हाडौती की 17 सीटों पर भाजपा की किलेबंदी में गुटबाजी की दरार
कांग्रेस के पास मौका लेकिन राह आसान नहीं
हाडौती की 17 सीटों पर भाजपा की किलेबंदी में इस बार दरार नजर आ रही है। इसका मुख्य कारण पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चुनाव की कमान नहीं सौंपना है।
कोटा। हाडौती की 17 सीटों पर भाजपा की किलेबंदी में इस बार दरार नजर आ रही है। इसका मुख्य कारण पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे को चुनाव की कमान नहीं सौंपना है। इस स्थिति में भाजपा हाडौती में दो गुटों में ध्रुव के बीच फंस गई है। इस गुटबाजी का नजारा टिकट वितरण में नजर भी आया जब केवल झालावाड़ को छोड़कर अन्य तीन जिलों में भाजपा को अंतिम समय तक अपने उम्मीदवार घोषित करने में पसीना आ गया। अंतिम समय पर प्रहलाद गुंजल को टिकट मिला। टिकट मिलने से पूर्व का घटनाक्रम भाजपा की गुटबाजी खुद ही कह गया। दूर से देखने पर यह गुटबाजी नजर नहीं आती लेकिन इलाके में लोगों से बातचीत करने पर भाजपा दो फाड़ साफ-साफ नजर आती है। यह गुटबाजी चुनाव की बिसात पर कितना रंग दिखाएगी यह आने वाला समय ही बताएगा। इतना जरूर है कि कांग्रेस के पास इस बार सेंधमारी का अच्छा अवसर नजर आ रहा है। यदि हाडौती की 17 सीटों में से कांग्रेस आधी सीटें भी जीत लेती है तो उसके फिर से वापसी के अवसर प्रबल बन जाते हैं। लेकिन कांग्रेस के लिए भी यह राह आसान नहीं है। दरअसल कांग्रेस के पास सेंधमारी का चांस तो है लेकिन उनके पास ऐसा कोई लीडर नहीं है जो पूरी हाडौती में अपना वर्चस्व रखता हो, जो रणनीति के तहत इस छुपी हुई दीवार को तोड़ सके। शांति धारीवाल व प्रमोद जैन भाया के सामने यह अवसर है जब वह हाडौती में नेतृत्व अपने हाथ लें लेकिन यह दोनों ही अपने जिले में ही सिमट कर रह रहे हैं। धारीवाल की उम्र अधिक होने के कारण वह स्वयं इस बार अपने पुत्र को टिकट दिलाकर राजनीति स्थापित करने में ज्यादा इंट्रेस्टेड थे। मजबूरी में उन्हें टिकट मिला। इधर भाया अपने पंख खोलना ही नहीं चाहते। ऐसे में कांग्रेस के प्रत्याशियों को बिना बाहरी मदद के खुद ही अपनी लड़ाई लड़नी पड़ेगी।
भाजपा का गढ़ क्यों?
