जानें राज काज में क्या है खास 

याद बीते दिनों की

जानें राज काज में क्या है खास 

सूबे में इन दिनों सुई और धागे को लेकर एक बार फिर चर्चा जोरों पर है।

चर्चा में फिर सुई और धागा :

सूबे में इन दिनों सुई और धागे को लेकर एक बार फिर चर्चा जोरों पर है। चर्चा से सरदार पटेल मार्ग पर स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने के साथ इंदिरा गांधी भवन में हाथ वालों का दफ्तर भी अछूता नहीं है। दोनों दलों के लीडर्स के मनों में बडी कुर्सी को लेकर जो गांठ है, वह जगजाहिर है। हाथ वाले भाई लोग साढेÞ चार साल से ऐसी गांठें लगा रहे हैं, जिनको खोलने के लिए पसीना बहाना पड़ रहा है। और भगवा वाले भाई लोग वैसे ही मन में गांठें पाले बैठे हैं। दोनों तरफ के दिल्ली वाले बड़े नेताओं ने एक-दूसरे को गले मिलाने का दावा तो कर रहे हैं, लेकिन यह बात उनके वर्कर्स के गले नहीं उतर रही। दोनों बडेÞ ठिकानों पर आने वाले हार्डकोर वर्कर्स बतियाते हैं कि दिलों में वे ही बसते हैं, जिनका मन साफ हो, क्योंकि सुई में वह ही धागा जा सकता है, जिस धागे में कोई गांठ न हो।

गुगली राधा के मोहन की :

सूबे में इन दिनों गुगली को लेकर काफी कानाफूसी है। गुगली भी और किसी की नहीं बल्कि मैच के रेफरी बने गोरखपुर वाले वैश्य वंशज की तरफ से फेंकी बॉल हैं। इस गुगली से राज की कुर्सी के सपने देखने वाले भाइयों का दिन का चैन और रातों की नींद उड़े बिना नहीं रह सकी। स्टम्प पर खड़े सामने वाली टीम के कप्तान के अंतिम ओवर की लास्ट बॉल तक समझ में नहीं आया कि आखिर माजरा क्या है। सरदार पटेल मार्ग स्थित बंगला नंबर 51 में बने भगवा वालों के ठिकाने पर खुसरफुसर है कि राधा के मोहन वो ही बोलते हैं, जो उनको रटाया जाता है। गुगली का छोटा-मोटा असर बीते दिनों गुलाबी नगरी में दिखाई भी दिया, लेकिन तीन दिन पहले दिल्ली से आए एक मैसेज ने एक और गुगली फेंक दी। राज का काज करने वाले भी लंच केबिनों में बतियाते हैं कि अभी भगवा वाले दल में सबकुछ ठीक तो नहीं है। दो-दो हाथ करने वालों की आंखें भी अभी भी कुछ ज्यादा ही लाल हैं।

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अब जुबां पर आई बात :

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कई बातों को मन मसोस कर दिल में ही रखा जाता है। लेकिन जब हदें पार हो जाती हैं, तो दिल की बातें भी जुबां पर आए बिना नहीं रहतीं। अब देखो न, भगवा वाले भाई लोगों के राज में कुछ हाथ वालों की चवन्नी भी रुपए में चल रही थी। किसी को हटाने और लगाने के लिए उनका सिर्फ आंख का इशारा ही काफी था। भगवा वाले संगठन को संभाल रहे भाई साहब को कई दिनों से इसका पता भी था, लेकिन पार्टी में चल रहे माहौल की वजह से दिल मसोस कर बैठने के सिवाय उनके पास कोई चारा भी तो नहीं था। जब माहौल भी कुछ बदला-बदला सा नजर आने लगा तो और हदें पार हो गईं, तो बीते दिनों सुमेरपुर वाले भाई साहब की दिल की बातें जुबां पर आ गई। अब राज के सलाहकारों को कौन समझाए कि इशारों को अगर समझो, तो राज को राज ही रहने दो।

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याद बीते दिनों की :

आजकल खाकी वालों पर शनि की दशा कुछ ज्यादा ही है। कभी चौराहे पर, तो कभी गली में पिट रहे हैं। और तो और चूड़ियों वाली तक हाथ-पैर चला जाती है। बेचारे खाकी वाले भी क्या करें, उनको अपने उपर वालों पर भरोसा नहीं है। कब इंक्वायारी बिठा दें, सो पिटने में ही अपनी भलाई समझते हैं। करें भी तो क्या, पुलिस का इकबाल जो, खत्म हो गया। अब टाइगर और लॉयन तक दहाड़ मारना भूल गए। पीटर और गामाज के बारे में सोचना तो बेईमानी है। विक्टर की मजबूरी जगजाहिर है, उनके काम में खलल की किसी में दम नजर नहीं आ रहा। अब तो खाकी वाले भाई ऊपर वालों से प्रार्थना कर रहे हैं कि कोई उनके बीते दिन लौटा दे, ताकि खाकी का इकबाल कायम रहे।

-एल. एल. शर्मा 
(यह लेखक के अपने विचार हैं)

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