पशु चिकित्सालय: नि:शुल्क दवा, अभी तक हो रही हवा
जिले के पशु अस्पतालों में दवाइयों की कमी
बीमार मवेशियों के लिए बाजार से खरीदनी पड़ रही महंगी दवा।
कोटा। जिले के पशु चिकित्सालयों में पशुपालकों को अपने बीमार मवेशियों के लिए नि:शुल्क दवा नहीं मिलने से परेशान होना पड़ रहा है। जिले में बड़ी संख्या में पशुपालन होता है। पशुओं के बीमार होने पर सरकारी चिकित्सालय में नि:शुल्क दवा नहीं मिलने से पशुपालकों को बाजार से महंगी दवा खरीदनी पड़ रही है। ऐसे में पशुपालकों को आर्थिक नुकसान उठाना पड़ रहा है। बीमार पशुओं के उपचार में काम आने वाली दवाइयां पशु अस्पतालों में नि:शुल्क मिलती हैं, लेकिन काफी समय से अस्पतालों में इन दवाइयों का टोटा बना हुआ है। इस कारण पशुपालकों को इन दवाओं को मेडिकल स्टोर से खरीदनी पड़ रही हैं।
पशुपालकों ने इस तरह बताई पीड़ा
कैथून क्षेत्र के पशुपालक मांगीलाल, नारायण गुर्जर व फूलचंद माली ने बताया कि कैथून में स्थित पशु चिकित्सालय में समीप के पचास से अधिक गांवों के पशुपालक अपने पशुओं का उपचार करवाने आते हैं। पिछले एक वर्ष से पशुओं की दवाओं की कमी चल रही है ऐसे में पशुपालन करने वालों के समक्ष महंगी दवा खरीदने के अतिरिक्त कोई विकल्प नहीं है। स्थानीय अस्पताल में जब भी जाते हैं तो पशु चिकित्सक बाहर की दवाओं को लिख कर देते हैं। यह दवाइयां मेडिकल स्टोर पर काफी महंगी मिलती है। इससे पशुपालकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है।
150 से अधिक तरह की दवा होना जरूरी
सरकारी नियमों के अनुसार एक पशु चिकित्सालय पर 150 से अधिक तरह की दवा होनी आवश्यक है वहीं सब सेंटर पर 70 से अधिक तरह की दवा होना अनिवार्य है। परन्तु इसके विपरीत पशु चिकित्सालय पर पिछले एक वर्ष से पचास से कम तरह की दवा मिल रही है वही सब सेंटरो पर मात्र दस तरह की दवा मौजूद है। जो दवा सरकारी सेंटरों पर उपलब्ध है, उसमें से कुछ दवाओं का उपयोग तो कभी कभी होता है। रूटिंग में काम आने वाली दवाओं का हमेशा टोटा बना हुआ है। आधी से भी कम प्रकार की दवा ही अस्पतालों में मिल रही है।
फैक्ट फाइल
- जिले में कुल पशु 6.40 लाख
- जिले में पशु चिकित्सा इकाइयां 180
- प्रथम श्रेणी के पशु चिकित्सालय 16
- पशु चिकित्सालय 36
- पशु चिकित्सा उप केंद्र 124
- मोबाइल यूनिट संचालित 6
टेण्डर प्रक्रिया का इंतजार
पशु चिकित्सकों के अनुसार राज्य में मवेशियों के लिए नि:शुल्क दवा योजना चल रही है, लेकिन पूर्व में आचार संहिता की वजह से टेण्डर प्रक्रिया नहीं होने के कारण दवाइयां समय से नहीं खरीदी जा सकी। सरकार ने एक माह पूर्व जिला स्तर पर दवाइयों के लिए एक लाख का बजट जारी किया है, जो काफी कम है। इससे इमरजेंसी वाली दवाओं की भी खरीद नहीं हो सकेगी। अब आचार संहिता समाप्त हो चुकी है। ऐसे में उम्मीद जताई जा रही है कि सरकार के स्तर पर जल्द ही टैंडर प्रक्रिया होने की संभावना है। इसके बाद नि:शुल्क दवाइयों की मात्रा बढ़ जाएगी।
इनका कहना
पशु अस्पतालों में दवाइयों का टोटा बना हुआ है। अस्पताल जाने पर वहां से चिकित्सकों द्वारा पशुपालकों को बैरंग लौटा दिया जाता है। इससे पशुपालकों को परेशानी का सामना करना पड़ रहा है। एंटी रेबीज, एन्टोबायोटिक एनालजीन जैसी दवाएं भी पशु चिकित्सालयों में नहीं हैं।
- भवानी गुर्जर, पशुपालक
पशुओं के लिए दवाओं की आपूर्ति कम मात्रा में हो रही है। इस कारण पशुपालक परेशान हैं। आगामी माह में पर्याप्त मात्रा में सभी सेंटरों पर दवा भेजी जाएगी। जयपुर मुख्यालय पर सभी तरह की दवाओं की डिमांड भेज रखी है। पूर्व में आचार संहिता के कारण टेण्डर प्रक्रिया नहीं होने से दवाओं की खरीद नही हो सकी थी। जल्द टेण्डर होने की उम्मीद है।
- डॉ. जयकिशन, पशु चिकित्सक, पशुपालन विभाग
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