हाडौती में परिसीमन से पहले 18 सीट हुआ करती थी। परिसीमन के बाद 17 सीटें रह गई। नैनवां को आधा हिस्सा हिंडोली व आधा हिस्सा के. पाटन में मर्ज कर दिया गया। ऐसी स्थिति में बूंदी में चार से घटकर तीन ही सीट रह गई। परिसीमन के बाद कोटा में 6, बूंदी में 3, व बारां झालावाड़ में चार-चार सीटें हैं। 2003 के चुनाव में वसुंधरा राजे ने भाजपा की कमान संभाली, इस चुनाव में भाजपा 18 में से 12 सीटों पर विजयी रही जब कि कांग्रेस 4 ही सीटें जीत पाई। उस समय प्रमोद जैन भाया ने बारां से व हेमराज ने निर्दलीय जीत दर्ज की थी। 2008 के चुनाव में भाजपा 7 ही सीटों पर जीत पाई जब कि कांग्रेस ने 10 सीटों पर जीत दर्ज की। 2013 के इलेक्शन में भाजपा ने 16 सीटों पर जीत दर्ज की जब कि कांग्रेस मात्र हिंडोली से जीत पाई। 2018 के चुनाव में भाजपा 10 सीटों पर विजयी हुई तो कांग्रेस 7 सीटें ही जीत पाई।
राजे सहित चार महिलाएं फिर मैदान में
झालरापाटन से वसुंधरा राजे सहित भाजपा ने हाडौती में लाडपुरा और के.पाटन सीट पर महिला उम्मीदवार उतारी हैं। यह तीनों ही महिलाएं वर्तमान विधायक भी हैं। दूसरी तरफ कांग्रेस ने राखी गौतम को फिर से कोटा दक्षिण विधानसभा क्षेत्र से चुनाव मैदान में उतारा है। राखी गौतम ने पिछला चुनाव भी संदीप शर्मा के खिलाफ लड़ा था और नजदीकी वोटों के अन्तर से हारी थी।
लाड़पुरा
लाड़पुरा में त्रिकोणीय मुकाबला बन गया है। यहां भाजपा की कल्पना देवी का मुकाबला कांग्रेस के नईमुद्दीन गुड्डू के साथ ही भाजपा के बागी भवानी राजावत के साथ भी है। कल्पना का इलाके में विरोध नजर आ रहा है। कोटा दक्षिण में दो बार के विधायक संदीप शर्मा और कांग्रेस नैत्री राखी गौतम के बीच कांटे की टक्कर है। पिछले चुनाव में राखी ने जोरदार चुनौती पेश की थी। इस सीट को ओम बिरला से जोड़कर देखा जाता है। ऐसे में यह सीट भी हॉट सीट बनी हुई है। सांगोद में कांग्रेस ने नया चेहरा भानु प्रताप को उतारा है। पूर्व विधायक भरत सिंह ने पहले भानु का विरोध किया फिर उसके पक्ष में बात कहने से भरत सिंह खुद विवादास्पद हो गए। इस सीट पर भाजपा ने पूर्व विधायक हीरा लाल नागर को फिर मैदान में उतारा है। हीरा लाल पिछले चुनाव में बहुत कम मार्जिन से चुनाव हारे थे। रामगंज मंडी में भाजपा ने विधायक मदन दिलावर को ही फिर टिकट से नवाजा है लेकिन कांग्रेस ने यहां से महेन्द्र राजौरा को मैदान में उतारा है। राजौरा को नया चेहरा होने का फायदा मिल रहा है। पीपल्दा में भाजपा ने प्रेम गौचर को तो कांग्रेस ने चेतन पटेल आमने सामने उतारा है। यहां सीधा मुकाबला है। यहां मीणा -गुर्जर वोटों के ध्रवीकरण पर जीत का दारोमदार निर्र्भर करेगा।
बारां
बारां की चारों सीटों पर कांग्रेस ने अपने तीन वर्तमान विधायकों सहित पूर्व विधायक करण सिंह को फिर मैदान में उतारा है। भाजपा ने जहां अन्ता में प्रमोद जैन भाया के सामने मनोहर थाना के पूर्व विधायक कंवर लाल को उतारा है। कंवर लाल की छवि उन्हें नुकसान दे रही है। आते ही उनकी बयानबाजी लोगों की जुबान पर है। भाया पक्षियों के अस्पताल की सार संभाल, गौशाला जैसे मुद्दें के साथ अपनी बात रख रहे हैं। भाया प्रचार में भी लीड ले चुके हैं। बारां में भी पाना चंद मेघवाल के सामने भाजपा ने तुरत फुरत में राधेश्याम बैरवा को उतारा है। बारां में दो कांग्रेस नेताओं के मर्डर का मामला लोगों की