अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी का अल्पसंख्यक दर्जा बरकरार
सुप्रीम कोर्ट ने 4:3 से सुनाया फैसला
संस्थान को स्थापित करने और उसके सरकारी तंत्र का हिस्सा बन जाने में अंतर है लेकिन आर्टिकल 30(1) का मकसद यही है कि अल्पसंख्यकों द्वारा बनाया संस्थान उनके द्वारा ही चलाया जाए।
अलीगढ़ । अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी को अल्पसंख्यक संस्थान का दर्जा देने से इनकार करने वाला फैसला सुप्रीम कोर्ट ने पलट दिया है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि एक संस्थान का अल्पसंख्यक दर्जा सिर्फ इसलिए खत्म नहीं किया जा सकता कि उसकी स्थापना राज्य ने की है चीफ जस्टिस चंद्रचूड़ की अध्यक्षता में बैठी सात जजों की संवैधानिक पीठ ने बहुमत से फैसला सुनाते हुए कहा है कि कोर्ट को यह जरूर देखना पड़ेगा कि असल में यूनिवर्सिटी की स्थापना किसने की और इसके पीछे किसका दिमाग रहा। चाहे कोई शैक्षणिक संस्था संविधान लागू होने से पहले बनी हो या बाद में। इससे उसका दर्जा नहीं बदल जाएगा। संस्थान को स्थापित करने और उसके सरकारी तंत्र का हिस्सा बन जाने में अंतर है लेकिन आर्टिकल 30(1) का मकसद यही है कि अल्पसंख्यकों द्वारा बनाया संस्थान उनके द्वारा ही चलाया जाए।
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा, कोर्ट को देखना होगा कि संस्था के बनते समय फंड और जमीन का बंदोबस्त किसने किया था। हम अजीज बाशा फैसले को ओवररूल कर रहे हैं. अटव अल्पसंख्यक संस्थान है लेकिन अटव के दर्जे पर फैसला 3 जजों की बेंच बाद में करेगी बता दें कि अजीज बाशा बनाम भारत संघ के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने फैसला दिया था कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) एक अल्पसंख्यक संस्थान नहीं है।
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