सिद्दारामैया ने एनडीआरएफ फंड में देरी को लेकर की केंद्र सरकार की आलोचना, जनता को भ्रमित करने का लगाया आरोप
लोगों को भ्रमित किया जा सकता है
केंद्र सरकार उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) की बैठक आयोजित करने और हमारे एनडीआरएफ दावों पर निर्णय लेने में विफल रहने के कारण केंद्रीय मंत्रियों को बेंगलुरु में आकर जनता को भ्रमितकरने और आधे अधूरे सच को बताने के लिये तैनात कर रहे हैं।
बेंगलुरु। कर्नाटक के मुख्यमंत्री सिद्दारामैया ने राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) फंड के में देरी को लेकर केंद्र सरकार की आलोचना की। साथ ही उन्होंने केंद्रीय मंत्री अमित और निर्मला सीतारमण पर समय पर निर्णय लेने से बचने और भ्रामक बयानों से जनता को भ्रमित करने का आरोप भी लगाया है। सिद्दारामैया ने एक्स पर कहा कि केंद्र सरकार को कर्नाटक की कोई चिंता नहीं है। केंद्र सरकार उच्च स्तरीय समिति (एचएलसी) की बैठक आयोजित करने और हमारे एनडीआरएफ दावों पर निर्णय लेने में विफल रहने के कारण केंद्रीय मंत्रियों को बेंगलुरु में आकर जनता को भ्रमितकरने और आधे अधूरे सच को बताने के लिये तैनात कर रहे हैं। वे झूठ बोलते हैं और उन्हें लगता है कि यहां के लोगों को भ्रमित किया जा सकता है।
सिद्दारामैया ने राज्य आपदा प्रतिक्रिया कोष (एसडीआरएफ) और राष्ट्रीय आपदा प्रतिक्रिया कोष (एनडीआरएफ) के बीच अंतर को समझाते हुये तर्क दिया कि एसडीआरएफ आवंटन वित्त आयोग की सिफारिश पर आधारित है और राज्य का अधिकार है, जबकि एनडीआरएफ से अभूतपूर्व आपदा स्थितियों में अतिरिक्त समर्थन की जरूरत होती है। सिद्दारामैया ने बताया कि केंद्र सरकार द्वारा एसडीआरएफ से 697 करोड़ रुपये के आवंटन को स्वीकार किया गया था, लेकिन यह राशि सूखे के कारण हुये 37,000 करोड़ रुपये से अधिक के व्यापक नुकसान की भरपाई करने के लिए अपर्याप्त है। उन्होंने कहा कि नुक्सान की पर्याप्त रूप से भरपाई करने के लिये एनडीआरएफ से 18,171 करोड़ रुपये की अतिरिक्त सहायता की आवश्यकता है।
सिद्दारामैया ने कर्नाटक के लिए वित्त आयोग द्वारा अनुशंसित विशेष अनुदान के संबंध में श्रीमती सीतारमण के बयानों की भी आलोचना की। उन्होंने कहा कि वित्त आयोग की सिफारिशों के बारे में सीतारमण बातें भ्रामक है और 15वें वित्त आयोग द्वारा जारी रिपोर्टों में प्रारंभिक और अंतिम सिफारिशों के बीच कोई अंतर नहीं किया गया था। इसके अलावा उन्होंने सवाल किया कि अगर कर्नाटक महत्वपूर्ण बुनियादी ढांचे और पर्यावरण परियोजनाओं के लिए आयोग की सिफारिशों के अनुसार धन का हकदार है तो उसे ऋण का सहारा लेने की आवश्यकता क्यों होगी।
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