जुबान पर है। लेकिन फिर भी टिकट जल्दी मिलने से पाना चंद प्रचार में आगे नजर आते हैं। छबड़ा और किशनगंज दोनों ही सीटों पर इस बार भारी द्वंद है। छबड़ा सीट पर प्रताप सिंह सिंधवी का आधिपत्य अब लोगों को अखरने भी लगा है। वहीं करण सिंह का मिजाज इलाके में चर्चा में है। यहां भीषण टक्कर रहेगी। किशनगंज में कांग्रेस की पूर्व विधायक निर्मला सहरिया व भाजपा के पूर्व विधायक ललित मीणा दोनों पुराने खिलाड़ी मैदान में हैं। दोनों इलाके में जमकर प्रचार में जुटे हैं। यहां भी टक्कर देखने को मिलेगी।
झालावाड़
झालावाड़ की चारों सीट झालरापाटन, मनोहरथाना, डग व खानपुर पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के चेहरे पर लड़ी जाती रही हैं। इस बार भी यही हाल है। मनोहर थाना सीट पर कांग्रेस ने नेमीचंद मीणा को टिकट दिया वहीं पूर्व विधायक कैलाश मीणा ने कांग्रेस से बगावत कर चुनाव मैदान में ताल ठोक दी है। इधर भाजपा के गोविन्द रानीपुरिया के सामने तंवर समाज के रोशन सिंह तंवर परेशानी बने हुए हैं। इस सीट पर दोनों प्रत्याशी बागियों से भी लड़ेंगे ऐसे में यहां चतुष्कोणीय मुकाबला बना हुआ है। खानपुर व डग में भाजपा प्रत्याशियों का विरोध में बना हुआ है लेकिन मैडम खुद इसे हैंडल कर रही हैं। झालरापाटन सीट पर भाजपा की वसुंधरा राजे का मुकाबला कांग्रेस के राम लाल चौहान से है। चौहान पूर्व प्रधान रहे हैं। डग सीट पर भाजपा के पूर्व विधायक कालू राम मेघवाल का मुकाबला कांग्रेस के चेत राज गहलोत से हैं। मनोहर थाना में भाजपा के गोविन्द रानीपुरिया जो वर्तमान विधायक हैं कांग्रेस के नेमीचंद मीणा की भिड़ंत है। यहां मुकाबला चतुष्कोणीय तक हो सकता है। इसी प्रकार खानपुर में भी भाजपा के वर्तमान विधायक नरेन्द्र नागर का मुकाबला कांग्रेस के सुरेश गुर्जर से है। गुर्जर पायलट के करीबी बताए जाते हैं। वहीं भाजपा के सभी चारों प्रत्याशी वसुंधरा राजे के करीबी हैं।
बूंदी
बूंदी की हिंडोली सीट पर गुर्जर -माली जातियों के साथ अन्य जातियों का ध्रुवीकरण चुनाव का परिणाम तय करेगा। हिंडोली में राज्य के खेल मंत्री अशोक चांदना तीसरी बार मैदान में हैं। इस बार इनका मुकाबला भाजपा के पूर्व मंत्री प्रभु लाल सैनी से है। चांदना का आक्रामक रवैया जहां सरकारी कर्मचारियों को रास नहीं आता वहीं सैनी का बार बार अलग सीट से चुनाव लड़ना लोगों में मुद्दा बन रहा है। चांदना जहां लोकल हैं वहीं सैनी नजदीकी इलाके स ेसंबंध रखते हैं। ग्रामीण इलाके होने से यहां वोटिंग से पहले के दो दिन काफी महत्वपूर्ण रहेंगे। हार जीत का फैसला वही दिन तय करेंगे। इधर बूंदी सीट पर भाजपा के विधायक अशोक डोगरा का मुकाबला पूर्व विधायक कांग्रेस के हरि मोहन शर्मा से है। यहां भाजपा के बागी रूपेश शर्मा मुकाबले को त्रिकोणीय बना रहे है। हरि मोहन शर्मा बुजुर्ग होने से इलाके में लगातार सक्रिय नहीं रह पाए हैं। के. पाटन में भाजपा की चन्द्र कान्ता मेघवाल के सामने पिछले चुनाव जैसी स्थिति है। पिछले चुनाव में कांग्रेस के सीएल प्रेमी बागी थे तो राकेश बोयत अधिकृत प्रत्याशी थे। इस बार चन्द्रकान्ता के सामने कांग्रेस ने सीएल प्रेमी को टिकट दिया है। लेकिन राकेश बोयत निर्दलीय मैदान में डटे हुए हैं।कांग्रेस के बागी यहां चन्द्र कान्ता की राह आसान कर रहे हैं।
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