, जब इसमें शादी से जुड़ी रीतियों का पालन हो।
नई दिल्ली। सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर साफ किया है कि कोई भी हिंदू शादी तभी वैध होगी, जब इसमें शादी से जुड़ी रीतियों का पालन हो। हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 7 के तहत इसमें सप्तपदी (सात फेरों जैसी रीति) का पालन होना चाहिए अन्यथा शादी मान्य नहीं होगी। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में युवाओं को नसीहत भी दी है कि वो बिना शादी की रीतियों को निभाए पति-पत्नी का दर्जा हासिल करने की कोशिश न करें। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वीजा जैसी कुछ व्यवहारिक सहूलियतों के लिए बिना फेरे लिए शादी का रजिस्ट्रेशन न कराएं।
मैरिज सर्टिफिकेट रद्द किया
जस्टिस बीवी नागरत्ना और ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की पीठ ने यह बात दो कॉमर्शियल पायलट्स के तलाक के मामले की सुनवाई के दौरान कही, जिन्होंने वैध हिंदू विवाह सेरेमनी नहीं की थी। पीठ ने संविधान के आर्टिकल 142 का हवाला देते हुए कहा कि दोनों पायलट्स कानून के मुताबिक शादीशुदा नहीं हैं। इसके साथ ही कोर्ट ने उनके मैरिज सर्टिफिकेट को रद्द करार दे दिया। कोर्ट ने उनके तलाक की प्रक्रिया और पति व उसके परिवार पर लगाया गया दहेज का केस खारिज कर दिया।
शादी सिर्फ नाच-गाने या खाने-पीने का आयोजन नहीं
शादी एक पवित्र बंधन है, एक संस्कार है जिसकी भारतीय समाज में अपनी एक अहमियत है। शादी कोई गाने, डांस करने, शराब पीने, खाने-पीने और दहेज लेने का आयोजन नहीं है। यह ऐसा अहम आयोजन है, जिसमें दो लोग जीवन भर के साथ निभाने के लिए आपस में जुड़ते हैं। इसके लिए जरूरी है कि इसकी रीतियों का निष्ठा से पालन हो।
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